स्विमिंगपूल और डेंगू
१
अदना सा देख कर के ,'इग्नोर'नहीं करना,
हर शख्सियत की होती ,अपनी ही अहमियत है
जो काम होता जिसका , करता है अच्छा वो ही ,
तलवार क्या करे जब ,सुई की जरूरत है
कहते है हाथी तक भी, घबराता चींटी से है,
वो सूंड में जा उसकी , कर देता मुसीबत है
कल तक जो था लबालब ,हम तैरते थे जिसमे,
डेंगू के डर से खाली ,स्वमिंगपूल अब है
२
मच्छर जिसे हम यूं ही ,देते मसल मसल थे ,
अब तोप से भयानक ,उसकी नसल हुई है
डेंगू के इस कहर से ,सब कांपने लगे है,
कितनी दवाइयाँ भी ,अब बेअसर हुई है
डेंगू के डर से देखो, अब हो गया है खाली,
था कल तलक लबालब ,जो तरणताल प्यारा
जबसे गयी जवानी, हम हो गए है खाली ,
इस तरणताल सा ही ,अब हाल है हमारा
३
तुच्छ को तुच्छ कभी ,मत समझो भूले से ,
बड़े बड़े उच्चों को ,ध्वंस कर सकता है
छोटी सी लड़की ने ,संत को पस्त किया ,
आज भी आसाराम ,जेल में सड़ता है
तुच्छ सी तीली से ,जंगल जल जाता है,
तुच्छ सी गोली से ,प्राण निकल सकता है
छोटा सा मच्छर भी ,अगर काट लेता है,
मलेरिया ,डेंगू से ,बड़ा विकल करता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
१
अदना सा देख कर के ,'इग्नोर'नहीं करना,
हर शख्सियत की होती ,अपनी ही अहमियत है
जो काम होता जिसका , करता है अच्छा वो ही ,
तलवार क्या करे जब ,सुई की जरूरत है
कहते है हाथी तक भी, घबराता चींटी से है,
वो सूंड में जा उसकी , कर देता मुसीबत है
कल तक जो था लबालब ,हम तैरते थे जिसमे,
डेंगू के डर से खाली ,स्वमिंगपूल अब है
२
मच्छर जिसे हम यूं ही ,देते मसल मसल थे ,
अब तोप से भयानक ,उसकी नसल हुई है
डेंगू के इस कहर से ,सब कांपने लगे है,
कितनी दवाइयाँ भी ,अब बेअसर हुई है
डेंगू के डर से देखो, अब हो गया है खाली,
था कल तलक लबालब ,जो तरणताल प्यारा
जबसे गयी जवानी, हम हो गए है खाली ,
इस तरणताल सा ही ,अब हाल है हमारा
३
तुच्छ को तुच्छ कभी ,मत समझो भूले से ,
बड़े बड़े उच्चों को ,ध्वंस कर सकता है
छोटी सी लड़की ने ,संत को पस्त किया ,
आज भी आसाराम ,जेल में सड़ता है
तुच्छ सी तीली से ,जंगल जल जाता है,
तुच्छ सी गोली से ,प्राण निकल सकता है
छोटा सा मच्छर भी ,अगर काट लेता है,
मलेरिया ,डेंगू से ,बड़ा विकल करता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।