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एक सन्देश-
यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |
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सोमवार, 14 अक्टूबर 2019
【SEAnews】Review:The baptism of the Holy Spirit (He who has ears to hear, let him hear!)-E
शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2019
सीख
,
जब मैंने केनवास के जूते पहने
घूमने जाने के लिए ,सुबह,आज
तो मेरी समझ में आये ,जिंदगी
जीने की कला के दो गहरे राज
एक तो जूता पहनते वक़्त ,जूते के
पिछले भाग में एड़ी डालने के लिए ,
ऊँगली डालने से एडजस्ट करने पर ,
जूता ठीक से एड़ी से चिपकता है
उसी प्रकार कई बार ,कुछ कार्यों को
ठीक से संपन्न करने के लिए ,
पड़ती ऊँगली करने की आवश्यकता है
दूसरा जूते की जीभ को दबा कर
उसके मुंह को बांध से बाँधने से ,
जूते फिट रहते है
उसी तरह कुछ लोगों की जिव्हा पर
लगाम लगाने से ,
वो ज्यादा चूंचपड़ नहीं करते है
घोटू
,
जब मैंने केनवास के जूते पहने
घूमने जाने के लिए ,सुबह,आज
तो मेरी समझ में आये ,जिंदगी
जीने की कला के दो गहरे राज
एक तो जूता पहनते वक़्त ,जूते के
पिछले भाग में एड़ी डालने के लिए ,
ऊँगली डालने से एडजस्ट करने पर ,
जूता ठीक से एड़ी से चिपकता है
उसी प्रकार कई बार ,कुछ कार्यों को
ठीक से संपन्न करने के लिए ,
पड़ती ऊँगली करने की आवश्यकता है
दूसरा जूते की जीभ को दबा कर
उसके मुंह को बांध से बाँधने से ,
जूते फिट रहते है
उसी तरह कुछ लोगों की जिव्हा पर
लगाम लगाने से ,
वो ज्यादा चूंचपड़ नहीं करते है
घोटू
झिक झिक किसम का आदमी
इस तरह मुझको सताया मत करो ,
मैं जरा झिक झिक किसम का आदमी हूँ
अदाओं से यूं रिझायां मत करो ,
मैं जरा आशिक़ किसम का आदमी हूँ
मेरी किस्मत में मोहब्बत ही लिखी है
नहीं करना किसी से नफरत लिखी है
भ्रमरों के मानिंद इस खिलते चमन में ,
फूल की और कलियों की सोहबत लिखी है
महक से अपनी लुभाया मत करो ,
मैं जरा भौतिक किसम का आदमी हूँ
इस तरह मुझको सताया मत करो ,
मैं जरा झिक झिक किसम का आदमी हूँ
जिस पे दिल आया उसे अपना लिया
लगन जिससे लगी ,उसको पा लिया
मैं मोहब्बत बांटता रहता हूँ हरदम ,
बैर कोई से ,कभी भी ना किया
प्राण की ,की प्रतिष्ठा पाषाण में ,
मैं जरा धार्मिक किसम का आदमी हूँ
इस तरह मुझको सताया मत करो ,
मैं जरा झिक झिक किसम का आदमो हूँ
आज में जीता ,फिकर कल की नहीं है
फांका मस्ती तो मेरी आदत रही है
सुनता तो मैं ,बात सबकी ही हूँ लेकिन ,
करता वोही ,दिल जो कहता है,सही है
मैं नहीं फ़कीर हूँ कुछ लकीरों का ,
मैं जरा मौलिक किसम का आदमी हूँ
इस तरह मुझको सताया मत करो ,
मैं जरा झिक झिक किसम का आदमी हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
इस तरह मुझको सताया मत करो ,
मैं जरा झिक झिक किसम का आदमी हूँ
अदाओं से यूं रिझायां मत करो ,
मैं जरा आशिक़ किसम का आदमी हूँ
मेरी किस्मत में मोहब्बत ही लिखी है
नहीं करना किसी से नफरत लिखी है
भ्रमरों के मानिंद इस खिलते चमन में ,
फूल की और कलियों की सोहबत लिखी है
महक से अपनी लुभाया मत करो ,
मैं जरा भौतिक किसम का आदमी हूँ
इस तरह मुझको सताया मत करो ,
मैं जरा झिक झिक किसम का आदमी हूँ
जिस पे दिल आया उसे अपना लिया
लगन जिससे लगी ,उसको पा लिया
मैं मोहब्बत बांटता रहता हूँ हरदम ,
बैर कोई से ,कभी भी ना किया
प्राण की ,की प्रतिष्ठा पाषाण में ,
मैं जरा धार्मिक किसम का आदमी हूँ
इस तरह मुझको सताया मत करो ,
मैं जरा झिक झिक किसम का आदमो हूँ
आज में जीता ,फिकर कल की नहीं है
फांका मस्ती तो मेरी आदत रही है
सुनता तो मैं ,बात सबकी ही हूँ लेकिन ,
करता वोही ,दिल जो कहता है,सही है
मैं नहीं फ़कीर हूँ कुछ लकीरों का ,
मैं जरा मौलिक किसम का आदमी हूँ
इस तरह मुझको सताया मत करो ,
मैं जरा झिक झिक किसम का आदमी हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
परिवर्तन
चहचहाती थी कभी जो एक चिड़ी सी
आजकल रहने लगी है चिड़चिड़ी सी
वो बड़े दिल की बड़ी बातें सुहानी ,
हो गयी उनमे कहीं कुछ गड़बड़ी सी
करती थी जो प्यार का हरदम प्रदर्शन
हुए दुर्लभ आजकल उनके है दर्शन
बरसती थी प्यार की जो सदा बदली
आजकल आती नज़र है बदली बदली
फूल खिलते ,हंसती जब थी फूलझड़ी सी
लगाती शिकायतों की अब झड़ी सी
चहचहाती थी कभी जो एक चिड़ी सी
आजकल रहने लगी है चिड़चिड़ी सी
ख़ुशी से थी खिलखिलाती जो हसीना
हुई मुद्दत ,कभी खुलकर वो हंसी ना
किया करती ,हमें घायल ,नज़र जिसकी
लग गयी उस पर न जाने नज़र किसकी
बदन जिसका श्वेत ,थी संगमरमरी सी
उसकी आभा लगती है अब कुछ मरी सी
चहचहाती थी कभी जो एक चिड़ी सी
आजकल रहने लगी है चिड़चिड़ी सी
जो हमारे हृदय पर थी राज करती
आजकल है हमसे वो नाराज लगती
कभी कोमल कली सा था जो मृदुल तन
समय के संग , आ गया है परिवर्तन
हम पे ताने मारती है वो तनी सी ,
उखड़ी उखड़ी दूर रहती है खड़ी सी
चहचहाती थी कभी जो एक चिड़ी सी
हो गयी है आजकल वो चिड़चिड़ी सी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चहचहाती थी कभी जो एक चिड़ी सी
आजकल रहने लगी है चिड़चिड़ी सी
वो बड़े दिल की बड़ी बातें सुहानी ,
हो गयी उनमे कहीं कुछ गड़बड़ी सी
करती थी जो प्यार का हरदम प्रदर्शन
हुए दुर्लभ आजकल उनके है दर्शन
बरसती थी प्यार की जो सदा बदली
आजकल आती नज़र है बदली बदली
फूल खिलते ,हंसती जब थी फूलझड़ी सी
लगाती शिकायतों की अब झड़ी सी
चहचहाती थी कभी जो एक चिड़ी सी
आजकल रहने लगी है चिड़चिड़ी सी
ख़ुशी से थी खिलखिलाती जो हसीना
हुई मुद्दत ,कभी खुलकर वो हंसी ना
