मातृ ऋण
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
माता की सेवा कर,थोडा सा मातृऋण चुका रहा हूँ
माँ,जो बुढ़ापे के कारण,बीमार और मुरझाई है
उनके चेहरे पर संतुष्टि,मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है
मुझको तो बस अशक्त माँ को देवदर्शन करवाना है
न श्रवणकुमार बनना है,न दशरथ के बाण खाना है
और मै अपनी झोली ,माँ के आशीर्वादों से भरता जा रहा हूँ
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मिलन
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मिलन जो ख़ुशबू बन साथ चला है उस से ही हर ख़्वाब पला है जीवन का जो सार दे
रहा वही मधुर आधार दे रहा सीधा-सच्चा जिसका पथ है मिट जाती हर इक आपद है सारे
शब्द दू...
4 घंटे पहले