एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

बच्चों का जीविका पथ 


तुम थे पहले दाल चने की ,

हमने बना दिया है बेसन 

मीठे या नमकीन बनोगे ,

इसका निर्णय अब लोगे तुम


गाठिया,सेव ,फाफड़े बनकर 

चाहोगे तुम स्वाद लुटाना 

या कि ढोकले और खांडवी 

गरम पकोड़े से बन जाना 


मीठा मोहन थाल बनो तो 

गरम आंच में तपना होगा 

मोतीचूर अगर बनना है ,

पहले बूंदी बनना होगा 


बेसन के लड्डू बन कर के 

प्रभु प्रसाद बनना चाहोगे 

या फिर कढ़ी, बेसनी रोटी 

या चीला बन सुख पाओगे 


बन सकते हो छप्पन व्यंजन 

सबका होगा स्वाद सुहाना 

रूप कोई सा भी ले लेना ,

लेकिन सबके मन तुम भाना 


मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 21 अक्तूबर 2023

मैं कल की चिन्ता छोड़
हंसी खुशी की जिंदगी जीता आज हूं
इसलिये खुश मिजाज हूं

कल जो होना है सो होगा
यह नियती ने कर रखा है निश्चीत
तो कल की कल भोगेंगे
आज तो रहो प्रसन्न चित्त
भविष्य की चिन्ता में
अपने सर पर परेशानियां मत ओढ़ो
आज का पूरा सुख लो
कल क्या होगा,कल पर छोड़ो
सबसे हंस कर मिलता हूं
किसी से नहीं रहता नाराज़ हूं
इसीलिए खुश मिजाज हूं

भविष्य की सोच सोच
अपने चेहरे पर शिकन मत लाओ
प्रेम से जियो, हंसो,
खेलो कूदो और खाओ
याद रखो,आज जो जीवन जी लोगे
कल नहीं जी पाओगे
जो खुशियों के अवसर खो दोगे
बाद में पछताओगे
जो है,उसी में खुश रहता हूं
न किसी की दया का मोहताज हूं 
इसलिए खुश मिजाज़ हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 15 अक्तूबर 2023