किया करती ,हमें घायल ,नज़र जिसकी
लग गयी उस पर न जाने नज़र किसकी
बदन जिसका श्वेत ,थी संगमरमरी सी
उसकी आभा लगती है अब कुछ मरी सी
चहचहाती थी कभी जो एक चिड़ी सी
आजकल रहने लगी है चिड़चिड़ी सी
जो हमारे हृदय पर थी राज करती
आजकल है हमसे वो नाराज लगती
कभी कोमल कली सा था जो मृदुल तन
समय के संग , आ गया है परिवर्तन
हम पे ताने मारती है वो तनी सी ,
उखड़ी उखड़ी दूर रहती है खड़ी सी
चहचहाती थी कभी जो एक चिड़ी सी
हो गयी है आजकल वो चिड़चिड़ी सी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
डांडिया पर्व -एक अनुभूति
जब हम छोटे बच्चे होते है
बड़े निश्छल और निर्विकार भाव से ,
कभी हँसते है ,कभी रोते है
हर किसी से मुस्करा कर दोस्ती कर लेते है
दांतों पर अंगूठा लगा ,कट्टी कर लेते है
उंगली से उंगली मिला बट्टी कर लेते है
पर बड़े होने पर ,स्वार्थ और लालच में ,
इतने ज्यादा सन जाते है
कि भाई भाई भी ,एक दुसरे के ,
दुश्मन बन जाते है
वैसे ही ये छोटे छोटे डांडिये
जिनको अपने हाथों में लिये ,
हम किया करते रास है
मन में ख़ुशी और उल्लास है
पर ये ही डांडिये बड़े होने पर लट्ठ बन जाएंगे
लड़ाई और झगड़े में आपस में टकराएंगे
किसी के हाथ पाँव तोड़ेगे
किसी का सर फोड़ेंगे
शोर शराबा करेंगे
खून खराबा करेंगे
बन जाएंगे एक दुसरे के दुश्मन
बतलाओ क्या अच्छा है ,
लड़ने भिड़ने वाला बड़ापन
या प्यार फैलता हुआ बचपन ?
घोटू
जब हम छोटे बच्चे होते है
बड़े निश्छल और निर्विकार भाव से ,
कभी हँसते है ,कभी रोते है
हर किसी से मुस्करा कर दोस्ती कर लेते है
दांतों पर अंगूठा लगा ,कट्टी कर लेते है
उंगली से उंगली मिला बट्टी कर लेते है
पर बड़े होने पर ,स्वार्थ और लालच में ,
इतने ज्यादा सन जाते है
कि भाई भाई भी ,एक दुसरे के ,
दुश्मन बन जाते है
वैसे ही ये छोटे छोटे डांडिये
जिनको अपने हाथों में लिये ,
हम किया करते रास है
मन में ख़ुशी और उल्लास है
पर ये ही डांडिये बड़े होने पर लट्ठ बन जाएंगे
लड़ाई और झगड़े में आपस में टकराएंगे
किसी के हाथ पाँव तोड़ेगे
किसी का सर फोड़ेंगे
शोर शराबा करेंगे
खून खराबा करेंगे
बन जाएंगे एक दुसरे के दुश्मन
बतलाओ क्या अच्छा है ,
लड़ने भिड़ने वाला बड़ापन
या प्यार फैलता हुआ बचपन ?
घोटू
मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019
'From Ms. Reem'?..
My name is Reem E. Al-Hashimi, the Emirates Minister of State and Managing Director for the United Arab Emirates (Dubai) World Expo 2020 Committee. I am writing you to stand as my partner to receive my share of gratification from foreign companies whom I helped during the bidding exercise towards the Dubai World Expo 2020 Committee.
As a married Arab women serving as a minister, there is a limit to my personal income and investment level. For this reason, I cannot receive such a huge sum back to my country, so an agreement was reached with the foreign companies to direct the gratifications to an open beneficiary account with a financial institution where it will be possible for me to instruct further transfer of the fund to a third party account for investment purpose which is the reason i contacted you to receive the fund as my partner for investment in your country.
The amount is valued at $47,745,533.00 United States dollars with a financial institution waiting my instruction for further transfer to a destination account as soon as I have your information indicating interest to receive and invest the fund.I will compensate you with 30% of the total amount and you will also get benefit from the investment.
If you can handle the fund in a good investment, get back to me for more details on this email; ( sm9546729@gmail.com )
Sincerely,
Ms. Reem.
रविवार, 29 सितंबर 2019
चस्का चुनाव का
एक नवधनाढ्य से ,जब सम्भल नहीं पायी उसकी माया
तो उसे चुनाव लड़ कर नेता बनने का शौक चर्राया
वो मेरे पास आया
और बोला ,मैं अपनी जयजयकार सदा देखना चाहता हूँ
खुद को फूलों की मालाओं से लदा देखना चाहता हूँ
इसलिए मन कर रहा है नेता बनू और चुनाव लड़ूँ
आप बताइये कौनसी पार्टी ज्वाइन करूँ
मैंने कहा कई पार्टियों के प्रमुख होते है बड़े विकट
करोड़ों में बेचते है चुनाव का टिकिट
तुम उनके चक्कर में मत पड़ो
इससे बेहतर है कि इंडिपेंडेंट चुनाव लड़ो
कई बार चुनाव के बाद नतीजों की ऐसी स्तिथि आती है
जब किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता,
तब इंडिपेंडेंट केंडिडेट की वेल्यू बहुत बढ़ जाती है
ऐसे में उसके भाग्य का कमल ऐसा खिलता है
कि धन के साथ साथ ,उसे मंत्री पद भी मिलता है
वो ललचाया और बोलै ठीक है मैं इंडिपेंडेंट चुनाव लडूंगा
पर इस राह पर आगे कैसे बढूंगा
हमने कहा इसके लिए आपको ,सबको सर झुका कर ,
प्रणाम करने की आदत डालनी होगी
और अपना गुणगान करनेवाले चमचों की
एक फ़ौज पालनी होगी
गरीब जनता के वोट पाने के लिए उन्हें लुभाना पड़ता है
पैसा और दारू ,पानी की तरह बहाना पड़ता है
पर ये काम आसान नहीं है ,
अन्य पार्टियों की नज़र से बचना पड़ता है
और जब आचार संहिता लग जाती है ,
तो बहुत संभल कर चलना पड़ता है
आप अपने चमचों से अलग अलग संस्थाएं
जैसे ' महिला उत्थान समिति 'बनवाये
और उनसे 'मातृशक्ति महिमा मंडन 'जैसे ,
समारोहों का आयोजन करवाए
अपने आपको ऐसे समारोहों का मुख्य अतिथि बनवाएं
