एक दीप अँधेरे में ...
बरसों से मंदिर के कपाट में
एक दीप अँधेरे में जल रहा है
रोशनी की तलाश में भटककर खुद से लड़ रहा है
कितने दिन बीत गए ...
अपने रूप को , आईने में नही देख पाया
थोड़ा सा तेल
वहीं पुरानी बाती
उसी कपाट पर
बंद , पडा अपनी दशा से परेशान
फिर भी धीमें -धीमें जल रहा है
उस उजले दिन की इंतजार में
बुझता और जलता
नया सबेरा ढूंढ़ रहा है
बरसों से मंदिर की कपाट में
एक दीप अँधेरे में जल रहा है
लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "
Bahut achhee rachnaa
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंआभार |
शुभ विजया ||
्बेहद गहन प्रस्तुति।
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