बोलो राम राम श्याम


एक हैं मेरे प्यारे राम

एक हैं मुरलीधर घनश्याम 

दोनों का में सुमरू नाम 

बोलो राम राम श्याम 


दोनों के दोनों अवतारी 

दोनों की छवि सुंदर प्यारी 

दोनों हरते कष्ट तमाम 

बोलो राम राम श्याम 


एक थे जन्मे बन रघुराई 

एकआये बन किशन कन्हाई

भाई लक्ष्मण और बलराम 

बोलो राम राम श्याम 


एक में रावण को संहारा 

एक ने मामा कंस को मारा 

सबको पहुंचा उस धाम 

बोलो राम राम श्याम 


एक की लीला वृंदावन में 

एक थे चौदह वर्षों वन में

लिया किसी ने नहीं विश्राम

बोलो राम राम श्याम 


एक थी कृष्णा बांके बिहारी 

एक राम जी अवध बिहारी 

मुक्ति देता दोनों का नाम 

बोलो राम राम श्याम 


एक थे चक्र सुदर्शन धारे 

एक थे तीरंदाज निराले 

दोनों के दोनों बलवान 

बोलो राम राम श्याम 


एक में सागर सेतु बनाया 

एक ने द्वारका नगर बसाया 

दोनों की छवि है अभिराम 

बोलो राम राम श्याम 


एक थे मर्यादा पुरुषोत्तम 

एक थे ज्ञानी और विद्वन 

दिया एक ने गीता का ज्ञान 

बोलो राम राम श्याम


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुझते दीपक 


जिनने सदा अंधेरी रातों ,में जल किये उजाले है 

इनमें फिर से तेल भरो , ये दीपक बुझने वाले हैं


अंधियारे में सूरज बनकर, जिनने ज्योति फैलाई 

सहे हवा के कई थपेड़े ,पर लौ ना बुझने पाई 

है छोटे, संघर्षशील पर ,सदा लड़े तूफानों से 

इनकी स्वर्णिम छटा ,हमेशा खेली है मुस्कानों से 

इनके आगे घबराते हैं ,पंख तिमिर के काले हैं 

इनमें फिर से तेल भरो, ये दीपक बुझने  वाले हैं 


हो पूजन या कोई आरती दीप हमेशा जलते हैं 

दिवाली की तमस निशा को, जगमग जगमग करते हैं 

शुभ कार्यों में दीप प्रज्वलन होता है मंगलकारी 

स्वर्णिम दीप शिखा लहराती ,लगती है कितनी प्यारी 

बाती में है भरा प्रेम रस, मुंह पर सदा उजाले हैं 

इनमें फिर से तेल भरो ,ये दीपक बुझने वाले हैं 


है बुजुर्ग मां-बाप तुम्हारे,ये भी बुझते दिये हैं 

किये बहुत उपकार तुम्हारे ,सदा दिये ही दिये हैं 

खत्म हो रहा तेल ,उपेक्षा की तो ये बुझ जाएंगे 

इनमें भरो प्रेम रस थोड़ा, ये फिर से मुस्कुराएंगे 

इनकी साज संभाल करो , ये तुमको बहुत संभाले हैं 

इनमें फिर से तेल भरो , ये दीपक बुझने वाले हैं


मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

लो जीवन का एक दिन और गुजर गया और उमर एक दिन से और घट गई 

बस ऐसे ही धीरे-धीरे जिंदगी कट गई 


जब हम व्यस्त ना होकर भी व्यस्त रहते हैं उम्र के इस दौर को बुढ़ापा कहते हैं 

सुबह उठो 

नित्य कर्म में जुटो

फिर सुबह की सैर पर निकल जाओ

फिर यारों की मंडली में बैठ कर गप्पे मारो और मन को बहलाओ 

थोड़ा सा व्यायाम कर लो 

अनुलोम विलोम कर धीमी और तेज सांस भर लो 

फुर्ती से भर जाएगा आपका अंग अंग फिर घर जाकर चाय की चुस्कियां लो बिस्कुट के संग

और फिर आज का ताजा अखबार चाटो एक-एक छोटी-मोटी खबर पढ़ वक्त काटो फिर लो फलों का स्वाद 

नाश्ते के पहले या नाश्ते के बाद 

फिर जो हो तो छोटा-मोटा काम करो 

और फिर थोड़ी देर लेट कर आराम करो


इस बीच हमेशा मोबाइल रहेगा साथ

देखते रहना फेसबुक व्हाट्सएप और करते रहना दोस्तों से जरूरी गैर जरूरी बात 

तब तक लंच का टाइम हो जाना है 

खाना खाकर थोड़ा सा सो जाना है 

और शाम को उठकर पियो चाय 

और थोड़ा सा नाश्ता  

स्विगी से मंगा सकते हो पिज़्ज़ा या पास्ता नहीं तो खाओ घर का डिनर 

और टीवी पर देखते रहो  सीरियल 

याद रखो कोई भी प्रोग्राम जिसके बाद मिलता हो भंडारा या प्रसाद 

उसे अटेंड करना नहीं भूलना 

क्योंकि इसे बदल जाता है मुंह का स्वाद बीच में टाइम के हिसाब से दवाइयां लेना भी है जरूरी

