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बुधवार, 17 जुलाई 2019

खो गयी जाने कहाँ वो उँगलियाँ

जिन उँगलियों में मैंने ,सगाई की अंगूठी पहनाई थी
जिन उँगलियों में ऊँगली फंसा ,जीने मरने की कसम खाई थी
वो उँगलियाँ जो हाथ हिला कर मुझे बाय बाय किया करती थी
वो उंगलिया जो मुझे देख कर 'फ्लाइंग किस 'दिया करती थी
वो उँगलियाँ जो कभी कभी मुझे प्रेम भरे पत्र लिखा  करती थी
वो उँगलियाँ ,जो पूजा के बाद ,मेरे मस्तक पर टीका करती थी
वो उँगलियाँ जो मेरे दुखते हुए सर को प्यार से सहलाती थी
वो उँगलियाँ जो जरुरत पड़ने पर मेरी पीठ को खुजाती  थी
वो उँगलियाँ जो मेरे दर्दीले पावों में एक्यूप्रेशर दिया करती थी
वो उँगलियाँ जो मेरे दुःख में बहते आंसूं पोंछ दिया करती थी
वो उँगलियाँ जो हाथ में सलाइयां लेकर उलटे सीधे फंदे  डाल
मेरे लिए गरम  ऊन का नया स्वेटर बुना करती थी  हरेक साल
वो उँगलियाँ जिनके बने पकवान खा ,मैं उँगलियाँ चाटा करता था
वो उँगलियाँ जिनके इशारों पर मैं दिन रात नाचा करता था
वो उँगलियाँ जो फुर्सत के क्षणों में खेलती थी मेरे संग ताश
जाने कहाँ खो गयी है वो उँगलियाँ ,मुझे है उनकी तलाश
सुना है वो व्हाट्सएप और फेसबुक की बिमारी से ग्रस्त है
और दिनरात मोबाईल को थामे हुए ,उसी में रहती मस्त है
उन्हें क्या मालूम है मेरा क्या हाल हो गया है उनके बिन
कोई उनका ये भूत उतार दे और लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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