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शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

Re: प्रियतम ,मैं आटा ,तुम पानी



On Sunday, July 13, 2014, madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
घोटू के पद

प्रियतम ,मैं आटा ,तुम पानी
पूरी,परांठा या जैसी भी,रोटी हमें बनानी
बहुत जरूरी ,गुंथे ढंग से ,आटा मिल संग पानी
और पलेथन ,लगे प्यार का ,रोटी अगर फुलानी
गरम गृहस्थी के चूल्हे पर ,जल्दी से सिक जानी
तब ही तो स्वादिष्ट बनेगी,रोटी,नरम सुहानी
जितनी प्रीत मुझे है तुमसे,उतनी तुम्हे दिखानी
तालमेल हो सही ख़ुशी से ,काट जाए जिंदगानी

घोटू

बुधवार, 16 जुलाई 2014

सोचो -समझो -करो

           सोचो -समझो -करो

आज जो काम करना है,उसे कल पर नहीं टालो ,
             वक़्त जो बीत जाता है,नहीं आता दोबारा है
बड़ा हो या की छोटा हो,मगर ये बात पक्की है,
             हरेक डायरिया का होता है ,कहीं पर तो किनारा है
रात को आते जो सपने ,वो अपने आप आते है ,
             जो होते महत्वाकांक्षी ,वो दिन में देखते सपने
ये क्यों होता बुढ़ापे में,भूल जाते है अपने ही,
              मगर ऐसा भी होता है,पराये जाते हो अपने
हरेक मौसम का अपना ही ,अलग मिजाज होता है ,
              गरम है तो कभी ठंडा ,कभी बरसात होती है
उजेला हो जो सूरज का,तो हम कहते है क़ि दिन है,
               मगर दिन भी बुरे,  अच्छे ,ये कैसी बात होती है ,
मुझे कल पूछा बादल ने ,बताओ मैं कहाँ बरसूँ,
              चाहते सब है बरसूँ मैं ,पर छतरी तान लेते है
बड़े नादान है हम सब,दिया है जिसने ये सब कुछ  ,
               उसी को कुछ चढ़ा सिक्के ,ये कहते दान देते है
आदमी कितना मूरख है,खबर जिसको नहीं कल की,
                  बनाता जिंदगी भर की,हज़ारों योजनाएं वो
व्यर्थ ही कल की चिंता में ,हुआ जाता है वो बेकल,
                  भरोसा कौनसा कल का,कल तलक जी भी पाये वो 
व्यर्थ काहे का रोना है ,जो होना है सो होना है,
                  मुसीबत ,आना,आएगी ,हंसो या रो के तुम झेलो
करो बस आज की परवाह,सामने जो खड़ा हाज़िर ,
                  छोड़ दो कल की चिंताएं,मज़ा तुम आज का ले लो
 अरे देखो नदी को ही,जो कल कल करती बहती हैं ,
                  यही आशा लिए मन में,मिलेगी कल समंदर से
लगन से जो चलेंगें हम,ठिकाना मिल ही जाएगा,
                   नहीं कुछ भी है नामुमकिन,अगर हो जोश अंदर से
थी पतली धार उदगम पर,रही मिलती वो औरों से ,
                तभी सागर पहुँचने तक,पात हो जाता चौड़ा है
इसलिए सबको अपनाओ,सभी के साथ मिल जाओ,
                बहुत हो जाता है मिल कर,कोई कितना भी थोड़ा हो
हवा तो बस हवा ही है,हमेशा बहती रहती है,
                मगर जब सांस  बनती  है,चलाती जिंदगानी है
हो जैसी भी परिस्तिथियाँ , उसी अनुसार चलना है,
                 किसी भी पात्र में उसके मुताबिक़ ,ढलता पानी है
सुबह टी वी में ज्योतिषी ,ग्रहों की चाल बतलाता ,
               फलाँ है राशियाँ जिनकी ,मिलेगी उनको खुशखबरी
खबर जब है नहीं हमको,कोई भी अगले एक पल की,
               आज हम है  और ज़िंदा है ,बड़ी सबसे ये खुशखबरी
सोच कर ये कि कल पकवान ,मिल सकते है खाने को,
                आज हम भूखे रहने की ,सजा भुगते ,भला क्यों कर
पता है पेट भरना है ,हमें जब दाल रोटी से ,
                 समझ पकवान उनको ही,उठाएँ ना,मज़ा क्यों कर
  तुम्हे लगते है वो सुन्दर ,उन्हें लगे हो तुम सुन्दर ,
                मगर ये सारी सुंदरता ,नज़र का खेल  है केवल
केरियां कच्ची, खट्टी जो ,समय के संग पकेगी जब,
                रसीली ,स्वाद  और  मीठी ,लगेगी आम वो बन कर
हवा के साथ चलने पर ,हवा है पीठ थपकाती ,
                हवा के सामने चलते,हवा भरती है बाहों में
दिक्कते तो हमेशा हैं,मगर जो तुम में जज्बा है ,
              मिलेंगी मंजिलें ,अड़चन ,भले कितनी हो राहों में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

