लो जीवन का एक दिन और गुजर गया और उमर एक दिन से और घट गई
बस ऐसे ही धीरे-धीरे जिंदगी कट गई
जब हम व्यस्त ना होकर भी व्यस्त रहते हैं उम्र के इस दौर को बुढ़ापा कहते हैं
सुबह उठो
नित्य कर्म में जुटो
फिर सुबह की सैर पर निकल जाओ
फिर यारों की मंडली में बैठ कर गप्पे मारो और मन को बहलाओ
थोड़ा सा व्यायाम कर लो
अनुलोम विलोम कर धीमी और तेज सांस भर लो
फुर्ती से भर जाएगा आपका अंग अंग फिर घर जाकर चाय की चुस्कियां लो बिस्कुट के संग
और फिर आज का ताजा अखबार चाटो एक-एक छोटी-मोटी खबर पढ़ वक्त काटो फिर लो फलों का स्वाद
नाश्ते के पहले या नाश्ते के बाद
फिर जो हो तो छोटा-मोटा काम करो
और फिर थोड़ी देर लेट कर आराम करो
इस बीच हमेशा मोबाइल रहेगा साथ
देखते रहना फेसबुक व्हाट्सएप और करते रहना दोस्तों से जरूरी गैर जरूरी बात
तब तक लंच का टाइम हो जाना है
खाना खाकर थोड़ा सा सो जाना है
और शाम को उठकर पियो चाय
और थोड़ा सा नाश्ता
स्विगी से मंगा सकते हो पिज़्ज़ा या पास्ता नहीं तो खाओ घर का डिनर
और टीवी पर देखते रहो सीरियल
याद रखो कोई भी प्रोग्राम जिसके बाद मिलता हो भंडारा या प्रसाद
उसे अटेंड करना नहीं भूलना
क्योंकि इसे बदल जाता है मुंह का स्वाद बीच में टाइम के हिसाब से दवाइयां लेना भी है जरूरी
स्वस्थ रहने की है मजबूरी
यूं ही जीवन चलता रहेगा बे रोकटोक
बीच में अच्छी लगती है बीवी से नोंकझोंक
फिर जब लगे झपकी , सो जाओ
सपनों की दुनिया में खो जाओ
यूं ही चलता रहता है जीवन का क्रम
अभी मैं जवान हूं यह गलतफहमी पालने का भ्रम
आदमी में भर देता है उत्साह और नवजीवन
बिना काम के भी व्यस्त रहकर दिनचर्या सिमट गई
लो एक दिन उम्र और घट गई
ऐसे ही धीरे धीरे जिन्दगी कट गई
मदन मोहन बाहेती घोटू
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