और वो आपके हाथों हर महिला को ,
साडी ,सिलाई मशीन या अन्य गृह उपयोगी
उपकरण भेंट करवाये
इसीतरह युवा विकास केंद्र 'स्थापित करवा ,
युवाओं को टेबलेट लेपटॉप का आपके हाथों वितरण होगा
और आपका प्रभावशाली भाषण होगा
वरिष्ठ नागरिक सेवा केंद्र '
सीनियर सिटिज़न सन्मान समारोह का आयोजन करवा
आपके हाथों बुजुर्गों को शाल अर्पित करवाएंगे
और आपके वोट सुनिश्चित हो जाएंगे
इसमें पैसा तो आपका लगेगा पर कोई और दिखायेगा खर्चा
मुख्य अतिथि के रूप में आपका होगा चर्चा
लोग आपको पहचानने लग जाएंगे
और जब ये इन्वेस्टमेंट वोट में परिवर्तित होगा ,
आपके भाग्य जग जाएंगे
ये चुनाव का खेल बड़ा कॉम्प्लिकेटेड है ,आसान नहीं है
कई हथकंडे अपनाने पड़ते है ,आपको ज्ञान नहीं है
पर जब एक बार आप पूरे उत्साह और लगन के साथ
खेल के मैदान में उतरेंगे
तो अपनी बुद्धि और धन के बल पर ,
नैया पार लगा ही लेंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एक नवधनाढ्य से ,जब सम्भल नहीं पायी उसकी माया
तो उसे चुनाव लड़ कर नेता बनने का शौक चर्राया
वो मेरे पास आया
और बोला ,मैं अपनी जयजयकार सदा देखना चाहता हूँ
खुद को फूलों की मालाओं से लदा देखना चाहता हूँ
इसलिए मन कर रहा है नेता बनू और चुनाव लड़ूँ
आप बताइये कौनसी पार्टी ज्वाइन करूँ
मैंने कहा कई पार्टियों के प्रमुख होते है बड़े विकट
करोड़ों में बेचते है चुनाव का टिकिट
तुम उनके चक्कर में मत पड़ो
इससे बेहतर है कि इंडिपेंडेंट चुनाव लड़ो
कई बार चुनाव के बाद नतीजों की ऐसी स्तिथि आती है
जब किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता,
तब इंडिपेंडेंट केंडिडेट की वेल्यू बहुत बढ़ जाती है
ऐसे में उसके भाग्य का कमल ऐसा खिलता है
कि धन के साथ साथ ,उसे मंत्री पद भी मिलता है
वो ललचाया और बोलै ठीक है मैं इंडिपेंडेंट चुनाव लडूंगा
पर इस राह पर आगे कैसे बढूंगा
हमने कहा इसके लिए आपको ,सबको सर झुका कर ,
प्रणाम करने की आदत डालनी होगी
और अपना गुणगान करनेवाले चमचों की
एक फ़ौज पालनी होगी
गरीब जनता के वोट पाने के लिए उन्हें लुभाना पड़ता है
पैसा और दारू ,पानी की तरह बहाना पड़ता है
पर ये काम आसान नहीं है ,
अन्य पार्टियों की नज़र से बचना पड़ता है
और जब आचार संहिता लग जाती है ,
तो बहुत संभल कर चलना पड़ता है
आप अपने चमचों से अलग अलग संस्थाएं
जैसे ' महिला उत्थान समिति 'बनवाये
और उनसे 'मातृशक्ति महिमा मंडन 'जैसे ,
समारोहों का आयोजन करवाए
अपने आपको ऐसे समारोहों का मुख्य अतिथि बनवाएं
और वो आपके हाथों हर महिला को ,
साडी ,सिलाई मशीन या अन्य गृह उपयोगी
उपकरण भेंट करवाये
इसीतरह युवा विकास केंद्र 'स्थापित करवा ,
युवाओं को टेबलेट लेपटॉप का आपके हाथों वितरण होगा
और आपका प्रभावशाली भाषण होगा
वरिष्ठ नागरिक सेवा केंद्र '
सीनियर सिटिज़न सन्मान समारोह का आयोजन करवा
आपके हाथों बुजुर्गों को शाल अर्पित करवाएंगे
और आपके वोट सुनिश्चित हो जाएंगे
इसमें पैसा तो आपका लगेगा पर कोई और दिखायेगा खर्चा
मुख्य अतिथि के रूप में आपका होगा चर्चा
लोग आपको पहचानने लग जाएंगे
और जब ये इन्वेस्टमेंट वोट में परिवर्तित होगा ,
आपके भाग्य जग जाएंगे
ये चुनाव का खेल बड़ा कॉम्प्लिकेटेड है ,आसान नहीं है
कई हथकंडे अपनाने पड़ते है ,आपको ज्ञान नहीं है
पर जब एक बार आप पूरे उत्साह और लगन के साथ
खेल के मैदान में उतरेंगे
तो अपनी बुद्धि और धन के बल पर ,
नैया पार लगा ही लेंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुधवार, 25 सितंबर 2019
हास परिहास
भुला कर जीवन के सब त्रास
न आने दे चिंता को पास
रहें खुश ,क्यों हम रहे उदास
आओ हम करे हास परिहास
मिटा कर मन का सारा मैल
किसी से नहीं रखें हम बैर
समझ सब को अपना ,ना गैर
मनाएं सबकी खुशियां ,खैर
हमेशा मस्ती और उल्हास
आओ हम करें हास परिहास
करे जो इधर उधर की बात
हटा दें चमचों की जमात
सुधर जाएंगे सब हालात
प्रेम की बरसेगी बरसात
बसंती आएगा मधुमास
आओ हम करें हास परिहास
सुने ना ,ये ऐसा वो वैसा
न देखें कंगाली ना पैसा
सभी संग ,हंस कर मिले हमेशा
पाओगे ,जिसको दोगे जैसा
सभी के बन जाओगे ख़ास
आओ हम करें हास परिहास
सुनहरी सुबह रंगीली शाम
रहें हम ,निश्छल और निष्काम
हमेशा मुख पर हो मुस्कान
सभी का भला करेंगे राम
सदा खुशियों का होगा वास
आओ हम करें हास परिहास
न लेना ,देना कोई उधार
सभी में बांटो प्रेमोपहार
रखोगे यदि व्यवहार उदार
मिलेगा तुमको दूना प्यार
कर्म में अपने कर विश्वास
आओ हम करें हास परिहास
तोड़ कर चिताओं का जाल
उड़ें बन पंछी ,गगन विशाल
भुलादो ,बीत गया जो काल
न सोचो ,कल क्या होगा हाल
आज का पूर्ण मज़ा लो आज
आओ हम करें हास परिहास
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
भुला कर जीवन के सब त्रास
न आने दे चिंता को पास
रहें खुश ,क्यों हम रहे उदास
आओ हम करे हास परिहास
मिटा कर मन का सारा मैल
किसी से नहीं रखें हम बैर
समझ सब को अपना ,ना गैर
मनाएं सबकी खुशियां ,खैर
हमेशा मस्ती और उल्हास
आओ हम करें हास परिहास
करे जो इधर उधर की बात
हटा दें चमचों की जमात
सुधर जाएंगे सब हालात
प्रेम की बरसेगी बरसात
बसंती आएगा मधुमास
आओ हम करें हास परिहास
सुने ना ,ये ऐसा वो वैसा
न देखें कंगाली ना पैसा
सभी संग ,हंस कर मिले हमेशा
पाओगे ,जिसको दोगे जैसा
सभी के बन जाओगे ख़ास
आओ हम करें हास परिहास
सुनहरी सुबह रंगीली शाम
रहें हम ,निश्छल और निष्काम
हमेशा मुख पर हो मुस्कान
सभी का भला करेंगे राम
सदा खुशियों का होगा वास
आओ हम करें हास परिहास
न लेना ,देना कोई उधार
सभी में बांटो प्रेमोपहार
रखोगे यदि व्यवहार उदार
