एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

बुधवार, 31 जुलाई 2019

 दीपक अभिनन्दन

जो जल कर भी जगमग करता ,जन जीवन के आंगन को
भू के ऐसे एक दीप  पर ,सौ सौ चाँद निछावर है

थका बटोही ठहरे ,उसको चैन मिले
रात हुई ,चकवा चकवी के नैन मिले
बया घोसले में बच्चों के साथ रहे
जहाँ हमेशा सरगम की बरसात रहे
कलरव गूंजे,गए विहंग भी नहीं थके
एक डाल पर ,काग कोकिला बैठ सके
जो पत्थर के उत्तर में भी ,फल दे मीठे रसवाले ,
भू का ऐसा एक वृक्ष ,सौ कल्पतरु से बढ़ कर है
भू के ऐसे एक दीप पर सौ सौ चाँद निछावर है

माना नभ में रोज दिवाली होती है
पर निर्धन की कुटिया काली होती है
जिसके मन में घोर अँधेरा छाया है
वहीँ प्रेम का दीपक भी मुस्काया है  
कड़वा रहता तेल ,कांति पर देता है
घुट घुट जलता हुआ कांति पर देता है
जो तूफानों को सह कर भी ,मुस्काता जलता जाता ,
एक किरण ऐसे दीपक की ,रवि रश्मि से सुन्दर है
भू के ऐसे एक दीप पर ,सौ सौ चाँद  निछावर है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-