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मंगलवार, 13 नवंबर 2012


संरक्षक (रेफ्रिजेटर)

     संरक्षक (रेफ्रिजेटर)

कई रसीली ,मधुर रूपसी,
मेरे उर में  आती जाती
उनकी  सुरभि,मुझे लुभाती
निश्चित ही स्वादिष्ट बहुत वो होगी,
मेरा मन ललचाता
लेकिन मै कुछ कर ना पाता
क्योंकि मुझे गढ़ने वाले ने ,
मेरे मुख दांत  ना दिये
सिर्फ सूँघना ही नसीब में लिखा इसलिये
मै तो उनके रूप ,स्वाद को कर संरक्षित
उनकी जीवन अवधि बढाता रहता,परहित
यूं ही तरस तरस कर करना जीवन व्यापन
बिना किये रस का आस्वादन ,
कट जाता है ,मेरा जीवन
कई मिठाई,कितने ही फल
कितने ही पकवान,पेय जल
आकर्षित करते रहते है मुझको हर पल 
मेरा मन कितना ही चाहे
मै बेबस ,भरता ही रहता,ठंडी आहें
मन मसोस मै रहता हरदम
तुम चाहो तो इसको कह सकते  हो संयम
बचा खुचा ,घर का सब खाना
है मेरे ही हिस्से आना
मुझे चाहता दिल से गोरस
मै ना अगर मिलूँ,
तो उसका दिल जाता फट
मै संरक्षक ,
जो भी मेरे उर में बसता,
उसका यौवन,संरक्षित रहता है,
एक लम्बी अवधी तक
मै तो हूँ घर घर का वासी ,
सभी गृहणियों का मै प्यारा
मै  रेफ्रिजेटर  तुम्हारा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 12 नवंबर 2012

आज दीवाली आई भाई


जहाँ को जगमग करते जाओ,
खुशियों की सौगात है आई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

श्री कृष्ण ने सत्यभामा संग नरकासुर संहार किया,
सोलह हज़ार स्त्रियों के संग इस धरा का भी उद्धार किया ।

असुर प्रवृति के दमन का
उत्सव आज मनाओ भाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

रक्तबीज के कृत्य से जब तीनो लोकों में त्रास हुआ,
माँ काली तब हुई अवतरित, दुष्ट का फिर  तब नाश हुआ ।

शक्ति स्वरुपा माँ काली व,
माँ लक्ष्मी को पूजो भाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

लंका विजय, रावण मर्दन कर लखन, सिया संग राम जी आये,
अवध का घर-घर हुआ तब रोशन, सबके मन आनंद थे छाये ।

उस त्योहार में हो सम्मिलित,
बांटों, खाओ खूब मिठाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

पवन तनय का आज जनम दिन, कष्ट हरने धरा पर आये,
सेवक हैं वो राम के लेकिन, सबका कष्ट वो दूर भगाए ।

नरक चतुर्दशी, यम पूजा भी,
सब त्यौहार मनाओ भाई,
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

मर्यादित हो और सुरक्षित, दीवाली खुशियों का बहाना,
दूर पटाखों से रहना है, बस प्रकाश से पर्व मनाना ।

अपने साथ धरती भी बचाओ,
प्रदुषण को रोको भाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

