आलोचना
आजकल हर जना
जरूरत से ज्यादा होशियार है बना
अपने गिरेबान में झांकना नहीं ,
करता है औरों की आलोचना
सोच नकारात्मक है
दृष्टिकोण भ्रामक है
जो सिर्फ औरों की कमियां ही दिखाता है
उसे आधा भरा हुआ नहीं ,
बाकी जो खाली है वह आधा गिलास नजर आता है लोगों की अच्छाइयां नहीं दिखती
उनकी बुराइयां ही खोजता है
कोकिला की तरह आम्र तरु पर नहीं,
कौवे की तरह सीधा नीम तक ही पहुंचता है
किसी की गलतियां ढूंढना बड़ा आसान है
गलतियां तो करता ही रहता है इंसान है
अरे इंसान क्या कई बार ,
भगवान से भी गलती हो जाती है
किसी किसी के हाथ में ,
पांच के बदले छह उंगलियां पाई जाती है
गलतियां उसी से होती है जो कुछ करता है
निठल्ले का जीवन तो व्यर्थ ही गुजरता है
कभी अपने अंदर झांकोगे,
तो अपनी भी कई कमियां देख पाओगे
पहले उन्हें सुधारोगे,
तब दूसरों पर उंगली उठाओगे
आत्मविवेचन सबसे बड़ा उपचार है
जो बदल देता आदमी का व्यवहार है
ऐसा करके तुम अपनी जिंदगी संवार सकोगे
खुद सुधरोगे , तभी औरों को सुधार सकोगे
इसलिए सिर्फ गलतियों को मत तलाश करो
कोई गलती नजर आए ,
तो उसे सुधारने का प्रयास करो
इससे तुम्हारी गरिमा बढ़ेगी
तुम्हारी छवि और भी निखरेगी
अपने जीवन को सार्थक करिए
आलोचक नहीं, सुधारक बानिये
मदन मोहन बाहेती घोटू
सुंदर प्रस्तुति
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