कटी जवानी लाड़ लढाते,
कटा बुढ़ापा लड़ते लड़ते
गलती कोई ने भी की हो ,
दोष एक दूजे पर मढ़ते
रस्ते में कंकर पत्थर थे,
ठोकर खाई संभल गए हम
सर्दी धूप और बरसाते,
झेले कई तरह के मौसम
लेकिन जब तक रही जवानी ,
हर मौसम का मजा उठाया
मस्ती के कोई पल को भी,
हमने होने दिया न जाया
खाया पिया मौज उड़ाई ,
घूमे पूरी दुनिया भर में
थे जवान हम पंख लगे थे,
उड़ते फिरते थे अंबर में
जोश भरा था और उमंग थी
पैर नहीं धरती पर पड़ते
कटी जवानी , लाड़ लढाते,
कटा बुढ़ापा लड़ते-लड़ते
फिर धीरे-धीरे चुपके से,
दबे पांव आ गया बुढ़ापा
घटने लगी उमंग जोश सब,
संदेशा लाया विपदा का
लाड़ प्यार सब फुर्र हो गया ,
जब तन था कमजोर हो गया
तानाकशी एक दूजे पर,
नित लड़ाई का दौर हो गया
किंतु लड़ाई जो भी होती,
प्यार छुपा रहता था उसमें
वक्त काटने का एक जरिया
यह झगड़ा होता था सच में
और जीवन का सफर कट गया
अपनी जिद पर अड़ते अड़ते
कटी जवानी लाड़ लढाते,
कटा बुढ़ापा, लड़ते-लड़ते
मदन मोहन बाहेती घोटू
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 31 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
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बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी इसी का नाम है ।
जवाब देंहटाएंयथार्थ !
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