शनिवार, 10 नवंबर 2012

रेपिंग पेपर

        रेपिंग पेपर

          मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
        चमक दमक वाला सुन्दर सा,
        मै तो एक आवरण भर हूँ
        मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
छोटी,बड़ी सभी सौगातें
मुझ में लोग छुपा कर लाते
मेरा आकर्षण है बस तब तक
मुझ में गिफ्ट छुपी है जब तक
जब भी मै हाथों में आता
जो भी पाता,वो मुस्काता
सभी देखते रूप चमकता
अन्दर क्या है की उत्सुकता
जैसे कभी सुहाग रात में
पहली पहली मुलाक़ात में
        आकुल पति उठाता  जिसको,
        मै दुल्हन का, घूंघट भर हूँ
         मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
कितनी गिफ्टें,नयी,पुरानी
अगर आपको है निपटानी
मेरे बिना काम ना चलता
मै हूँ उनका ,रूप बदलता
एक गिफ्ट,कितने ही रेपर
बदल,बदल,बदला करते घर
लेकिन गिफ्ट कोई जो पाता
उसे आवरण नहीं सुहाता
अन्दर क्या है,यही चाव है
उत्सुकता ,मानव स्वभाव है
        तिरस्कार है मेरी नियति,
         मै गूदा ना,छिलका भर हूँ
         मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
लिपट  गिफ्ट के प्यारे तन से
मै आनंदित होता ,मन से
जन्मदिवस,शादी,दीवाली
रहती मेरी शान निराली
हाथों हाथ ,लिया मै जाता
बड़े गर्व से हूँ इठलाता
देने वाला जब जाता है
मुझ को फाड़ दिया जाता है
मेरी तरफ नहीं देखेंगे 
टुकड़े टुकड़े कर फेंकेगे
           पहुंचूंगा कूड़ेदानी में,
           अल्प उम्र है,मै नश्वर हूँ
            मै तो रेपिंग का पेपर हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

अभी तो मै जवान हूँ?

 


          अभी तो मै जवान हूँ?

इस मकां के लगे हिलने ईंट ,पत्थर

लगा गिरने ,दीवारों से भी पलस्तर
पुताई पर पपड़ियाँ पड़ने लगी है
धूल,मिटटी भी जरा झड़ने   लगी है
कई कोनो में लटकने लगे   जाले
चरमराने लग गये है ,द्वार सारे
बड़ा जर्जर और पुराना पड़ गया जो ,
कभी भी गिर जाय ,वो मकान  हूँ
और मै दिल को तस्सली दे रहा,
यही कहता ,अभी तो मै जवान हूँ
थी कभी दूकान,सुन्दर और सजीली
ग्राहकों की भीड़ रहती थी रंगीली
सब तरह का माल मिलता था जहाँ पर
खरीदी सब खूब  करते थे  यहाँ पर
लगे जबसे पर नए ये  माल खुलने
लगी  ग्राहक की पसंद भी ,अब बदलने
धीरे धीरे अब जो खाली हो रही है,
बंद  होने जा रही दूकान  हूँ
और मै दिल को तस्सली दे रहा,
यही कहता,अभी तो मै जवान हूँ
जवानी कुछ इस तरह मैंने गुजारी
दूध देती गाय को है घांस  डाली
अगर उसने लात मारी,लात खायी
बंदरों सी गुलाटी जी भर   लगाई
रहूँ करता ,मौज मस्ती,मन यही है
मगर ये तन,साथ अब देता नहीं है
गुलाटी को मचलता है,बेसबर मन,
आदतों से अपनी खुद  हैरान हूँ
और मै मन को तस्सली दे रहा हूँ,
यही कहता,अभी तो मैं  जवान हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 7 नवंबर 2012

बोलती आँखें


अकसर देखा है,
कई बार
निःशब्द हो जाते हैं
जुबान हमारे,
कुछ भी व्यक्त करना
हो जाता है दुष्कर,
अथक प्रयास पर भी
शब्द नहीं मिलते;
कुछ कहते कहते 
लड़खड़ा जाती है जिह्वा,
हृदय के भाव
आते नहीं अधरों तक ।
पर 
ये बोलती आँखें 
कभी चुप नहीं होती ,
खुली हो तो 
कुछ कहती ही है;
अनवरत करती हैं 
भावनाओं का उद्गार,
आवश्यक नहीं इनके लिए 
शब्दों का भण्डार ,
भाषा इनकी है 
हर किसी से भिन्न ।
जो बातें 
अटक जाती हैं
अधरों के स्पर्श से पूर्व,
उन्हें भी ये 
बयाँ करती बखूबी;
ये बोलती आँखें 
कहती हैं सब कुछ,
कोई समझ है जाता 
को अनभिज्ञ रह जाता,
पर बतियाना रुकता नहीं,
हर भेद उजागर करती
ये बोलती आँखें ।