मिलेगा तुमको दूना प्यार
कर्म में अपने कर विश्वास
आओ हम करें हास परिहास
तोड़ कर चिताओं का जाल
उड़ें बन पंछी ,गगन विशाल
भुलादो ,बीत गया जो काल
न सोचो ,कल क्या होगा हाल
आज का पूर्ण मज़ा लो आज
आओ हम करें हास परिहास
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कैसे कैसे लोग
इसतरह के होते है कुछ आदमी
ढूंढते रहते है औरों में कमी
मगर वो खुद कमी का भंडार है
ठीक होने की जिन्हे दरकार है
प्रबल इतना हुआ उनका अहम है
उनसे बढ़ कर कोई ना ये बहम है
कमी खुद की ,नज़र उनको आई ना
देखते वो ,नहीं शायद ,आइना
घोटालों में लिप्त जिनके हाथ है
स्वार्थी चमचे कुछ उनके साथ है
बुरे धंधे , नहीं उनसे छूटते
जहाँ भी मिलता है मौका ,लूटते
अहंकारों से भरा हर एक्ट है
समझते खुद को बड़ा परफेक्ट है
शरीफों पर किया करते चोंट है
छुपी कोई उनके मन में खोट है
चाहते सत्ता में रहना लाजमी
इस तरह के होते है कुछ आदमी
घोटू
इसतरह के होते है कुछ आदमी
ढूंढते रहते है औरों में कमी
मगर वो खुद कमी का भंडार है
ठीक होने की जिन्हे दरकार है
प्रबल इतना हुआ उनका अहम है
उनसे बढ़ कर कोई ना ये बहम है
कमी खुद की ,नज़र उनको आई ना
देखते वो ,नहीं शायद ,आइना
घोटालों में लिप्त जिनके हाथ है
स्वार्थी चमचे कुछ उनके साथ है
बुरे धंधे , नहीं उनसे छूटते
जहाँ भी मिलता है मौका ,लूटते
अहंकारों से भरा हर एक्ट है
समझते खुद को बड़ा परफेक्ट है
शरीफों पर किया करते चोंट है
छुपी कोई उनके मन में खोट है
चाहते सत्ता में रहना लाजमी
इस तरह के होते है कुछ आदमी
घोटू
गदहे से
गदहे ,अगर तू गधा न होता
आज बोझ से लदा न होता
तेरा सीधा पन ,भोलापन
तेरा सेवा भाव ,समर्पण
समझ इसे तेरी कमजोरी ,
करवाते है लोग परिश्रम
तू भी अगर भाव जो खाता ,
यूं ही कार्यरत सदा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता
बोझा लाद ,मुसीबत कर दी
तेरी खस्ता हालत कर दी
ना घर का ना रखा घाट का ,
बहुत बुरी तेरी गत कर दी
अगर दुलत्ती जो दिखलाता ,
दुखी और गमजदा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता
तू श्रमशील ,शांतिप्रिय प्राणी
नहीं काम से आनाकानी
बिना शिकायत बोझा ढोता ,
तेरा नहीं कोई भी सानी
सूखा भूसा चारा खाकर ,
मौन ,शांत सर्वदा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता
जो चलते है सीधे रस्ते
लोग उन्हें लेते है सस्ते
जो चुप रहते ,मेहनत करते ,
लोग उन्हें है मुर्ख समझते
अगर रेंक विद्रोह जताता ,
यूं खूंटे से बंधा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
गदहे ,अगर तू गधा न होता
आज बोझ से लदा न होता
तेरा सीधा पन ,भोलापन
तेरा सेवा भाव ,समर्पण
समझ इसे तेरी कमजोरी ,
करवाते है लोग परिश्रम
तू भी अगर भाव जो खाता ,
यूं ही कार्यरत सदा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता
बोझा लाद ,मुसीबत कर दी
तेरी खस्ता हालत कर दी
ना घर का ना रखा घाट का ,
बहुत बुरी तेरी गत कर दी
अगर दुलत्ती जो दिखलाता ,
दुखी और गमजदा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता
तू श्रमशील ,शांतिप्रिय प्राणी
नहीं काम से आनाकानी
बिना शिकायत बोझा ढोता ,
तेरा नहीं कोई भी सानी
सूखा भूसा चारा खाकर ,
मौन ,शांत सर्वदा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता
जो चलते है सीधे रस्ते
लोग उन्हें लेते है सस्ते
जो चुप रहते ,मेहनत करते ,
लोग उन्हें है मुर्ख समझते
अगर रेंक विद्रोह जताता ,
यूं खूंटे से बंधा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
विक्रय कुशलता
हमारी 'सेलिंग स्किल 'का नहीं है कोई भी सानी
बेचते गोलगप्पे भर ,मसाले डाल कर पानी
बोतलें बेचते पानी की मिनरल वाटर है कह कर
वसूला करते है पैसे ,टायरों में हवा भर कर
भरा कर गुब्बारों में हम ,हवा भी बेचा करते है
सड़े मैदे को तल ,मीठी ,जलेबी नाम धरते है
यहाँ तक ठीक ,लोभी हम ,फायदा देख लेते है
बिना कोई हिचक के हम ,जमीर भी बेच देते है
घोटू
हमारी 'सेलिंग स्किल 'का नहीं है कोई भी सानी
बेचते गोलगप्पे भर ,मसाले डाल कर पानी
बोतलें बेचते पानी की मिनरल वाटर है कह कर
वसूला करते है पैसे ,टायरों में हवा भर कर
भरा कर गुब्बारों में हम ,हवा भी बेचा करते है
सड़े मैदे को तल ,मीठी ,जलेबी नाम धरते है
यहाँ तक ठीक ,लोभी हम ,फायदा देख लेते है
बिना कोई हिचक के हम ,जमीर भी बेच देते है
घोटू
दबाब
मिला कर हाथ थोड़ा सा दबाना अपनी आदत है
दबा कर उनको बाहों में ,किया करते मोहब्बत है
दबा एक आँख हौले से ,मारते आँख हम उनको,
छेड़ते रहते उनको हम ,उन्हें रहती शिकायत है
कहा आदाब उनने जब ,दबाया हमने तो बोले ,
हसीनो को सताते हो ,बड़ी बेजा ये हरकत है
दबे है हम तो ऐसे ही ,तले अहसान के उनके ,
हमारे दिल की नगरी पर ,उन्ही की तो हुकूमत है
दबा कर दुम ,दुबकते है ,हम इतना डरते है उनसे ,
नाचते है इशारों पर ,यही सच है,हक़ीक़त है
घोटू
मिला कर हाथ थोड़ा सा दबाना अपनी आदत है
दबा कर उनको बाहों में ,किया करते मोहब्बत है
दबा एक आँख हौले से ,मारते आँख हम उनको,
छेड़ते रहते उनको हम ,उन्हें रहती शिकायत है
कहा आदाब उनने जब ,दबाया हमने तो बोले ,
हसीनो को सताते हो ,बड़ी बेजा ये हरकत है
दबे है हम तो ऐसे ही ,तले अहसान के उनके ,
हमारे दिल की नगरी पर ,उन्ही की तो हुकूमत है
दबा कर दुम ,दुबकते है ,हम इतना डरते है उनसे ,
नाचते है इशारों पर ,यही सच है,हक़ीक़त है
घोटू
रजतकेशी सुंदरी
रजतकेशी सुंदरी तुम
अभी भी हो मदभरी तुम
स्वर्ग से आई उतर कर ,
लगती हो कोई परी तुम
मृदुल तन,कोमलांगना हो
प्यार का तरुवर घना हो
है वही लावण्य तुम में ,
