पश्चाताप
मैं शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से
थी बीस बरस की उमर अभी ,मूंछों की रेख न उघड़ी थी
शैशव का साथ छोड़ मैंने ,यौवन की ऊँगली पकड़ी थी
पर प्रथम चरण में यौवन के ,मैं बुरी तरह से भटक गया
जो आसमान से टपका तो आकर खजूर में लटक गया
जाने क्यों मेरी शादी का ,एक ऑफर मिला रावले से
तगड़े दहेज़ की बात सुनी ,घर वाले हुए बावले से
मुझ से बिन बोले ,बिन पूछे ,मेरी शादी करदी पक्की
और मैं कुछ बोला तो बोले ,राजा बेटा ,तू है लक्की
सुनते है बहू साहजी की ,प्यारी इकलौती बेटी है
आ करे निहाल ,हमें ,उसके ,पैरों में लक्ष्मी बैठी है
उनके मुनीमजी कहते थे ,वो तुझको फॉरेन भेजेंगे
यदि नयी नहीं सेकंड हैंड मोटर दहेज़ में वो देंगे
अच्छा बंगला है ,इज्जत है ,दो दो अंग्रेजी कारे है
तेरी तक़दीर तेज बेटा ,अब तो बस वारे न्यारे है
मैं बोला वो सब ठीक मगर मुझसे भी तो पुछवा लेते
लड़की न दिखाई ,कम से कम ,फोटो ही तो दिखला देते
'फोटो को, क्या चाटेगा ,वो सुन्दर भोली भाली है
है सभी बात में अच्छी ,बस कुछ लम्बी है कुछ काली है
लम्बी तो तेरी माँ भी है और काले कृष्ण कन्हैया थे
हमको क्या जब वो दहेज़ में क्रीम पाउडर सब देंगे
है बूढ़े ससुर और बेटी उनकी इकलौती वारिस है
अब ना मत करो लाल मेरे ,बस मेरी यही गुजारिश है
फादर को न बहू लेकिन ,था प्यार दहेजी पेटी से
मैं शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से
इतनी चिकनी चुपड़ी बातें सुन मेरा मन भी डोल गया
फॉरेन जाने के चक्कर में ,मैं ख़ुशी ख़ुशी हाँ बोल गया
फिर महीने भर के अंदर ही गूंजी शादी की शहनाई
पहने सुधारवादी चोगा ,सारी रस्मो की भरपाई
शादी थी हुई बिना परदे ,पर वह परदा ना तो क्या था
उनके मुख पर परदा न मगर मेरी आँखों पर परदा था
वह झीना झीना परदा था ,मोटे दहेज़ और मोटर का
फॉरेन जाने की आशा का ,दौलत पाने के चक्कर का
होगयी खैर शादी मेरी ,लेकिन दहेज़ में क्या पाया
नखरे,ताने देनेवाली ,है धन्य प्रभु तेरी माया
मिल गया एक हेलिकॉफ्टर ,जो पग जमीन पर नहीं रखे
बीबी न रेडियो एक मिला ,जो दिन भर बोले ,नहीं थके
कार दहेजी नहीं मिली ,लेकिन सरकार मिली मुझको
पहले थी आँखें चार और फिर आँखे चार मिली मुझको
यार दोस्त ये कहते है बीबी तो बड़ी हसीन मिली
जो स्वयं रेडियो ,हेलिकॉफ्टर ,ऐसी एक मशीन मिली
एक ऐसी मैना मिली मुझे जो मैका मैका जाती है
ससुराल पिंजरा लगता है ,अम्मा की याद सताती है
चूल्हा फूंके ,आंसू आवे ,रोटी सेके तो हाथ जले
क्या खूब मिली बीबी मुझको ये पूर्व जनम के कर्म फले
खोदा पहाड़ निकली चुहिया ,अपनी करनी पर पछताए
अब राम भला करदे मेरा ,अबके से तो गंगा नहाये
जला दूध का ,रहूँ छाछ से ,एक हाथ की छेटी से
मैं शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
(यह रचना १९६२ में लिखी गयी थी )