जो मेरी तकदीर होगी

        जो मेरी तकदीर होगी

दाल रोटी खा रहे हम,रोज ही इस आस से,

               सजी थाली में हमारी ,एक दिन तो खीर होगी
मर के जन्मा ,कई जन्मों,आस कर फरहाद ये,
                 कोई तो वो जनम होगा,जब कि उसकी हीर होगी
उनके दिल में जायेगी चुभ,प्यार का जज्बा जगा,
                  कभी तो नज़रें हमारी,वो नुकीला तीर होगी
इंतहां चाहत की मेरी,करेगी एसा असर,
                    जिधर भी वो नज़र डालेंगे,मेरी तस्वीर  होगी  
मेरे दिल के चप्पे चप्पे में हुकूमत आपकी,
                     मै,मेरा दिल,बदन मेरा, आपकी जागीर  होगी
रोक ना पायेगा कोई,कितना ही कोशिश करे,
                     मुझ को वो सब,जायेगा मिल,जो मेरी तकदीर होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

हस्त शक्ति-दे भक्ति

    हस्त शक्ति-दे  भक्ति

श्री विष्णु ,जग के पालनहार

एकानन है,मगर भुजाएं चार
   याने सर और हाथ का अनुपात
           एक पर चार
श्री ब्रह्माजी
जिन्होंने ये सृष्टि  रची
चतुरानन है,और भुजाएं भी चार
     याने सर और हाथ का अनुपात
               एक पर एक
और भगवान् शंकर
हर्ता है जो हरिहर
     एकानन है और भुजाये है  दो
     याने सर और हाथ का अनुपात
             एक पर दो
रावण,लंका का स्वामी
बुद्धिमान पर अभिमानी
      उसके थे दस सर और भुजाएं बीस
        याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर दो
लक्ष्मी और सरस्वती माता
धन और बुद्धि की दाता
दोनों के एक एक आनन और चार भुजाएं
      याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर चार
श्री दुर्गा या काली माँ का स्वरूप
 शक्ति का साक्षात्  रूप
     एक आनन पर अष्ट भुजाधारी
        याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर आठ
यदि उपरोक्त आंकड़ों पर आप गौर फरमाएंगे
तो सांख्यिकी के नियम अनुसार ,ये पायेंगे
कि प्रति सर सबसे ज्यादा हस्त शक्ति
देवी दुर्गा या काली माँ है रखती
जिसका अनुपात
है एक पर आठ
उसके बाद,विष्णु,लक्ष्मी और सरस्वती माता है
जिनका एक पर चार का अनुपात आता है
और क्योंकि हाथों से ही,
उपकार और आशीर्वाद दिए जाते है
इसीलिये ये ज्यादा हाथों के,
 औसत वाले ,पूजे जाते है
और सबसे कम औसत पर,
एक सर पर एक हाथवाले ब्रह्माजी आते है
इसीलिए वो सबसे कम पूजे जाते है
और उनके मंदिर ,एक दो जगह ही दिखलाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


सोमवार, 5 नवंबर 2012

लेखा जोखा


           लेखा जोखा

पिछले कितने ही वर्षों का,

इस जीवन के संघर्षों का ,
                  आओ करें हम लेखा जोखा
किसने साथ दिया बढ़ने में,
मंजिल तक ऊपर चढ़ने में,
                    और रास्ता  किसने  रोका
किसने प्यार दिखा  कर झूंठा,
दिखला कर अपनापन ,लूटा,
                   और किन किन से खाया धोका
बातें करके  प्यारी प्यारी,
काम निकाल,दिखाई यारी,
                    और पीठ में खंजर  भोंका 
देती गाय ,दूध थी  जब तक,
उसका ख्याल रखा बस तब तक,
                     और बाद में खुल्ला  छोड़ा
उनका किया भरोसा जिन पर,
अपना  सब कुछ ,कर न्योछावर,
                       उनने ही है दिल को तोड़ा
खींची टांग,बढे जब आगे
साथ छोड़,मुश्किल में भागे,
                    बदल गए जब आया मौका
टूट गए जो उन सपनो का ,
बिछड़े जो उन सभी जनों का
                    सभी परायों और अपनों का
नहीं आज का,कल परसों का
विपदाओं का, ऊत्कर्षों  का,
                       आओ करें हम लेखा जोखा
 पिछले कितने ही वर्षों का,
इस जीवन के संघर्षों का,
                         आओ करें  हम लेखा जोखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

    
                   
 