प्रिये तुम चिरयौवना हो
अधर अब भी है रसीले
और नयन अब भी नशीले
क्या हुआ ,तन की कसावट ,
घटी ,है कुछ अंग ढीले
है वही उत्साह मन में
चाव वो ही ,चाह मन में
वही चंचलता ,चपलता ,
वही ऊष्मा ,दाह तुम में
नाज़ और नखरे वही है
अदायें कायम रही है
खिल गयी अब फूल बन कर ,
चुभन कलियों की नहीं है
भाव मन के जान जाती
अब भी ,ना कर ,मान जाती
उम्र को दी मात तुमने ,
मर्म को पहचान जाती
बुरे अच्छे का पता है
आ गयी परिपक्वता है
त्याग की और समर्पण की ,
भावना मन में सदा है
नित्य नूतन और नयी हो
हो गयी ममतामयी हो
रजतकेशी सुंदरी तुम ,
स्वर्णहृदया बन गयी हो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रजतकेशी सुंदरी तुम
अभी भी हो मदभरी तुम
स्वर्ग से आई उतर कर ,
लगती हो कोई परी तुम
मृदुल तन,कोमलांगना हो
प्यार का तरुवर घना हो
है वही लावण्य तुम में ,
प्रिये तुम चिरयौवना हो
अधर अब भी है रसीले
और नयन अब भी नशीले
क्या हुआ ,तन की कसावट ,
घटी ,है कुछ अंग ढीले
है वही उत्साह मन में
चाव वो ही ,चाह मन में
वही चंचलता ,चपलता ,
वही ऊष्मा ,दाह तुम में
नाज़ और नखरे वही है
अदायें कायम रही है
खिल गयी अब फूल बन कर ,
चुभन कलियों की नहीं है
भाव मन के जान जाती
अब भी ,ना कर ,मान जाती
उम्र को दी मात तुमने ,
मर्म को पहचान जाती
बुरे अच्छे का पता है
आ गयी परिपक्वता है
त्याग की और समर्पण की ,
भावना मन में सदा है
नित्य नूतन और नयी हो
हो गयी ममतामयी हो
रजतकेशी सुंदरी तुम ,
स्वर्णहृदया बन गयी हो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
श्राद्ध और दक्षिणा
दो दिन बाद ,पिताजी का श्राद्ध था
ये मुझे याद था
मैंने पंडितजी को फोन मिलाया
थोड़ी देर घंटी बजती रही ,
फिर उन्होंने डकार लेते हुए फोन उठाया
मैंने कहा पंडितजी प्रणाम
वो बोले खुश रहो यजमान
कहिये किस लिए किया है याद
मैंने कहा परसों है पिताजी का श्राद्ध
आपको सादर निमंत्रण है
वो बोले परसों तो तीन आरक्षण है
पर श्रीमान
आप है पुराने यजमान
आपका निमंत्रण कैसे सकता हूँ टाल
बतलाइये ,आपको यजमानो की सूची में ,
आपको कौनसे नम्बर पर दूँ डाल
मैंने कहा गुरुवर
क्या है ये नम्बर का चक्कर
वो बोले एक नंबर के यजमान के यहाँ ,
हम सबसे पहले जाते है
तर्पण करवाते है
पेट भर खाते है
आप तो जानते ही है कि जितना हम खायेंगे
उतना ही सीधे आपके पुरखे पायेंगे
हमारा पेट भर खाना
याने आपके पुरखों को तृप्ति पहुँचाना
पर इसके लिए दक्षिणा थोड़ी ज्यादा चढ़ाना होता है
और मान्यवर
पंडित के लिए बायाँलिस नंबर का ,
मान्यवर का कुरता पाजामा लाना होता है
ऐसा श्राद्ध ,सर्वश्रेष्ठ श्रेणी का श्राद्ध कहलाता है
जिससे पुरखा पूर्ण तृप्ति पाता है
दूसरे नम्बर के यजमान के यहाँ ,
हम पूर्ण करने उनका प्रयोजन
कर लेते है थोड़ा सा भोजन
यह अल्पविराम होता है
अच्छी दक्षिणा में हमारा ध्यान होता है
क्योंकि जो हम खातें है वो तो,
यजमान के पुरखों को चला जाता है
हमारे हाथ तो सिर्फ दक्षिणा का पैसा आता है
साल में श्राद्धपक्ष के सोलह दिन
ये ही तो होता है हमारा 'बिजी सीजन '
जब इतना खाते है तो पचाना भी होता है
चूरन आदि भी खाना होता है
सेहत ठीक रखने के लिए जिम भी जाना होता है
और आप तो जानते ही है ,
कि मंहगाई कितनी बढ़ती जा रही है
हर चीज की कीमत चढ़ती जा रही है
क्या आपको यह उचित नहीं लगता है
दक्षिणा की राशि में वृद्धि की कितनी आवश्यकता है
हमको भी चलाना होता घर परिवार है
अब आपसे क्या कहें,आप तो खुद ही समझदार है
रही तीसरे और चौथे यजमान की बात ,
तो उनके यहाँ हम कम ही बैठते है
बस थोड़ा सा मुंह ही ऐंठते है
पेट में जगह ही कहाँ बचती है जो खाएं खाना
बस हमारा तो ध्येय होता है उचित दक्षिणा पाना
पांचवां छटा यजमान भी मिल जाए,
तो उसे भी हम नहीं छोड़ते है
क्योंकि हम किसी का दिल नहीं तोड़ते है
हमने कहा पंडितजी ,आपका वचन सत्य है
अवसर का लाभ लेना ,आदमी का कृत्य है
ये तो आपका सेवाभाव ही है जो आप ,
श्राद्ध के पकवान खा लेते है
और हमारे पुरखों तक पहुंचा देते है
अगर आप ये उपकार नहीं करते
तो हमारे पुरखे तो भूखे ही मरते
ये आपकी विशालहृदयता है
जिसके बदले 'कोरियर चार्जेस 'के रूप में ,
आपका अच्छी दक्षिणा पाने का हक़ तो बनता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दो दिन बाद ,पिताजी का श्राद्ध था
ये मुझे याद था
मैंने पंडितजी को फोन मिलाया
थोड़ी देर घंटी बजती रही ,
फिर उन्होंने डकार लेते हुए फोन उठाया
मैंने कहा पंडितजी प्रणाम
वो बोले खुश रहो यजमान
कहिये किस लिए किया है याद
मैंने कहा परसों है पिताजी का श्राद्ध
आपको सादर निमंत्रण है
वो बोले परसों तो तीन आरक्षण है
पर श्रीमान
आप है पुराने यजमान
आपका निमंत्रण कैसे सकता हूँ टाल
बतलाइये ,आपको यजमानो की सूची में ,
आपको कौनसे नम्बर पर दूँ डाल
मैंने कहा गुरुवर
क्या है ये नम्बर का चक्कर
वो बोले एक नंबर के यजमान के यहाँ ,
हम सबसे पहले जाते है
तर्पण करवाते है
पेट भर खाते है
आप तो जानते ही है कि जितना हम खायेंगे
उतना ही सीधे आपके पुरखे पायेंगे
हमारा पेट भर खाना
याने आपके पुरखों को तृप्ति पहुँचाना
पर इसके लिए दक्षिणा थोड़ी ज्यादा चढ़ाना होता है
और मान्यवर
पंडित के लिए बायाँलिस नंबर का ,
मान्यवर का कुरता पाजामा लाना होता है
ऐसा श्राद्ध ,सर्वश्रेष्ठ श्रेणी का श्राद्ध कहलाता है
जिससे पुरखा पूर्ण तृप्ति पाता है
दूसरे नम्बर के यजमान के यहाँ ,
हम पूर्ण करने उनका प्रयोजन
कर लेते है थोड़ा सा भोजन
यह अल्पविराम होता है
अच्छी दक्षिणा में हमारा ध्यान होता है
क्योंकि जो हम खातें है वो तो,
यजमान के पुरखों को चला जाता है
