मैंने हंसना सीख लिया है
अब तक जीवन खूब जिया है
मस्ती की,खाया पिया है
मगर किसी की नजर लग गई ,
तकलीफों ने हैं घेर लिया है
परेशानियां और बिमारी
रोज रोज की मारामारी
बड़ी अव्यवस्थित जीवनचर्या ,
पर क्या करता है लाचारी
रोज दवाई और इंजेक्शन
खानपान में भी रिस्ट्रिक्शन
प्रतिबंधों ने बांध रखा हैं
हुआ बहुत ही नीरस जीवन
मन घुटता था ,परेशान था
आखिर इसका क्या निदान था
क्या अब पूरे जीवन भर ही
जीने का ये ही विधान था
फिर एक दिन यह मन ने सोचा
जब कल का ही नहीं भरोसा
लंबे जीवन के चक्कर में ,
क्यों खुद को मैं करता कोसा
बचा रखा है इतना पैसा
तो घुट घुट कर जीना कैसा
मन मसोस कर ,क्यों जिएं हम
मनचाहा खाए पिए हम
जब मरने का दिवस मुकर्रर
तो फिर हर दिन क्यों डर-डर कर
निज दिनचर्या करें नियंत्रित
मृत्यु डर से रह कर चिंतित
बन्धन तभी तोड़ सब डाले
शिकवे गिल भुलाए सारे
अपने पंखों को पसार कर
चिंताओं को भूलभाल कर
जो मन में आए वो करना
अब मृत्यु से जरा न डरना
शान्ति रखना सीख लिया है
मैंने हंसना सीख लिया है
मदन मोहन बाहेती घोटू