शनिवार, 3 नवंबर 2012

छोटी-सी गुड़िया


छोटी-सी वो गुड़िया थी गुड़ियों संग खेला करती थी,
खेल-कूद में, विद्यालय में सदा ही अव्वल रहती थी ।

भोली थी, नादान थी वो पर दिल सबका वो लुभाती थी,
मासूमियत की मूरत थी, बिन पंख ही वो उड़ जाती थी ।

बचपन के उस दौर में थी जब हर पल उसका अपना था,
दुनिया से सरोकार नहीं था, उसका अपना सपना था ।

यूँ तो सबकी प्यारी थी पर पिता तो 'बोझ' समझता था,
एक बेटी है जंजाल है ये, वो ऐसा ही रोज समझता था ।

शादी-ब्याह करना होगा, हर खर्च वहन करना होगा,
लड़के वालों की हर शर्तें, हर बात सहन करना होगा ।

कन्यादान के साथ में कितने 'अन्य' दान करने होंगे,
घर के साथ इस महंगाई में, ये देह गिरवी धरने होंगे ।

छोटी-सी एक नौकरी है, ये कैसे मैं कर पाउँगा,
रोज ये रोना रोता था, मैं जीते जी मर जाऊंगा ।

जितनी जल्दी उतने कम दहेज़ में काम बन जायेगा,
किसी तरह शादी कर दूँ, हर बोझ तो फिर टल जायेगा ।

इस सोच से ग्रसित बाप ने एक दिन कर दी फिर मनमानी,
बारह बरस की आयु में गुडिया की ब्याह उसने ठानी ।

सोलह बरस का देख के लड़का करवा ही दी फिर शादी,
शादी क्या थी ये तो थी एक जीवन की बस बर्बादी ।

छोटी-सी गुड़िया के तो समझ से था सबकुछ परे,
सब नादान थे, खुश थे सब, पर पीर पराई कौन हरे ।

ब्याह रचा के अब गुड़िया को ससुराल में जाना था,
खेल-कूद छोड़ गृहस्थी अब उस भोली को चलाना था ।

उस नादान-सी 'बोझ' के ऊपर अब कितने थे बोझ पड़े,
घर-गृहस्थ के काम थे करने, वो अपने से रोज लड़े ।

इसी तरह कुछ समय था बीता फिर एक दिन खुशखबरी आई,
घर-बाहर सब खुश थे बड़े, बस गुड़िया ही थी भय खाई ।

माँ बनने का मतलब क्या, उसके समक्ष था प्रश्न खड़ा,
तथाकथित उस 'बोझ' के ऊपर आज एक दायित्व बढ़ा ।

कष्टों में कुछ मास थे गुजरे, फिर एक दिन तबियत बिगड़ा,
घर के कुछ उपचार के बाद फिर अस्पताल जाना पड़ा ।

देह-दशा देख डॉक्टर ने तब घरवालों को धमकाया,
छोटी-सी इस बच्ची का क्यों बाल-विवाह है करवाया ?

माँ बनने योग्य नहीं अभी तक देह इसका है बन पाया,
खुशियाँ तुम तो मना रहे पर झेल रही इसकी काया ।

शुरू हुआ ईलाज उसका पर होनी ही थी अनहोनी,
मातम पसर गया वहां पर सबकी सूरत थी रोनी ।

बच्चा दुनिया देख न पाया, माँ ने भी नैन ढाँप लिए,
चली गई छोटी-सी गुड़िया, बचपन अपना साथ लिए ।

साथ नहीं दे पाया, उसके देह ने ही संग छोड़ दिया,
आत्मा भी विलीन हुई, हर बंधन को बस तोड़ दिया ।

एक छोटी-सी गुड़िया थी वो चली गई बस याद है,
ये उस गुड़िया की कथा नहीं, जाने कितनों की बात है ।

ऐसे ही कितनी ही गुड़िया समय पूर्व बेजान हुई,
कलुषित सोच और कुरीत के, चक्कर में बलिदान हुई ।