हमारे हाथ तो सिर्फ दक्षिणा का पैसा आता है
साल में श्राद्धपक्ष के सोलह दिन
ये ही तो होता है हमारा 'बिजी सीजन '
जब इतना खाते है तो पचाना भी होता है
चूरन आदि भी खाना होता है
सेहत ठीक रखने के लिए जिम भी जाना होता है
और आप तो जानते ही है ,
कि मंहगाई कितनी बढ़ती जा रही है
हर चीज की कीमत चढ़ती जा रही है
क्या आपको यह उचित नहीं लगता है
दक्षिणा की राशि में वृद्धि की कितनी आवश्यकता है
हमको भी चलाना होता घर परिवार है
अब आपसे क्या कहें,आप तो खुद ही समझदार है
रही तीसरे और चौथे यजमान की बात ,
तो उनके यहाँ हम कम ही बैठते है
बस थोड़ा सा मुंह ही ऐंठते है
पेट में जगह ही कहाँ बचती है जो खाएं खाना
बस हमारा तो ध्येय होता है उचित दक्षिणा पाना
पांचवां छटा यजमान भी मिल जाए,
तो उसे भी हम नहीं छोड़ते है
क्योंकि हम किसी का दिल नहीं तोड़ते है
हमने कहा पंडितजी ,आपका वचन सत्य है
अवसर का लाभ लेना ,आदमी का कृत्य है
ये तो आपका सेवाभाव ही है जो आप ,
श्राद्ध के पकवान खा लेते है
और हमारे पुरखों तक पहुंचा देते है
अगर आप ये उपकार नहीं करते
तो हमारे पुरखे तो भूखे ही मरते
ये आपकी विशालहृदयता है
जिसके बदले 'कोरियर चार्जेस 'के रूप में ,
आपका अच्छी दक्षिणा पाने का हक़ तो बनता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मंगलवार, 24 सितंबर 2019
विरहन की पुकार
गर्मी में उमस सताती है ,सर्दी में सिहरन होती है ,
बारिश में बरसते आंसूं पर तुम रोने मुझे नहीं देते
कुछ मुंदी अधमुंदी आँखों से ,जी खोना चाहे ख्यालों में ,
तो मुझे जगा सपनो में भी ,तुम खोने मुझे नहीं देते
तुम्हारी साँसों में बस कर ,अपना सम्पूर्ण समर्पण कर ,
जी चाहे तुम्हारी हो जाऊं ,तुम होने मुझे नहीं देते
जब तुम रहते हो दूर सनम ,तो मुझको नींद नहीं आती ,
जब पास हमारे आ जाते ,तो सोने मुझे नहीं देते
घोटू
गर्मी में उमस सताती है ,सर्दी में सिहरन होती है ,
बारिश में बरसते आंसूं पर तुम रोने मुझे नहीं देते
कुछ मुंदी अधमुंदी आँखों से ,जी खोना चाहे ख्यालों में ,
तो मुझे जगा सपनो में भी ,तुम खोने मुझे नहीं देते
तुम्हारी साँसों में बस कर ,अपना सम्पूर्ण समर्पण कर ,
जी चाहे तुम्हारी हो जाऊं ,तुम होने मुझे नहीं देते
जब तुम रहते हो दूर सनम ,तो मुझको नींद नहीं आती ,
जब पास हमारे आ जाते ,तो सोने मुझे नहीं देते
घोटू
पुण्य या ?
कुछ दाने धरती पर बिखरा ,थोड़ा सा पानी से सींचों ,
वो कई गुना बन जाएंगे ,लोगों की भूख मिटायेंगे
लेकिन बिखरा उन दानो को ,तुम कबूतरों को खिला रहे ,
जब माल मुफ्त का देखेंगे ,कर बीट ,ढीठ चुग जाएंगे
तुम सोच रहे बिखरा दाने ,तुम कार्य पुण्य का करते हो ,
पर अगर ढंग से सोचो तो ,कुछ पुण्य नहीं तुम कमा रहे
नित कार्यशील थे जो पंछी ,उड़ते तलाश में दाने की ,
बिन मेहनत खिला रहे उनको और उन्हें निकम्मा बना रहे
घोटू
कुछ दाने धरती पर बिखरा ,थोड़ा सा पानी से सींचों ,
वो कई गुना बन जाएंगे ,लोगों की भूख मिटायेंगे
लेकिन बिखरा उन दानो को ,तुम कबूतरों को खिला रहे ,
जब माल मुफ्त का देखेंगे ,कर बीट ,ढीठ चुग जाएंगे
तुम सोच रहे बिखरा दाने ,तुम कार्य पुण्य का करते हो ,
पर अगर ढंग से सोचो तो ,कुछ पुण्य नहीं तुम कमा रहे
नित कार्यशील थे जो पंछी ,उड़ते तलाश में दाने की ,
बिन मेहनत खिला रहे उनको और उन्हें निकम्मा बना रहे
घोटू
मेरे प्यार का दुश्मन
ये कान लगा कर सुनती है जब वो इनसे कुछ कहता है
ये उससे चिपकी रहती है ,वो इनसे चिपका रहता है
ये मेरी ओर देखती ना ,बस उससे नज़र मिलाती है
और एक हाथ से पकड़ उसे ,फिर दूजे से सहलाती है
वो थोड़ी सी हरकत करता तो उसके पास दौड़ती है
हद तो तब होती बिस्तर पर भी ,उसको नहीं छोड़ती है
वो नाजुक नाजुक हाथ कभी ,सहलाया करते थे हमको
बालों में फंसा नरम ऊँगली,बहलाया करते थे हमको
वो ऊँगली हाथ सलाई ले ,सर्दी में बुनती थी स्वेटर
सर दुखता था तो बाम लगा ,जो सहलाती थी मेरा सर
वो ऊँगली जिसमे चमक रहा अब भी सगाई का है छल्ला
हो गयी आज बेगानी सी ,है छुड़ा लिया मुझसे पल्ला
ऐसी फंस गयी मोहब्बत में ,उस स्लिम बॉडी के चिकने की
करती रहती है चार्ज उसे ,और मेरे पास न टिकने की
वो इन्हे संदेशे देता है ,घंटों तक इनको तकता है
अपने सीने में खुले आम ,इनकी तस्वीरें रखता है
उससे इनने दिल लगा लिया ,और तोड़ दिया है मेरा दिल
मेरी जान का दुश्मन मोबाईल ,मेरे प्यार का दुश्मन मोबाईल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
ये कान लगा कर सुनती है जब वो इनसे कुछ कहता है
ये उससे चिपकी रहती है ,वो इनसे चिपका रहता है
ये मेरी ओर देखती ना ,बस उससे नज़र मिलाती है
और एक हाथ से पकड़ उसे ,फिर दूजे से सहलाती है
वो थोड़ी सी हरकत करता तो उसके पास दौड़ती है
हद तो तब होती बिस्तर पर भी ,उसको नहीं छोड़ती है
वो नाजुक नाजुक हाथ कभी ,सहलाया करते थे हमको
बालों में फंसा नरम ऊँगली,बहलाया करते थे हमको
वो ऊँगली हाथ सलाई ले ,सर्दी में बुनती थी स्वेटर
सर दुखता था तो बाम लगा ,जो सहलाती थी मेरा सर
वो ऊँगली जिसमे चमक रहा अब भी सगाई का है छल्ला
हो गयी आज बेगानी सी ,है छुड़ा लिया मुझसे पल्ला
ऐसी फंस गयी मोहब्बत में ,उस स्लिम बॉडी के चिकने की
करती रहती है चार्ज उसे ,और मेरे पास न टिकने की
वो इन्हे संदेशे देता है ,घंटों तक इनको तकता है
अपने सीने में खुले आम ,इनकी तस्वीरें रखता है
उससे इनने दिल लगा लिया ,और तोड़ दिया है मेरा दिल
मेरी जान का दुश्मन मोबाईल ,मेरे प्यार का दुश्मन मोबाईल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रविवार, 22 सितंबर 2019
Happy weekend ...?
