मेरी सुबह बन जाती है
सवेरे सवेरे ,
तुम्हारे हाथों से बनाया,
गरम चाय का प्याला ,
जब मेरे हाथों में आता है
और उससे उठती हुई ,
गरम गरम वाष्प की लहरें ,
जब मेरे ओठों से टकराती है
मुझे तेरे जिस्म की गर्मी ,
महसूस कराती है
चाय के गुलाबी रंग में ,
तेरी छवि दिखलाती है
तेरा ये स्वरूप देख कर ,
मेरे होंठ कुलबुलाने लगते है
मे ,बावरा सा ,
रूप रास पान करने की लालसा में,
उसे होठों से लगा लेता हूँ
और देर तक मेरे होंठ,
उस ऊष्मा की ,
गरमाहट की झनझनाहट से ,
तरंगित होते रहते है
ऐसा मेरे साथ ,
रोज रोज होता है
जब चाय के रूप में ,
तू मुझे लुभाती है
और मेरी सुबह बन जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सवेरे सवेरे ,
तुम्हारे हाथों से बनाया,
गरम चाय का प्याला ,
जब मेरे हाथों में आता है
और उससे उठती हुई ,
गरम गरम वाष्प की लहरें ,
जब मेरे ओठों से टकराती है
मुझे तेरे जिस्म की गर्मी ,
महसूस कराती है
चाय के गुलाबी रंग में ,
तेरी छवि दिखलाती है
तेरा ये स्वरूप देख कर ,
मेरे होंठ कुलबुलाने लगते है
मे ,बावरा सा ,
रूप रास पान करने की लालसा में,
उसे होठों से लगा लेता हूँ
और देर तक मेरे होंठ,
उस ऊष्मा की ,
गरमाहट की झनझनाहट से ,
तरंगित होते रहते है
ऐसा मेरे साथ ,
रोज रोज होता है
जब चाय के रूप में ,
तू मुझे लुभाती है
और मेरी सुबह बन जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।