स्वस्थ रहने की है मजबूरी 

यूं ही जीवन चलता रहेगा बे रोकटोक 

बीच में अच्छी लगती है बीवी से नोंकझोंक

फिर जब लगे झपकी , सो जाओ

सपनों की दुनिया में खो जाओ

यूं ही चलता रहता है जीवन का क्रम 

अभी मैं जवान हूं यह गलतफहमी पालने का भ्रम 

आदमी में भर देता है उत्साह और नवजीवन 

बिना काम के भी व्यस्त रहकर दिनचर्या सिमट गई 

लो एक दिन उम्र और  घट गई

ऐसे ही धीरे धीरे जिन्दगी कट गई


मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

मुझे स्वर्ग से भी बढ़कर लगता है प्यारा

मेरी जन्म भूमि आगर ने मुझे संवारा 


मैंने जो भी पाई सफलता है जीवन में 

बोया उसका बीज गया था इस आंगन में


याद आता है मिट्टी से वह पुता हुआ घर

सीखा चलना मां की उंगली पकड़ पकड़ कर 


सीखा था अ से अनार और क से ककड़ी

पूरी बारह खड़ी, याद थी मैंने कर ली 


रटे एक से चालीस तक के सभी पहाड़े

और छड़ी से मिली मास्टर जी की मारे 


शैतानी का दंड , हमें मुर्गा बनवाना 

वो गिल्ली,वो डंडा और वो पतंग उड़ाना


 वो स्लेटें,वो झोला और टाट की पट्टी 

वह पल-पल में हुई दोस्ती, पल में कट्टी 


वह तालाब में कपड़े धोना और नहाना

रामआसरे की सेव,चौधरी रबड़ी खाना 


वह प्यारे स्वादिष्ट सिंघाड़े ,काले काले 

वो खिरनी, जामुन ,आम मीठे रस वाले


वो शहर का हाई स्कूल दरबार की कोठी

दादी हाथों पकी जुवारी की वह रोटी 


भाई बहन के संग हुई जो पल-पल मस्ती

होती थी परिवार ,गांव की पूरी बस्ती


सोमवार को बैजनाथ , दर्शन को जाना

रास्ते में झाड़ी से तोड़ करौंदे खाना 


दशहरे को आते जब रावण का वध कर

पैर बुजुर्गों के छूते थे, घर-घर जाकर 


मां का लाड़ दुलार और वह पालन पोषण

मिली पिताजी की शिक्षाएं और अनुशासन


रोज शाम को छत पर जाकर गिरना तारे

क्या क्या करें याद हम ,क्या क्या और बिसारे 


जब भी आती याद,बहुत विव्हल होता मन

आंखों आगे , नाचा करता ,मेरा बचपन 


यहां की माटी लाल, मेरा तो है यह चंदन 

मातृभूमि तुझको मेरा शत शत अभिनंदन


मदन मोहन बाहेती घोटू 


रविवार, 8 अक्तूबर 2023

जमाना बदल गया है

मेरा देश कभी सोने की चिड़िया हुआ करता था ,
पर देखो परिस्थितियों कितनी बदल गई है आज सोना आसमान को छू रहा है , और 
आसमान में चिड़िया नजर आती नहीं है

मेरे देश की धरती जो कभी सोना थी  
उगलती 
आज उन खेतों में पराली है जलती

कभी हरियाली से भरे हुए जंगल हुआ करते थे ,
आज जाने कहां खो गए हैं 
जिधर देखो उधर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं 

कभी मेरे देश में बहती थी दूध दही की नदियां खूब 
और आजकल प्लास्टिक की पैकिंग में मिल रहा है दूध 

पश्चिम की हवाओं ने पूरब की लाली को ऐसा बुझाया है
कि मेरी देश की संस्कृति और संस्कारों को मिटाया है
अब जन्म दिवस की तिथि ऐसे मनाई जाती है 
दीप जलाये नहीं जाते,
 मोमबत्ती बुझाई जाती है 

पहले जहां पग पग रोटी पग पग नीर
हुआ करता था 
अब नीर प्लास्टिक की बोतल में दिख रहा है ,
और हर तरफ ढाबे खुल गए हैं जहां रोटी और खाना बिक रहा है 

पुराने ऋषि मुनियों के गुरुकुल 
हो गए हैं गुल 
और जगह-जगह कोचिंग क्लासेस गई है खुल 

अतिथि देवो भव की परंपरा अब सिर्फ पांच सितारा होटल में पाई जाती है 
अब खुशी के मौका पर गुड़ और पताशे नहीं बंटते ,केक खाई जाती है 

शादी के पहले साथ रहने का चलन चल गया है 
पता नहीं हम बदले हैं या जमाना बदल गया है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

