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शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

मन  की बात


साफ़ मैं कहता हूँ वो बात जो हक़ीक़त है ,
जो सही लगती  वही मन की बात करता हूँ
जेठ की चिलचिलाती धूप में और गरमी में ,
कभी भी मैं नहीं सावन की बात करता हूँ

झांकती रहती हो जब मोटे  मोटे  चश्मे से ,
कैसे कह दूँ ,नज़र के तीर तुम चलाती हो
कैसे बतलाऊँ घटा काली जुल्फ तुम्हारी ,
सफेदी उनमे अगर साफ़ नज़र आती हो
तुम्हारे होठों को शोला नहीं बता सकता ,
पसीने को नहीं सबनम की बात करता हूँ
साफ़ मैं कहता हूँ वो बात जो हक़ीक़त है ,
जो सही लगती वही मन की बात करता हूँ

कैसे कह दूँ तुम्हारी चाल है हिरन जैसी ,
दर्द है घुटने में और पाँव एक लचकता है
नहीं कह सकता कली ,पंखुड़ी पंखुड़ी बिखरी है ,
बुढ़ापा साफ़ तेरे अंगो से झलकता है
तुम्हारे चेहरे की सारी लुनाई गायब है ,
रहा ना अब बदन रेशम की बात करता हूँ
साफ़ मैं कहता हूँ वो बात जो हक़ीक़त है ,
जो सही लगती  वही मन की बात करता हूँ

कैसे कह दूँ कि तेरा जलवा कयामत होता ,
देख कर मुझको कभी तुमजो मुस्कराती हो
सच तो ये है कि जब भी गुस्सा तुम्हे आता है ,
आता तूफ़ान ,क़यामत तुम घर में ढाती हो
 तेरे दांतों को मैं मोती नहीं बता सकता    ,
 जीभ पर रखने नियंत्रण की बात करता हूँ
साफ़ कहता हूँ वो बात जो हक़ीक़त है
जो सही लगती वही  मन की बात करता हूँ

कैसे कह दूँ बड़ी मीठी है तुम्हारी  पप्पी ,
मैंने तो अब तलक पाया कभी मिठास नहीं
बदन तुम्हारा ये नमकीन तो है हो सकता
पसीने वाला बदन ,आता मुझको रास नहीं
इशारों पर तुम्हारे ,नाच मै नहीं सकता ,
इसलिए प्यार के बंधन की बात करता हूँ
साफ़ कहता हूँ वो बात जो हक़ीक़त है ,
जो सही लगती वही मन की बात करता हूँ


मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


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