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शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

एक दीप अँधेरे में ...


एक दीप अँधेरे में ...
बरसों से मंदिर के कपाट में 
एक दीप अँधेरे में जल रहा है 
रोशनी की तलाश में भटककर खुद से लड़ रहा है 
कितने दिन बीत गए ...
अपने रूप को , आईने में नही देख पाया 
थोड़ा सा तेल 
वहीं पुरानी बाती 
उसी कपाट पर 
बंद , पडा अपनी दशा से परेशान
फिर भी धीमें -धीमें  जल रहा है 
उस उजले दिन की इंतजार में 
बुझता और जलता 
नया सबेरा ढूंढ़ रहा है 
बरसों से मंदिर की कपाट में 
एक दीप अँधेरे में जल रहा है 

 लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " 

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011

दशानन

दशानन
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लंकाधिपति रावण के,
दस सर थे ,पर,
पेट एक ही था
झुग्गीवाली गरीबी के रावण के  भी,
दस सर होते हैं,
मगर पेट भी दस होते है
इसीलिये,
एक राज करता था,
दूसरे रोते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

दशरथ का वनवास

दशरथ का वनवास
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हे राम तुम्हारे नाम किया ,मेने निज राज पाट सारा
तुमने पत्नी के कहने पर ,वनवास मिझे क्यों दे डाला
  त्रेता में पत्नी कहा मान, मैंने तुमको वन भेजा था
पर पुत्र वियोग कष्टप्रद था,मेरा फट गया कलेजा था
मै क्या करता मजबूरी थी,रघुकुल का मान बचाना था
जो था गलती से कभी दिया,मुझको वो वचन निभाना था
ये सच है मैंने तुम्हारा,सीता का ह्रदय दुखाया था
पर ये करके फिर मै जिन्दा,क्या दो दिन भी रह पाया था
उस युग का बदला इस युग में,ये न्याय तुम्हारा है न्यारा
हे राम तुम्हारे नाम किया ,मैंने निज राज पाट सारा
उस युग में तो सरवन कुमार,जैसे भी बेटे होते थे
करवाने तीरथ मात पिता ,को निजकंधों पर ढोते थे
थे पुरु से पुत्र ययाति के,दे दिया पिता को निज यौवन
तुम भी तो मेरा कहा मान,चौदह वर्षों भटके वन वन
माँ,पिता देवता तुल्य समझ ,पूजा करती थी संतानें
उनकी आज्ञा के पालन ही,कर्तव्य सदा जिनने जाने
उस युग का तो था चलन यही ,वह तो था त्रेता युग प्यारा
हे राम तुम्हारे नाम किया ,मैंने निज राज पाट सारा
तब वंचित मैंने तुम्हे किया,था राज पाट ,सिंहासन से
पर इस युग में ,मैंने तुमको ,दे दिया सभी कुछ निज मन से
ना मेरी तीन रानियाँ थी,ना ही थे चार चार बेटे
मेरी धन दौलत के वारिस ,तुम ही थे एक मात्र बेटे
तुम थे स्वच्छंद नहीं मैंने ,तुम पर कोई प्रतिबन्ध किया
तो फिर बतलाओ किस कारण,तुमने मुझको वनवास दिया
मेरी ही किस्मत थी खोटी,ये  दोष नहीं है तुम्हारा
हे राम तुम्हारे नाम किया ,मैंने निज राज पाट सारा
         मदन मोहन बहेती 'घोटू'



सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

रावण के दस सर

रावण के दस सर
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रावण ,वीर था,और विद्वान था
उसे शास्त्र और शास्त्र  दोनों का ज्ञान था
और उसके दस सर थे
और ये ही मुसीबत की जड़ थे
 एक सर बीच में था,
और एक तरफ चार सर थे ,
और दूसरी तरफ पांच सर थे
इससे उसके दिमाग का बेलेंस बिगड़ गया था,
और वो सीताहरण जैसी हरकत कर गया था
काश उसके नौ या ग्यारह सर होते
और दिमाग का बेलेंस बराबर हो जाता
तो आज उसकी भी तारीफ होती
और वो पूजा जाता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 2 अक्टूबर 2011

नवरात्रि

नवरात्रि
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दूध  जैसी धवल शीतल हो छिटकती चांदनी
पवन मादक,गुनगुनाये,प्रीत की मधु रागिनी
तारिकायें,गुनगुनायें,ऋतू मधुर हो प्यार की
रात हो मधुचंद्रिका सी,मिलन के त्योंहार की
गगन से ले धरा तक हो,पुष्प की बरसात सी
सेज जैसे सज रही,पहले मिलन के रात की
मदभरी सी हो निराली,रात वह अभिसार की
महक हो वातावरण में,प्यार की बस प्यार की
लाज के,संकोच के,हो आवरण सारे  खुले
प्यास युग युग की बुझे,जब बहकते तन मन मिले
तुम शरद के चाँद की  आभा  लिये सुखदात्री हो
संग तुम्हारे बितायी,रात्रि हर, नवरात्रि हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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