राधा तू बड़भागिनी, कौन तपस्या कीन

तीन लोक तारण तरण

है तेरे आधीन 


राधे राधे तेरे नाम ने, सबके कारज साधे

बोलो राधे राधे राधे ,बोलो राधे राधे राधे 


राधे तू बरसाने वाली

सब पर सुख सरसाने वाली 

तेरी सूरत प्यारी प्यारी 

कान्हा के मन भाने वाली 

अपनी प्यारी युगलछवि के

तू दर्शन करवा दे 

बोलो राधे राधे राधे ,बोलो राधे राधे राधे


मेरे प्यारे कृष्ण मुरारी 

मेरे गोवर्धन गिरधारी 

ऐसी प्रीत लगाई तुझ पर

वो तो जाएं वारी वारी

मुग्ध हो गए,तेरे रूप ने

रक्खा उनका बांधे 

बोलो राधे राधे राधे बोलो राधे राधे राधे 


कान्हा बंसी मधुर बजाते 

कान्हा तुझ पर प्यार लुटाते 

जमुना तट पर, बंसी वट पर 

तुझ संग रास रचाते

एक झलक उस महारास की

 हमको भी दिखला दे 

बोलो राधे राधे राधे ,बोलो राधे राधे राधे


 कान्हा ऐसे भये दीवाने 

प्रीत तेरे संग जोड़ी 

राधे कृष्णा , राधे कृष्णा

अमर हो गई जोड़ी 

हम भक्तों पर भी थोड़ी सी

किरपा तू बरसा दे 

बोलो राधे राधे राधे

बोलो राधे राधे राधे


मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 30 सितंबर 2023

आई दिवाली रे

दीप चमकते ,जगमग जगमग 
हर घर चमके ,जगमग जगमग 
सबके चेहरा है, जगमग जगमग 
साथ खुशियां मनाये परिवार रे 
आया दीपावली त्योहार रे 

हर दीपक में भरा प्रेम रस 
बाती ज्योतिर्मय करती जग 
पूनम सी हो गई अमावस 
दूर हुआ अंधकार रे 
आया दीपावली त्यौहार रे

चौदह वर्षों वन में रहकर 
आज अयोध्या आए रघुवर 
दीप जलाए ,सबने घर-घर 
करने प्रभु जी का सत्कार रे 
आया दीपावली त्यौहार रे

श्री लक्ष्मी गणेश का पूजन 
बड़े प्यार से करता हर जन 
घर-घर बनते छप्पन व्यंजन 
सब लोग लुटाते प्यार रे
आया दीपावली त्यौहार रे