देखे सपने

             देखे सपने

जग देखे सोयी आँखों से
मैंने उड उड़ ,बिन पाँखों से
बिना पलक अपनी झपकाये ,
            मैंने जग जग ,देखे सपने
अन्धकार का ह्रदय चीर कर
आती ज्योति रश्मि अति सुन्दर
तन मन में उजियारा फैला,
            मैंने  जगमग देखे सपने
जब भी चला प्रेम की राहें
तुझ पर अटकी रही निगाहें
कभी थाम लेगी तू बाँहें ,
            मैंने  पग पग ,देखे सपने
तेरी आस ,संजोये मन में,
रहा भटकता ,मैं जीवन में
रोज रोज ,आपाधापी में ,
              मैंने भग भग ,देखे सपने
कभी भाग्य चमकेगा मेरा
सख्त ह्रदय पिघलेगा तेरा
ये आशा ,विश्वास लिए मैं ,
              हुआ न डगमग ,देखे सपने
      
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नज़रिया-औरतों का

         नज़रिया-औरतों का

पति गैरों के गुण वाले ,और स्मार्ट दिखते है ,
     पति खुद का  हमेशा ही ,नज़र आता  निकम्मा है
सास में उसको दिखती है ,  कमी खलनायिका की,
       गुणों की खान लगती है ,हमेशा खुद की अम्मा है
ससुर कमतर नज़र आते ,हमेशा ही पिता से है,
      बहन के गाती है गुण पर ,ननद से पट न पाती है
जहाँ पर काटना है जिंदगी ,वो घर  न भाता है ,
          सदा तारीफ़ में वो  मायके के गीत  गाती   है
है खुदऔरत मगर अक्सर यही होता है जाने क्यूँ ,
           नज़र में उसकी,बेटी और बेटे में फरक  होता
बेटियां नूर है घर की ,वो खुद कोई की बेटी है,
          मगर वो चाहती दिल से, बहू उसकी  जने पोता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उम्र बढ़ी तो क्या क्या बदला

           उम्र बढ़ी तो क्या क्या बदला

गठीली थी जो जंघाएँ ,पड़  गयी गांठ अब उनमे ,
              कसा था जिस्म  तुम्हारा ,हुआ अब गुदगुदा सा है
कमर चोवीस इंची थी ,हुई चालीस इंची अब,
              पेट  पर पड़  गए है सल, हुलिया ही जुदा सा  है
लचकती थी कमर तुम्हारी ,चलती थी अदा से जब ,
              आजकल चलती हो तुम तो,बदन सारा लचकता है
हिरन जैसी कुलाछों में,आयी गजराज की मस्ती,
              दूज का चाँद था जो ,हो गया ,अब वो पूनम का है
भले ही आगया है फर्क काफी तन में तुम्हारे ,
               तुम्हारे मन का भोलापन ,वही प्यारा सा है निर्मल
आज भी प्यार से जब देखती हो,जुल्मी नज़रों से ,
              दीवाना सा मैं हो जाता,मुझे कर देती तुम  पागल
कनक की जो छड़ी सा था ,हुआ है तन बदन दूना ,
               तुम्हारा प्यार मुझसे हो गया है चौगुना   लेकिन
हो गए इस तरह आश्रित है हम एक दूजे पर ,
               न रह सकती तुम मेरे बिन,न मैं रहता तुम्हारे बिन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

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