संकट तो है सब पर आते

 
      संकट तो है सब पर आते
लेकिन जो धीरज धरते है,
      मुश्किल में भी है मुस्काते
      संकट तो है सब पर आते
हिल जाते है,पात,टहनियां,
लेकिन तना,तना रहता है
होती गहरी जड़ें ,उसीका,
बस अस्तित्व बना रहता है
      झंझावत और तूफानों में,
      सुदृढ़ वृक्ष ना हिल पाते है
     संकट तो सब पर आते है
शिवशंकर,भगवान हमारे,
भी तो आये थे संकट में
भस्मासुर को वर दे डाला,
दौड़ा भस्म उन्ही को करने
       रख कर रूप मोहिनी वाला,
        श्री विष्णु है उन्हें बचाते
        संकट तो  है सब पर आते
राम रूप में प्रगटे भगवन ,
कितने संकट आये उन पर
भटके वन वन,उस पर रावण,
उड़ा ले गया,सीता को हर
       संकटमोचन बन कर हनुमन,
       सीता का है पता  लगाते
        संकट तो है सब पर आते     
इसीलिये यदि आये संकट,
नहीं चाहिए हमको डरना
बल्कि धीर धर ,निर्भयता से,
रह कर अडिग,सामना करना
        सच्चे साथी,साथ निभाते,
       रहो अटल,संकट टल जाते
       संकट तो है सब पर आते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

करने पड़ते है समझौते

 
          करने पड़ते है समझौते

जीवन के हर एक मोड़ पर

अपने सब सिद्धांत  छोड़ कर
  चाहे हँसते,   चाहे रोते
करने पड़ते है समझौते
 बेटी  का करना विवाह है
अच्छे वर की अगर चाह है 
पढ़ा लिखा और अच्छे पद पर
है कमाऊ,सुन्दर लड़का  पर
उसके माता पिता तेज है
मांग रहे मोटा  दहेज़ है
नेता आप,समाज सुधारक
आदर्शों को आले में रख
बेटी सुख का ख्याल करेंगे
मुंहमांगा दहेज़ दे देंगे
अच्छा रिश्ता,यूं ना खोते
करना पड़ते है समझौते 
अफसर आप इमानदार है
चलते नियम अनुसार है
मोटा टेंडर कोई खुलेगा
ऊपर से आदेश मिलेगा
ये बोला मंत्री  जी ने है
टेंडर भरा भतीजे ने है
नियमो को करके अनदेखा
देना होगा उसको ठेका
उनका काम पड़ेगा करना
परेशान होवोगे  वरना
नहीं किया तो ट्रांसफर होते
करने पड़ते है समझौते  
लड़का,लड़की हुए सयाने
एक दूसरे को ना जाने
जब उनका विवाह होता है
शादी भी एक समझौता है
तज कर घर को मात पिता के
नए ,पराये घर में आके
रंगना पड़ता नए रंग में
जीना पड़ता नए ढंग में
समझौते करने है सबसे
सास,ससुर से और ननद से
परिवार ,सुखमय तब होते
करने पड़ते है समझौते
इस समझौते के ही मारे
भीष्मपिता  रह गए कुंवारे
मत्स्य भेद कर,जीत स्वयंबर
अर्जुन लाये ,द्रौपदी को घर
समझौते ने करी ये गती
पांच पति में बंटी द्रौपदी
राम और रावण युद्ध हुआ जब
साथ आई वानर  सेना सब
समझौता,सुग्रीव ,राम का
रावण वध में ,बना काम का
युगों युगों से देखा  होते
करना पड़ते है समझौते

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

ऊपरवाला

        ऊपरवाला

जब भी घटती है कोई घटना,बुरी आ अच्छी

लोग कहते हैं'ऊपरवाले की मर्जी'
कभी कोई अच्छा या बुरा करता है
हम कहते 'ऊपरवाला सब देखता है'
लोग कहते है'जब ऊपरवाला देता है'
'तो वो पूरा छप्पर फाड़ कर देता है'
एक प्रश्न अक्सर मेरे मन में उठता रहता है
'ये ऊपरवाला कौन है और कहाँ रहता है?'
ब्रह्मा ,विष्णु और महेश,जो भगवान कहाते है
जो सृष्टि का निर्माण,पालन और संहार कराते है
विष्णु भगवान का निवास क्षीर सागर है
ब्रह्मा जी का निवास ब्रह्म सरोवर है
और शिवजी का वास है पर्वत कैलाश
ये सब स्थान तो नीचे ही है,हमारे आसपास
तो फिर वो कौन है जो ऊपरवाला कहलाता है
हर अच्छे बुरे का श्री जिसको जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