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 25 सितंबर 2023

चिर यौवन 


बचपन ,यौवन,वृद्धावस्था ,

ये जीवन का क्रम सदा रहे 

पर हर कोई करता प्रयास,

वह जब तक जिये ,जवां रहे 

खा लेने भर से च्यवनप्राश

हर दम ना टिकता है यौवन 

या शिलाजीत का सेवन कर

होता मजबूत शिला सा तन 

क्षरण नियम है प्रकृति का ,

होती है उम्र जब साठ पार 

आता है बुढ़ापा हर तन पर ,

दस्तक देता है बार-बार 

पर वृद्धावस्था से तुमको 

जो टक्कर लेकर जीना है 

हंसते-हंसते मरते दम तक

 यौवन का अमृत पीना है 

तो अपना हृदय जवान रखो 

तुम अपनी सोच जवान रखो 

मत देखो श्वेत केश ,मन में,

तुम यौवन का तूफान रखो 

मन में फुर्तीले होने से ,

फुर्तीला हो जाता तन है 

डर दूर बुढ़ापा भग जाता, 

कायम रहता चिर यौवन है 

रहते उमंग और जोश भरे ,

जो खुश रहते हंसते गाते 

मन से जवान वो रहते हैं 

चिर युवा वही है कहलाते


मदन मोहन बाहेती घोटू

जीवन में सफलता के सूत्र


कई समस्यायें जीवन की हल होंगी

बस थोड़ा व्यवहार कुशल हो जाओ तुम

कोई से जब मिलो ,मिलो अपनेपन से, और गर्म जोशी से हाथ मिलाओ तुम 


जब  कुछ बोलो,बोल तुम्हारे मीठे हो,

होठों पर मुस्कान ,खुशी हो चेहरे पर 

दीन दुखी की सेवा और मदद करने,

अपने तन और मन से सदा रहो तत्पर


 मिलो बुजुर्गों से तो उनको नमन करो,

बच्चों से मिल,प्यार उन्हे तुम जतलाओ 

हो गंभीर करो सब बातें बिजनेस की,

अपना दृष्टिकोण अच्छे से समझाओ 


होगा अगर आचरण जो व्यवहार कुशल

सदा सफलता पाओगे तुम जीवन में 

ज्यादा मुंह फट होना भी है ठीक नहीं ,

कुछ बातों को रखना पड़ता है मन में


बिगड़ी बातें बनती *सौरी*कहने से ,

और*थैंक यू *सुन खुश हो जाताअगला 

नारीशक्ति की सदा प्रशंसा करने से,

 तुम्हारा जीवन में होगा बहुत भला 


क्या कब करना सोच समझकर निर्णय लो

परिस्थिति को पहले देखोभालो तुम 

ये सब सूत्र सफलता के हैं जीवन में,

सुखी रहोगे अगर इन्हें अपनालो तुम 


मदन मोहन बाहेती घोटू

मन बूंदी बूंदी हो जाता


तुम रसगुल्ले सी रसभीनी ,

मीठी बातें जब करती हो 

तो गरम चासनी में डूबा,

 मन बूंदी बूंदी हो जाता 


जब तन की गरम कढ़ाही में

वह दूध खौलता ,गरम-गरम,

 मीठी रबड़ी सा स्वाद भरा,

 यह मन बासूंदी हो जाता 


जब गोल-गोल टेढ़े मेढे,

करती हो कई बहाने तुम 

आता है स्वाद जलेबी का, 

मैं बड़े चाव से खाता हूं 


जब तुम शरमाती गालों पर,

तो गाजर के हलवे जैसी,

 छा जाती गुलाबी रंगत है 

मैं स्वाद अनोखा पाता हूं


मुंह खोल,अधर कर चौड़े से

जब गटकाती पानीपुरियां ,

मुझको लगता है चुम्बन का

यह तुम्हारा आवाहन है 


जब चाट, चाट चटकारे भर ,

तुम सीसी, सीसी करती हो 

तो तुम्हें देख कर जाने क्या 

सोचा करता मेरा मन है 


तुम डोमिनो के पिज़्ज़ा सी,

 या मैकडॉनल्ड की बर्गर हो 

तुम मोमो जैसी स्वाद भरी ,

या जैसे गरम समोसा हो 


तुम हो आलू की टिक्की सी 

या छोले और भटूरे सी

इडली सी नरम मुलायम तुम

 स्वादिष्ट मसाला डोसा हो 


तुम हो वेजिटेबल पुलाव 

या कभी सयानी बिरियानी,

मैं दाल माखनी के जैसा 

मिल-जुल कर स्वाद बढ़ाता हूं 


तुम मधुर मधुर पकवान डियर 

मैं खानपान शौकीन बहुत 

हर स्वादिष्ट व्यंजन का मैं ,

तुममें स्वाद पा जाता हूं


मदन मोहन बाहेती घोटू

भजन


मेरे बदल गए घनश्याम, द्वारका जाकर के

वो तो भूल गए ब्रजधाम,द्वारका जाकर के


भूले प्यार नंद बाबा का 

लाड़ दुलार, जसोदा मां का 

भूल गए माखन का चुराना

बंसी वट में धेनु चराना 

 भूले जमुना में स्नान ,द्वारका जाकर के

मेरे बदल गए घनश्याम,द्वारका जाकर के


बाल सखा ,सब यार को भूले 

गोपी ग्वाल का प्यार वो भूले

भूल गए बंसी का बजाना 

जमना तट पर रास रचाना 

ना रहे पहले जैसे श्याम, द्वारका जाकर के      

मेरे बदल गए घनश्याम,

द्वारका जाकर के


छोड़ बांसुरी, वो गिरधारी 

बन गए चक्र सुदर्शन धारी 

भूले राधा प्रीत सुहानी 

अब हैं आठ आठ पटरानी 

उनका ऊंचा होगया नाम,द्वारका जाकर के

मेरे बदल गए घनश्याम ,

द्वारका जाकर के


मीठा जमुना का जल छोड़ा

सागर के संग नाता जोड़ा 

अब ना मोर मुकुट वो पहने

सर पर राज मुकुट और गहने 

हुआ द्वारकाधीश है नाम द्वारका जाकर के

मेरे बदल गए घनश्याम ,

द्वारका जाकर के


मदन मोहन बाहेती घोटू

मज़ा बुढ़ापे का 

जब भी जी चाहे सो जाओ 
जब भी जी चाहे जग जाओ 
जो जी चाहे खाओ पियो 
अपनी मन मरजी से जियो 
मन कहे, करो तो वैसे ही 
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही 