My name is Reem E. Al-Hashimi, the Emirates Minister of State and Managing Director for the United Arab Emirates (Dubai) World Expo 2020 Committee. I am writing you to stand as my partner to receive my share of gratification from foreign companies whom I helped during the bidding exercise towards the Dubai World Expo 2020 Committee.
As a married Arab women serving as a minister, there is a limit to my personal income and investment level. For this reason, I cannot receive such a huge sum back to my country, so an agreement was reached with the foreign companies to direct the gratifications to an open beneficiary account with a financial institution where it will be possible for me to instruct further transfer of the fund to a third party account for investment purpose which is the reason i contacted you to receive the fund as my partner for investment in your country.
The amount is valued at $47,745,533.00 United States dollars with a financial institution waiting my instruction for further transfer to a destination account as soon as I have your information indicating interest to receive and invest the fund.I will compensate you with 30% of the total amount and you will also get benefit from the investment.
If you can handle the fund in a good investment, get back to me for more details on this email; ( sm9546729@gmail.com )
Sincerely,
Ms. Reem.
शनिवार, 21 सितंबर 2019
【SEAnews:India Front Line Report】 September 19, 2019 (Thu) No. 3936
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ना काहू से दोस्ती .... - *पुलिस और वकील एक ही परिवार के दो सदस्य से होते हैं, दोनों के लक्ष समाज को क़ानून सम्मत नियंत्रित करने के होते हैं, पर दिल्ली में जो हुआ या हो रहा है उस...5 वर्ष पहले
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Kritidev to Unicode Converter - [image: Real Time Font Converter] DL-Manel-bold. (ã t,a udfk,a fnda,aâ) Unicode (යුනිකෝඩ්) ------------------------------ © 2011 Language Technology R...5 वर्ष पहले
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इंतज़ार और दूध -जलेबी... - वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि ब...5 वर्ष पहले
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राजू उठ ... चल दौड़ लगाने चल - राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल पानी गरम कर दिया है दूध गरम हो रहा है राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल दूर नहीं अब मंजिल पास खड़े हैं सपने इक दौड़ लगा कर जीत...5 वर्ष पहले
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काया - काया महकाई सतत, लेकिन हृदय मलीन। चहकाई वाणी विकट, प्राणी बुद्धिविहीन। प्राणी बुद्धिविहीन, भरी है हीन भावना। खिसकी जाय जमीन, न करता किन्तु सामना। पाकर उच्चस्...5 वर्ष पहले
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कविता और कुछ नहीं... - कविताएं और कुछ नहीं आँसू हैं लिखे हुए.... खुशी की आँच कि दुखों के ताप के अतिरेक से पोषित लयबद्ध हुए... #कविताक्याहै6 वर्ष पहले
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cara mengobati herpes atau dompo - *cara mengobati herpes atau dompo* - Kita harus mengetahui apa Gejala Penyakit Herpes Dan Pengobatannya, agar ketika kita terjangkiti penyakit herpes, kit...6 वर्ष पहले
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तुमसे मिलने के बाद.......अज्ञात - तुम्हे जाने तो नही देना चाहती थी .. तुमसे मिलने के बाद पर समय को किसने थामा है आज तक हर कदम तुम्हारे साथ ही रखा था ,ज़मीं पर बहुत दूर चलने के लिए पर रस्ते ...6 वर्ष पहले
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अरे अरे अरे - आ गईं तुम आना ही था तुम्हे देहरी पर कटोरी उलटी रख कर माँ ने कहा था, आती ही होगी वह देखना पहुँच जायेगी। वह भीगी हुई चने की दाल और हरी मिर्च जो तोते के लिये...6 वर्ष पहले
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यह विदाई है या स्वागत...? - एक और नया साल...उफ़्फ़ ! इस कमबख़्त वक्त को भी जाने कैसी तो जल्दी मची रहती है | अभी-अभी तो यहीं था खड़ा ये दो हज़ार अठारह अपने पूरे विराट स्वरूप में...यहीं पह...6 वर्ष पहले
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मन के अंदर चल रहा निरंतर संघर्ष कठिन यह मानव के ... - इच्छाओं के चक्रवात से निरंतर जूझ रहा यह मानव मन उड़ जाता है अशक्त आत्मबलरहित तिनके के माफिक। इधर उधर बेचैन कहीं भी, बिना छोर और बिना ठिकाना दरबदर भटकता व्...6 वर्ष पहले
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BIJASAN DEVI - विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय - [image: Navratri 2018: विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय] *मध्यप्रदेश बिजासन देवी धाम को आज कौन नहीं जानता। कई लोगों की कुलदेव...6 वर्ष पहले
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पापा तुम क्यों चले गए ? - पापा ……………………………….. तुम्हारी साँसों में धडकन सी थी मैं , जीवन की गहराई में बचपन सी थी मैं । तुम्हारे हर शब्द का अर्थ मैं , तुम्हारे बिना व्यर्थ मैं , ...7 वर्ष पहले
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कविता- " इक लड़की" 8 मार्च- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर - *इक लड़की* *मुस्कराहट, * *उसकी आँखों से उतर;* *ओठों को दस्तक देती;* *कानों तक फ़ैल गई थी.* *जो* *उसकी सच्चाई की जीत थी. * *और * *उसकी उपलब्धि से आई थी.* *वो ...7 वर्ष पहले
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मेरी कविता - जीवन - *जीवन* *चित्र - google.com* *जीवन* * तुम हो एक अबूझ पहेली, न जाने फिर भी क्यों लगता है तुम्हे बूझ ही लूंगी. पर जितना तुम्हे हल करने की कोशिश कर...7 वर्ष पहले
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“ रे मन ” - *रूह की मृगतृष्णा में* *सन्यासी सा महकता है मन* *देह की आतुरता में* *बिना वजह भटकता है मन* *प्रेम के दो सोपानों में* *युग के सांस लेता है मन* *जीवन के ...7 वर्ष पहले
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मन का टुकड़ा मनका बनाकर - मन का टुकड़ा मनका बनाकर मनबसिया का ध्यान करूं | प्रेम की राह बहुत ही जटिल है ; चल- चल कर आसान करूं | (१५ जुलाई २०१७, रात्रि )7 वर्ष पहले
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ये कैसा संस्कार जो प्यार से तार-तार हो जाता है? - जात-पात न धर्म देखा, बस देखा इंसान औ कर बैठी प्यारछुप के आँहे भर न सकी, खुले आम कर लिया स्वीकारहाय! कितना जघन्य अपराध! माँ-बाप पर हुआ वज्रपातनाम डुबो दिया,...7 वर्ष पहले
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हिन्दी ब्लॉगिंग : आह और वाह!!!...3 - गत अंक से आगे.....हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रारम्भिक दौर बहुत ही रचनात्मक था. इस दौर में जो भी ब्लॉगर ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय थे, वह इस माध्यम के प्रति ...7 वर्ष पहले
