दो क्षणिकाएँ
१
वो बेटा ,
जो होता है माँ बाप की आँखों का तारा,
जिसमे उनके प्राण अटकते है
बूढ़े होने पर वो ही माँ बाप ,
उस बेटे की आँखों में खटकते है
२
वृक्ष की डाल ,
जब फलों से लद जाती है ,
थोड़ी झुक जाती है
आदमी ,बुढ़ापे में ,
जब अनुभव से लद जाता है,
उसकी कमर झुक जाती है
समझदार ,वो कहलाते है
जो लदे हुए फलों का
और बुढ़ापे के अनुभवो का ,
फायदा उठाते है
घोटू
१
वो बेटा ,
जो होता है माँ बाप की आँखों का तारा,
जिसमे उनके प्राण अटकते है
बूढ़े होने पर वो ही माँ बाप ,
उस बेटे की आँखों में खटकते है
२
वृक्ष की डाल ,
जब फलों से लद जाती है ,
थोड़ी झुक जाती है
आदमी ,बुढ़ापे में ,
जब अनुभव से लद जाता है,
उसकी कमर झुक जाती है
समझदार ,वो कहलाते है
जो लदे हुए फलों का
और बुढ़ापे के अनुभवो का ,
फायदा उठाते है
घोटू
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