ना दफ्तर जाना सुबह दौड़ 
ना ही बिजनेस की तोड़फोड़ 
ना तो ऊधो को कुछ देना 
ना ही माधो से कुछ लेना 
ना कोई की जवाब देही 
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही 

तुम सुबह उठो पेपर चाटो 
या टीवी देखो ,दिन काटो 
या घूमो माल ,बाजारों में 
या गपशप मारो यारों में 
बन रहो सभी के तुम स्नेही 
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही 

जीवन भर खट ,जो धन जोड़ा 
खुद पर भी खर्च करो थोड़ा 
अब त्यागो सब मोह माया को 
जी भर सुख दो निज काया को 
पैसा काम आए अपने ही 
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही

जब मृत्यु वाला दिन तय है 
तो तुमको काहे का भय है 
जो होना है ,हो जाने दो 
जीवन में मस्ती आने दो 
तुम मौज उड़ाओ ऐसे ही 
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

मैंने वो दिन भी देखे हैं

जब जीना पल पल मुश्किल था,
मैंने वो दिन भी देखे हैं 

मैं आपातकालीन सेज पर,
पड़ा हुआ था रुग्णालय में 
मेरी सांसे सहम रही थी ,
पास खड़ी मृत्यु के भय में
लेकिन जीने की उत्कंठा ,
मुझको दिला रही थी शक्ति 
आत्मीय जन और मित्रों की 
कई दुआएं,पूजा, भक्ति 
मुझे छीन कर मृत्यु मुख से 
फिर से वापस ले आई थी 
और चिकित्सक की मेहनत भी
 धीरे-धीरे रंग लाई थी 
नियति की लीला के आगे ,
सबने ही घुटने टेके हैं 
जब जीना पल पल मुश्किल था,
 मैंने वो दिन भी देखे हैं 

उठ ना पाता था बिस्तर से,
 तन इतना कमजोर हुआ था 
आशा और निराशाओं का 
मन में ऐसा दौर हुआ था 
मन कहता था हिम्मत रख, जी,
 बुरा वक्त है कट जाएगा 
तेरे सब सत्कर्मों का फल 
तुझ में नवजीवन लायेगा
मेरी इच्छा शक्ति रह रह,
मुझको दिला रही थी ढाढस 
नई जिंदगी शुरू हो गई ,
पहले के जैसी जस की तस
दौर दूसरा यह जीवन का ,
शुरू हुआ खुशियां लेके है 
जब जीना पल पल मुश्किल था 
मैंने वो दिन भी देखे हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 
हर दिन 

तुम खुश मेरी पूनम उस दिन
तुम नाराज अमावस उस दिन 

जिस दिन भृकुटी तनी तुम्हारी,
उस दिन तपन, गरम लू चलती 
जिस रहती खफा मौन तुम ,
वह सरदी की रात ठिठुरती 
जिस दिन बरसे प्यार तुम्हारा,
उस दिन ही सावन की रिमझिम 
तुम खुश मेरी पूनम उस दिन 
तुम नाराज़,अमावस उस दिन

जिस दिन तुम हंसती, मुस्कुराती,
 चलती है बयार बासंती
तुम्हारे मिजाज के माफिक 
मेरी सारी ऋतुएं बनती
जब तुम चहको, पंछी चहके,
जब तुम बहको ,बहके मौसम 
तुम खुश ,मेरी पूनम उस दिन
तुम नाराज़,अमावस उस दिन

जब तुम मुंह ढक कर सोती हो,
उस दिन चंद्र ग्रहण है लगता
जब तुम अंगड़ाई लेती हो ,
छाती मस्तानी मादकता 
बिन तुम्हारे नींद ना आती ,
रात गुजरती तारे गिन गिन 
तुम खुश, मेरी पूनम उस दिन 
तुम नाराज ,अमावस उस दिन

मदन मोहन बाहेती घोटू 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-