रास्ता मंजिल का

      रास्ता मंजिल का

तुममे भी जोश था और हम मे भी जोश था,

                        अनजान रास्तों पर ,जब हम सफ़र थे दोनों
ये कर लें,वो भी पालें,सारे मज़े उठा लें,
                         कर लें सभी कुछ हासिल,बस बे सबर थे दोनों
कांटे बिछे है पत्थर,दर दर पे लगे ठोकर,
                             रस्ते की मुश्किलों से,कुछ बे खबर थे दोनों
 खोये थे हम गुमां में,देखा तो इस जहाँ में,
                             कितने भरे समंदर,बस बूँद भर थे दोनों        
एसा जो हमने पाया, धीरज नहीं गमाया,
                            सोये थे अब तलक हम, अच्छा हुआ जो जागे
बेगानी सी दुनिया में,एक दूसरे को थामे,
                              भर कर के जोश दूना,बढ़ने लगे हम आगे
मन में हो लगन तो फिर,कुछ भी नहीं है मुश्किल,
                               थोड़े जुझारू बनके, कर  लोगे  लक्ष्य हासिल
अनुकूल होंगे मौसम,हो साथ सच्चा हमदम,
                                हारो न हौंसला तुम, तुमको  मिलेगी मजिल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वरदान चाहिये

             वरदान  चाहिये

हे भगवान्!

द्रौपदी ने माँगा था वरदान,
उसे एसा पति चाहिये,
जो सत्यनिष्ठ हो,
प्रवीण धनुर्धर हो,
हाथियों सा बलवान हो,
सुन्दरता की प्रतिमूर्ति हो,
और परम वीर हो,
 आप एक पुरुष में ,ये सारे गुण,
समाहित न कर सके,इसलिये
आपने द्रौपदी को ,इन गुणों वाले,
पांच अलग अलग पति दिलवा दिये
हे प्रभो,
मुझे ऐसी पत्नी चाहिये,
जो पढ़ी लिखी विदुषी हो,
धनवान की बेटी हो,
सुन्दरता की मूर्ति हो,
पाकशास्त्र में प्रवीण हो ,
और सहनशील हो,
हे दीनानाथ,
आपको यदि ये सब गुण,
एक कन्या में न मिल पायें एक साथ
तो कुछ वैसा ही करदो जैसा,
आपने द्रौपदी के साथ था किया
मुझे भी दिला सकते हो इन गुणों वाली
पांच  अलग अलग  पत्निया
या फिर हे विधाता !
सुना है कुंती को था एसा मन्त्र आता ,
जिसको पढ़ कर,
वो जिसका करती थी स्मरण
वो प्यार करने ,उसके सामने,
हाज़िर हो जाता था फ़ौरन
मुझे भी वो ही मन्त्र दिलवा दो,
ताकि मेरी जिंदगी ही बदल जाये
मन्त्र पढ़ कर,मै जिसका भी करूं स्मरण,
वो प्यार करने मेरे सामने आ जाये
फिर तो फिल्म जगत की,
 सारी सुंदरियाँ होगी मेरे दायें बायें
हे भगवान!
मुझे दे दो एसा कोई भी वरदान   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

संपर्क

       संपर्क

बहुत जरूरी,इस दुनिया में,है सबसे संपर्क बनाना

संपर्कों से आसां होता है हर मुश्किल काम बनाना
फूलों से संपर्क बनाती मधुमख्खी तब मधु मिलता है
भोर सूर्य की किरण छुए तन,फूल कमल का तब खिलता है
तीली जब संपर्क बनाती  माचिस से तो आग लगाती
स्विच से है संपर्क तार का,तब ही बिजली ,आती जाती
प्रीत,प्रेम का प्रथम चरण है,नयनों से संपर्क नयन का
ये संपर्क बड़ा प्यारा है,मेल करा देता तन मन का
नर नारी के सम्पकों से,जग में आता है नवजीवन
खिलते पुष्प,फलित होते तरु,और महकते सारे  उपवन
सूर्य ताप संपर्क करे जब,सागर जल से,बनते बादल
बादल से जल,जल से जीवन,संपर्कों से ,जगती है चल
काम पड़े दफ्तर में कोई,तो संपर्क काम मे  आते
बरसों से लंबित मसला भी,है मिनटों में हल होजाते
तट भूमि ,उपजाऊ बनती,जब संपर्क बनाती नदिया
मोबाईल पर,बातें करना,संपर्कों का ही ,तो है जरिया
पूजा,पाठ, कीर्तन,साधन,प्रभु संपर्क अगर है पाना
बहुत जरूरी,इस दुनिया में,है सबसे ,संपर्क बनाना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