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प्रेम करती हूँ तुमसे - यमुना किनारे उस रात मेरे हाँथ की लकीरों में एक स्वप्न दबाया था ना उस क्षण की मधुस्मृतियाँ तन को गुदगुदाती है उस मनभावन रुत में धडकनों का मृदंग बज उ...8 वर्ष पहले
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गाँधी जी...... - गाँधी जी...... --------- चौराहॆ पर खड़ी,गाँधी जी की प्रतिमा सॆ,हमनें प्रश्न किया, बापू जी दॆश कॊ आज़ादी दिला कर, आपनॆं क्या पा लिया, बापू आपके सारॆ कॆ सारॆ सि...8 वर्ष पहले
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Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...8 वर्ष पहले
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आप अदालत हैं - अपना मानते हैं जिन्हें वही नहीं देते अपनत्व। पक्षपात करते हैं सदैव वे पुत्री के आँसुओं का स्वर सुन। नहीं जाना उन्होंने मेरी कटुता को न ही मेरी दृष्टि में बन...8 वर्ष पहले
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फिर अंधेरों से क्यों डरें! - प्रदीप है नित कर्म पथ पर फिर अंधेरों से क्यों डरें! हम हैं जिसने अंधेरे का काफिला रोका सदा, राह चलते आपदा का जलजला रोका सदा, जब जुगत करते रहे हम दीप-बा...8 वर्ष पहले
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चलो नया एक रंग लगाएँ - लाल गुलाबी नीले पीले, रंगों से तो खेल चुके हैं, इस होली नव पुष्प खिलाएँ, चलो नया एक रंग लगाएँ । मानवता की छाप हो जिसमे, स्नेह सरस से सना हो जो, ऐसी होली खू...9 वर्ष पहले
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स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...9 वर्ष पहले
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विचार शून्यता। - विचार , कई बार बहते है हवा से, छलकते है पानियों से, झरते है पत्तियों से और कई बार उठते है गुबार से घुटते है, उमड़ते है, लीन हो जाते है शून्य में फिर यह...9 वर्ष पहले
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बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...9 वर्ष पहले
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एक रामलीला यह भी - एक रामलीला यह भी यूं तो होता है रामलीला का मंचन वर्ष में एक बार पर मेरे शरीर के अंग अंग करते हैं राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के पात्र जीवन्त. देह की सक...9 वर्ष पहले
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मन गुरु में ऐसा रमा, हरि की रही न चाह - ॐ श्री गुरुवे नमः *ॐ ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।* * द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ॥ एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् । ...9 वर्ष पहले
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गुरु पूर्णिमा - आज गुरु पूर्णिमा है ! अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करने का दिवस ,गुरु शब्द का अर्थ होता है अँधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाला ,अज्ञान ज्ञान की और ले...9 वर्ष पहले
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हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...10 वर्ष पहले
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क्रिकेट विश्व कप 2015 विजय गीत - धोनी की सेना निकली दोहराने फिर इतिहास अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस | शास्त्री की रणनीति भी है और विराट का शौर्य , धोनी की तो धूम मची है विश्व ...10 वर्ष पहले
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'मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से' - मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से… मेरे कान फ़ट चुके हैं सवेरे से लाउड वाहियत गाने सुनकर और फ़ुर्र हो चुका है गर्व। ये कौनसा रंग है मेरे देश का? बिल्कुल ऐसा ...10 वर्ष पहले
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कथा सुनो शबाब की - *कथा सुनो शबाब की* *सवाल की जवाब की* *कली खिली गुलाब **की* *बड़े हसीन ख़ाब की* * नया नया विहान था* * घ...10 वर्ष पहले
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...10 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...10 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...10 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...10 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...10 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...11 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...11 वर्ष पहले
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रंग रंगीली होली आई. - [image: Friends18.com Orkut Scraps] रंग रंगीली होली आई.. रंग - रंगीली होली आई मस्तानों के दिल में छाई जब माह फागुन का आता हर घर में खुशियाली...11 वर्ष पहले
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भ्रष्ट आचार - स्वतंत्र भारत की नीव में उस समय के नेताओं ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के रख दिये थे भ्रष्ट आचार फिर देश से कैसे खत्म हो भ्रष्टाचार ?11 वर्ष पहले
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अन्त्याक्षरी - कभी सोचा नहीं था कि इसके बारे में कुछ लिखूँगी: बचपन में सबसे आमतौर पर खेला जाने वाला खेल जब लोग बहुत हों और उत्पात मचाना गैर मुनासिब। शायद यही वजह है कि इ...11 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...11 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को...12 वर्ष पहले
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रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर - 'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्...12 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...12 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...12 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...12 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...12 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...12 वर्ष पहले
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Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar - Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar is a Charitable Eye Hospital which today sets an example of a selfless service to the...13 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...13 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...13 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...13 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...13 वर्ष पहले
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अब बक्श दे मैं मर मुकी - चरागों से जली शाम ऐ , मुझे न जला तू और भी, मेरा घर जला जला सा है,मेरा तन बदन न जला अभी, मैंने संजो रखे हैं बहुत से राख के ढेर दिल मैं कहीं, सुलग सुलग के आय...13 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...13 वर्ष पहले
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दरिन्दे - बारूद की गन्ध फैली है, माहौल है धुआँ-धुआँ कपड़ों के चीथड़े, माँस के लोथड़े फैले हैं यहाँ-वहाँ। ये छोटा चप्पल किसी मासूम का पड़ा है यहाँ ढूँढो शयद वह ज़िन...15 वर्ष पहले
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