लकीरे
चित्रकार के हाथों जब लकीरे उकरती है
तो कैनवास पर जागृत हो जाती है एक सूरत
किसी नक्शे की लकीरे,जब दीवारें बन कर उगती है
तो खड़ी हो जाती है एक इमारत
लकीरों की ज्यामिति के बल पर ही ,
इंसान चांद तक पहुंच पाता है
पगडंडी सी लकीरे ,जब प्रगति करती है
तो राजमार्ग बन जाता है
नारी की मांग में सिंदूर की लकीर
उसके सुहागन होने की निशानी है
परंपरा की लकीरों पर चलकर ही,
हमें अपनी संस्कृति बचानी है
महाजनों के पदचिन्हों की लकीरें
हमारी प्रगति के लिए पथ प्रदर्शक है
नारी के तन की वक्ररेखाएं
उसे बनाती बहुत आकर्षक है
परेशानी में आदमी के माथे पर
चिंता की लकीरें खिंच जाती है
हमारे सलोने चेहरे पर झुर्रियों की लकीरें
बढ़ती हुई उम्र का अहसास कराती है
हमारी हथेली में लकीरों में
भगवान ने लिख कर भेजी हमारी तकदीर है
आप माने ना माने मगर यह सच है
कि हर बंदा लकीर का फकीर है
मदन मोहन बाहेती घोटू
सुन्दर रचना
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