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गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

विनती प्रभु से

         विनती प्रभु से

मुझको बस इतना छोटा सा वर दो भगवन ,
सच्चे दिल से ,दीन  दुखी की मदद कर सकूं
जिनके मन में एकाकीपन,थकन ,दहन हो,
दो लम्हे भी ,अगर ख़ुशी के ,वहां भर सकूं
सबके अपने अपने दुःख है ,पीडायें है
सुखी न कोइ ,सबकी अपनी ,चिंतायें है
कोई रुग्ण बदन है तो कोई निर्धन है,
खडी मुसीबत ,रहती हरदम ,मुंह बायें  है
हे प्रभु,मुझको उनकी सेवा का अवसर दो,
तृप्ति मिलेगी ,थोड़ी पीड़ा ,अगर हर सकूं
जिनके मन में ,एकाकी पन  ,थकन,दहन हो,
दो लम्हे भी ,अगर खुशी के,वहां भर सकूं
कोई बेटे,पोतों वाला ,मगर अकेला
कोई निर्बल,वृद्ध ,रोज दुःख ,करता झेला
लेकिन स्वाभिमान का जज्बा मन में भर के ,
विपदाओं से ,जूझां करता ,वो अलबेला
उसे सहारा दूं ,मै बन कर उसकी लाठी ,
उसके अंधियारे जीवन में ,ज्योत भर सकूं
जिसके मन में एकाकीपन,थकन,दहन हो,
दो लम्हे भी अगर खुशी के ,वहां भर सकूं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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