मज़ा बुढ़ापे का
जब भी जी चाहे सो जाओ
जब भी जी चाहे जग जाओ
जो जी चाहे खाओ पियो
अपनी मन मरजी से जियो
मन कहे, करो तो वैसे ही
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही
ना दफ्तर जाना सुबह दौड़
ना ही बिजनेस की तोड़फोड़
ना तो ऊधो को कुछ देना
ना ही माधो से कुछ लेना
ना कोई की जवाब देही
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही
तुम सुबह उठो पेपर चाटो
या टीवी देखो ,दिन काटो
या घूमो माल ,बाजारों में
या गपशप मारो यारों में
बन रहो सभी के तुम स्नेही
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही
जीवन भर खट ,जो धन जोड़ा
खुद पर भी खर्च करो थोड़ा
अब त्यागो सब मोह माया को
जी भर सुख दो निज काया को
पैसा काम आए अपने ही
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही
जब मृत्यु वाला दिन तय है
तो तुमको काहे का भय है
जो होना है ,हो जाने दो
जीवन में मस्ती आने दो
तुम मौज उड़ाओ ऐसे ही
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही
मदन मोहन बाहेती घोटू
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