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बुधवार, 25 सितंबर 2019

रजतकेशी सुंदरी  

रजतकेशी  सुंदरी तुम
अभी भी हो मदभरी तुम
स्वर्ग से आई उतर कर ,
लगती  हो कोई परी तुम

मृदुल तन,कोमलांगना हो
प्यार का  तरुवर घना  हो
है वही लावण्य तुम में ,
प्रिये तुम चिरयौवना  हो

अधर  अब भी है रसीले
और नयन अब भी नशीले
क्या हुआ ,तन की  कसावट ,
घटी ,है कुछ अंग  ढीले

है वही उत्साह मन में
चाव वो ही ,चाह मन में
वही चंचलता ,चपलता ,
वही ऊष्मा ,दाह तुम में

नाज़ और नखरे वही है
 अदायें कायम  रही है
खिल गयी अब फूल बन कर ,
चुभन कलियों की नहीं है

भाव मन के जान जाती
अब भी ,ना कर ,मान जाती
उम्र को दी मात तुमने ,
मर्म को पहचान जाती

बुरे अच्छे का पता है
आ गयी  परिपक्वता है
त्याग की और समर्पण की ,
भावना मन में सदा है

नित्य नूतन और नयी हो
हो गयी ममतामयी  हो
रजतकेशी सुंदरी तुम ,
स्वर्णहृदया बन गयी हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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