ग़ज़ल
यहाँ कुछ लोग मच्छराना है
जिनकी आदत ही भिनभिनाना है
गाल पर बैठना है चुपके से ,
और हौले से काट जाना है
बजन हल्का है बात हलकी है,
रोग भारी मगर फैलाना है
काम करते है अब अँधेरे में ,
रौशनी देख मुंह छिपाना है
बात करते है आग शोलों की,
डर के धुँवें से भाग जाना है
चूसते रहते खून है सबका ,
शौक बतलाते आशिकाना है
कौन है,कितने है क्या बतलाएं,
आपने ,हमने ,सबने जाना है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
यहाँ कुछ लोग मच्छराना है
जिनकी आदत ही भिनभिनाना है
गाल पर बैठना है चुपके से ,
और हौले से काट जाना है
बजन हल्का है बात हलकी है,
रोग भारी मगर फैलाना है
काम करते है अब अँधेरे में ,
रौशनी देख मुंह छिपाना है
बात करते है आग शोलों की,
डर के धुँवें से भाग जाना है
चूसते रहते खून है सबका ,
शौक बतलाते आशिकाना है
कौन है,कितने है क्या बतलाएं,
आपने ,हमने ,सबने जाना है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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