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शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

माँ का मंतर

          माँ का मंतर

मम्मा, अब सर पर चुनाव है ,उठा रहा है सर मोदी
कैसे उसका करूं  सामना ,कोई टिप्स मुझे दोगी
अबकी बार ,कठिन रस्ता है,बी जे पी है बहुत मुखर
छोटे  कई रीजनल दल भी,उठा रहे है ,अपना सर
यूं भी जनता त्रस्त बहुत है बढ़ती जाती मंहगाई
रोज रोज के घोटालों ने ,अपनी छवि है बिगड़ाई
माता ,ऐसा मंतर दे दो,जनता का दिल जीत सकूं
उसके रिसते घावों को मै ,जल्दी से कर ठीक सकूं
माँ बोली ,बेटा ,भारत की जनता काफी 'कूल'है
भोली भाली,सीधी सादी ,और 'इमोशनल फूल'है
इन्हे सुनाओ गाथा, दादी ,पापा के बलिदान की 
बहुत फायदा तुमको देगी ,ये सब बातें काम की
इनको करो 'एक्सप्लोइट 'तुम,दर्द भरी निज बातों से
पाओ  'सिम्पथी वोट 'फायदा ले उनके जज्बातों से
आश्वासन तुम थोक भाव से,अपने भाषण में बांटो
रोटी खाओ दलित के घर और रात झोपड़ी में काटो
ये सब बातें ,तुम्हारी छवि ,जनता में चमकाएगी
मुश्किल में ,मै तो हूँ ही,बहना भी हाथ बंटाएगी
इतनी बड़ी फ़ौज चमचों की ,खड़ी तुम्हारे साथ है 
तुम्हारी हाँ में हाँ कह कर ,सदा उठाती  हाथ है
क्षेत्रिय दल से मत डर बेटे ,सबकी फ़ाइल है तैयार
लटका रखी ,सभी पर मैंने ,सी बी आई की तलवार
इस चुनाव में हम जीते तो तेरे सर होगा सेहरा
तू प्रधान मंत्री भारत का ,बने ,यही सपना मेरा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-10-2013) "ख़ुद अपना आकाश रचो तुम" चर्चामंच : चर्चा अंक -1410” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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