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बुधवार, 25 सितंबर 2019

गदहे  से

गदहे ,अगर तू गधा न होता
आज बोझ से लदा न होता

तेरा सीधा पन ,भोलापन
तेरा सेवा भाव ,समर्पण
समझ इसे तेरी कमजोरी ,
करवाते है लोग परिश्रम
तू भी अगर भाव जो खाता ,
यूं ही कार्यरत  सदा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता

बोझा लाद ,मुसीबत कर दी
तेरी खस्ता हालत कर दी
ना घर का ना रखा घाट का ,
बहुत बुरी तेरी गत  कर दी
अगर दुलत्ती जो दिखलाता ,
दुखी और गमजदा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता

तू श्रमशील ,शांतिप्रिय प्राणी
नहीं काम से आनाकानी
बिना शिकायत बोझा ढोता ,
तेरा नहीं कोई भी   सानी
सूखा भूसा चारा खाकर ,
मौन ,शांत  सर्वदा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता

जो चलते है सीधे रस्ते
लोग उन्हें लेते है सस्ते
जो चुप रहते ,मेहनत करते ,
लोग उन्हें है मुर्ख समझते
अगर रेंक विद्रोह जताता ,
यूं  खूंटे से बंधा न होता
गदहे ,अगर तू गधा न होता


मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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