मन बूंदी बूंदी हो जाता
तुम रसगुल्ले सी रसभीनी ,
मीठी बातें जब करती हो
तो गरम चासनी में डूबा,
मन बूंदी बूंदी हो जाता
जब तन की गरम कढ़ाही में
वह दूध खौलता ,गरम-गरम,
मीठी रबड़ी सा स्वाद भरा,
यह मन बासूंदी हो जाता
जब गोल-गोल टेढ़े मेढे,
करती हो कई बहाने तुम
आता है स्वाद जलेबी का,
मैं बड़े चाव से खाता हूं
जब तुम शरमाती गालों पर,
तो गाजर के हलवे जैसी,
छा जाती गुलाबी रंगत है
मैं स्वाद अनोखा पाता हूं
मुंह खोल,अधर कर चौड़े से
जब गटकाती पानीपुरियां ,
मुझको लगता है चुम्बन का
यह तुम्हारा आवाहन है
जब चाट, चाट चटकारे भर ,
तुम सीसी, सीसी करती हो
तो तुम्हें देख कर जाने क्या
सोचा करता मेरा मन है
तुम डोमिनो के पिज़्ज़ा सी,
या मैकडॉनल्ड की बर्गर हो
तुम मोमो जैसी स्वाद भरी ,
या जैसे गरम समोसा हो
तुम हो आलू की टिक्की सी
या छोले और भटूरे सी
इडली सी नरम मुलायम तुम
स्वादिष्ट मसाला डोसा हो
तुम हो वेजिटेबल पुलाव
या कभी सयानी बिरियानी,
मैं दाल माखनी के जैसा
मिल-जुल कर स्वाद बढ़ाता हूं
तुम मधुर मधुर पकवान डियर
मैं खानपान शौकीन बहुत
हर स्वादिष्ट व्यंजन का मैं ,
तुममें स्वाद पा जाता हूं
मदन मोहन बाहेती घोटू
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