मैं शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से
थी बीस बरस की उमर अभी ,मूंछों की रेख न उघड़ी थी
शैशव का साथ छोड़ मैंने ,यौवन की ऊँगली पकड़ी थी
पर प्रथम चरण में यौवन के ,मैं बुरी तरह से भटक गया
जो आसमान से टपका तो आकर खजूर में लटक गया
जाने क्यों मेरी शादी का ,एक ऑफर मिला रावले से
तगड़े दहेज़ की बात सुनी ,घर वाले हुए बावले से
मुझ से बिन बोले ,बिन पूछे ,मेरी शादी करदी पक्की
और मैं कुछ बोला तो बोले ,राजा बेटा ,तू है लक्की
सुनते है बहू साहजी की ,प्यारी इकलौती बेटी है
आ करे निहाल ,हमें ,उसके ,पैरों में लक्ष्मी बैठी है
उनके मुनीमजी कहते थे ,वो तुझको फॉरेन भेजेंगे
यदि नयी नहीं सेकंड हैंड मोटर दहेज़ में वो देंगे
अच्छा बंगला है ,इज्जत है ,दो दो अंग्रेजी कारे है
तेरी तक़दीर तेज बेटा ,अब तो बस वारे न्यारे है
मैं बोला वो सब ठीक मगर मुझसे भी तो पुछवा लेते
लड़की न दिखाई ,कम से कम ,फोटो ही तो दिखला देते
'फोटो को, क्या चाटेगा ,वो सुन्दर भोली भाली है
है सभी बात में अच्छी ,बस कुछ लम्बी है कुछ काली है
लम्बी तो तेरी माँ भी है और काले कृष्ण कन्हैया थे
हमको क्या जब वो दहेज़ में क्रीम पाउडर सब देंगे
है बूढ़े ससुर और बेटी उनकी इकलौती वारिस है
अब ना मत करो लाल मेरे ,बस मेरी यही गुजारिश है
फादर को न बहू लेकिन ,था प्यार दहेजी पेटी से
मैं शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से
इतनी चिकनी चुपड़ी बातें सुन मेरा मन भी डोल गया
फॉरेन जाने के चक्कर में ,मैं ख़ुशी ख़ुशी हाँ बोल गया
फिर महीने भर के अंदर ही गूंजी शादी की शहनाई
पहने सुधारवादी चोगा ,सारी रस्मो की भरपाई
शादी थी हुई बिना परदे ,पर वह परदा ना तो क्या था
उनके मुख पर परदा न मगर मेरी आँखों पर परदा था
वह झीना झीना परदा था ,मोटे दहेज़ और मोटर का
फॉरेन जाने की आशा का ,दौलत पाने के चक्कर का
होगयी खैर शादी मेरी ,लेकिन दहेज़ में क्या पाया
नखरे,ताने देनेवाली ,है धन्य प्रभु तेरी माया
मिल गया एक हेलिकॉफ्टर ,जो पग जमीन पर नहीं रखे
बीबी न रेडियो एक मिला ,जो दिन भर बोले ,नहीं थके
कार दहेजी नहीं मिली ,लेकिन सरकार मिली मुझको
पहले थी आँखें चार और फिर आँखे चार मिली मुझको
यार दोस्त ये कहते है बीबी तो बड़ी हसीन मिली
जो स्वयं रेडियो ,हेलिकॉफ्टर ,ऐसी एक मशीन मिली
एक ऐसी मैना मिली मुझे जो मैका मैका जाती है
ससुराल पिंजरा लगता है ,अम्मा की याद सताती है
चूल्हा फूंके ,आंसू आवे ,रोटी सेके तो हाथ जले
क्या खूब मिली बीबी मुझको ये पूर्व जनम के कर्म फले
खोदा पहाड़ निकली चुहिया ,अपनी करनी पर पछताए
अब राम भला करदे मेरा ,अबके से तो गंगा नहाये
जला दूध का ,रहूँ छाछ से ,एक हाथ की छेटी से
मैं शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
(यह रचना १९६२ में लिखी गयी थी )
Bahut sundar.
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