एहसास तेरी नज़दीकियों का


एहसास तेरी नज़दीकियों का सबसे जुड़ा है यारा,
तेरा ये निश्छल प्रेम ही तो मेरा खुदा है यारा |

ज़ुल्फों के तले तेरे ही तो मेरा आसमां है यारा,
आलिंगन में ही तेरे अब तो मेरा जहां है यारा |

तेरे इन सुर्ख लबों पे मेरा मधु प्याला है यारा,
मेरे सीने में तेरे ही मिलन की ज्वाला है यारा |

समा जाऊँ तुझमे, मैं सर्प हूँ तू चन्दन है यारा,
तेरे सानिध्य के हर पल को मेरा वंदन है यारा |

आ जाओ करीब कि ये दूरी न अब गंवारा है यारा,
गिरफ्त में तेरी मादकता के ये मन हमारा है यारा,

समेट लूँ  अंग-अंग की खुशबू ये इरादा है यारा,
नशा नस-नस में अब तो कुछ ज्यादा है यारा |

कर दूँ मदहोश तुझे, आ मेरी ये पुकार है यारा,
तने में लता-सा लिपट जाओ ये स्वीकार है यारा |

पास बुलाती मादक नैनों में अब डूब जाना है यारा,
खोकर तुझमे न फिर होश में अब आना है यारा |

एहसास तेरी नज़दीकियों का एक अभिन्न हिस्सा है यारा,
एहसास तेरी नज़दीकियों का अवर्णनीय किस्सा है यारा |

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

पैसा कमाऊं -पर गुरु किसको बनाऊं ?

   पैसा कमाऊं -पर  गुरु किसको बनाऊं ?

इस दुनिया में ,देखा  ऐसा

सारे काम बनाता पैसा
पैसेवाला  पूजा जाता
मेरे मन में भी है आता
मै भी पैसा खूब  कमाऊं
लेकिन किस को गुरु बनाऊँ ?
टाटा,बिरला और अम्बानी
सभी हस्तियाँ,जानी,मानी
सब के सब है खूब  कमाते
पर ये है उद्योग   चलाते
पर यदि है उद्योग  चलाना
पहले पूँजी पड़े  लगाना
मेरे पास नहीं है पैसे
तो उद्योग लगेगा कैसे?
एसा कोई सोचें रस्ता
जो हो अच्छा,सुन्दर,सस्ता
पैसा खूब,नाम भी फ्री  का
धंधा अच्छा,नेतागिरी  का
बन कर भारत  भाग्य विधाता
हर नेता है खूब कमाता
राजा हो या हो कलमाड़ी
सबने करी कमाई गाढ़ी
पर थे कच्चे,नये खेल में
इसीलिये ये गये जेल में
पर कुछ नेता समझदार है
जैसे गडकरी और पंवार है
या कि बहनजी मायावती है
क्वांरी,मगर करोडपति  है
ये सब नेता,मंजे हुए  है
लूट रहे ,पर बचे हुए  है
रख कर पाक साफ़ निज दामन
आता इन्हें कमाई का फन
इन तीनो को गुरु बना लूं
मै इनकी तस्वीर लगा लूं
एकलव्य सा ,शिक्षा  पाऊं
धीरे धीरे खूब  कमाऊं
गुरु दक्षिणा में क्या दूंगा
उन्हें अंगूठा दिखला दूंगा
सीखे कितने ही गुर उनसे
 काम करूंगा  सच्चे मन से
बेनामी कुछ फर्म बनालूँ
रिश्वत का सब पैसा डालूँ
इनका इन्वेस्टमेंट दिखा कर
काला पैसा,श्वेत  बनाकर
बड़ा खिलाड़ी मै बन जाