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सोमवार, 9 जुलाई 2018

मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा 

  मेरा घर संसार तुम्ही से 
खुशियां और त्योंहार तुम्ही से 
जो भी है सरकार  तुम्ही से 
सारा दारमदार  तुम्ही से 
मुझमे नवजीवन भरता है ,
मेरी सजनी प्यार तुम्हारा 
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा 

चुटकी भर सिन्दूर मांग में ,
डाल फंसाया प्रेमजाल में 
कैद किया मुझको बिंदिया में,
और सजाया मुझे भाल में 
हाथों की हथकड़ी बना कर ,
मुझे चूड़ियों में है बाँधा 
या फिर पावों की बिछिया में,
रहा सिमिट मैं सीधासादा 
एड़ी से लेकर चोंटी तक ,
फैला कारागार तुम्हारा 
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा 

नहीं मुताबिक़ अपने मन के ,
जी सकता मैं ,कभी चाह कर 
पका अधपका खाना पड़ता ,
मुश्किल से ,वो भी सराह कर 
गलती से ,कोई औरत की ,
तारीफ़ कर दी,खैर नहीं है 
'कोर्ट मार्शल 'हो जाने में ,
मेरा ,लगती देर नहीं है 
तुम्हारे डर आगे दबता ,
मन का सभी गुबार हमारा 
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा
 
तुम सजधज कर ,रूप बाण से ,
घायल करती मेरा तनमन 
मात्र इशारे पर ऊँगली के,
नाच करूं मैं कठपुतली बन 
जाने कैसा आकर्षण है 
तुम्हारी मदभरी नज़र में 
बोझा लदे हुए गदहे सा ,
भागा करता इधर उधर मैं 
तुम को खुश रख कर ही मिलता ,
प्यार भरा व्यवहार तुम्हारा 
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

निराले पिया 

ऐसे प्यारे निराले हमारे पिया 
मैंने पहली नज़र में है दिल दे दिया 
रात पहली मिलन की था उनने कहा ,
पूरे सपने तेरे सारे कर दूंगा  मैं 
चाँद सा मुख लिए आओ आगोश में ,
मांग तेरी सितारों से भर दूंगा मैं 
उनने वादा निभाने की कोशिश करी ,
मुझको साड़ी दी सलमा सितारों भरी 
पांच सितारा एक होटल में लेकर गए ,
'फाइवस्टार 'चॉकलेट दी केडबरी 
उनने दिल से निभाया जो वादा किया 
ऐसे प्यारे निराले हमारे पिया 
मैं सजूं ना सजू ,चाहे कैसी रहूँ 
हुस्न की मुझको कहते सदा मल्लिका 
ऐसे प्यारे डीयर मेरे इंजीनियर ,
बांधते मेरी तारीफ़ के पुल सदा 
उनको जैसा भी दूँ मैं पका कर खिला ,
खाते चटखारे ले प्रेम के साथ है 
उनका हर दिन ही वेलेंटाइन दिवस ,
और हनीमून वाली हरेक रात है 
ढूंढते ना कभी ,मुझमें वो खामियां 
बड़े प्यारे निराले हमारे पिया 

घोटू 
करारे नोट 

कल तलक हम भी करारे नोट थे ,आजकल तो महज चिल्लर रह गए 
कोई हमको पर्स में रखता नहीं ,गुल्लकों में बस सिमट कर रह गये 
था जमाना हमको जब पाता कोई ,जरिया बनते थे ख़ुशी और हर्ष का 
कल तलक  कितनी हमारी पूछ थी ,बन गए हम आज बोझा पर्स का 
छोटे  बटुवे में छुपा कर लड़कियां ,लिपटा अपने सीने से रखती हमे 
उँगलियों से सहला  कर गिनती हमें प्यार वाली निगाह  से तकती हमें 
घटा दी मंहगाई ने क्रयशक्तियाँ ,हुआ अवमुल्यन हम घट कर रह गए
कल तलक हम भी करारे नोट थे ,आजकल तो महज चिल्लर रह गए 
नेताओं ने दीवारों में चुन रखा ,वोट पाने का हम जरिया बन गए 
चुनावों में वोट हित  बांटा हमें ,जीत का ऐसा नज़रिया बन गए 
जाते जब इस हाथ से उस हाथ में ,काम में आ जाती है फुर्ती सदा 
चेहरे पर  झांई बिलकुल ना पड़ी ,लगे कहलाने हम काली सम्पदा 
चलन में थे किन्तु चल पाए नहीं ,लॉकरों में हम दुबक कर रह गए 
कल तलक हम भी करारे नोट थे आजकल तो महज चिल्लर रह गए 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पके हुए फल 

हम तो पके हुए से फल है ,कब तक डाली पर लटकेंगे 
गिरना ही अपनी नियति है ,आज नहीं तो कल टपकेंगे 
इन्तजार में लोग  खड़े है ,कब हम टपके ,कब वो पायें 
सबके ही मन में लालच है ,मधुर स्वाद का मज़ा उठायें 
देर टपकने की ही है देखो,हमको पाने सब झपटेंगे 
हम तो पके हुए से फल है ,कब तक डाली पर लटकेंगे 
ज्यादा देर रहे जो लटके ,पत्थर फेंक तोड़ देंगे  वो 
मीठा गूदा रस खा लेंगे ,गुठली वहीँ छोड़ देंगे  वो 
ज्यादा देर टिक गए तो फिर ,सबकी आँखों में खटकेंगे 
हम तो पके हुए से फल है ,कब तक डाली पर लटकेंगे 
गिरना ही अपनी नियति है ,आज नहीं तो कल टपकेंगे 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जीवन की फड़फड़ाहट 

उन्मुक्त बचपन की चहचहाहट 
किशोरावस्था की कुलबुलाहट 
जवानी की सुगबुगाहट 
हुस्न की चमचमाहट 
मन में  प्यार की गरमाहट 
पत्नी के कोमल हाथों की थपथपाहट 
हनीमून की खिलखिलाहट 
प्यार और जिम्मेदारियों की  मिलावट 
गृहस्थी की गड़बड़ाहट 
पैसा कमाने की हड़बड़ाहट 
जीवन की गाडी की खड़खड़ाहट 
परेशानिया और छटपटाहट 
आने लगती है थकावट  
जब रूकती है व्यस्तता की फड़फड़ाहट  
आती है बुढ़ापे की फुसफुसाहट 
शिथिल तन की कुलबुलाहट 
नज़रों की धुंधलाहट 
गायब होती मौजमस्ती की गमगमाहट
मन में होती झनझनाहट 
अंकल कहे जाने पर चिड़चिड़ाहट 
स्वास्थ्य  में गिरावट 
हर काम में रुकावट 
ऐसे में भगवान के प्रति झुकावट   
पुरानी  यादों की गरमाहट 
और चेहरे पर मुस्कराहट 
दूर कर देती है बुढ़ापे की गड़बड़ाहट 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '

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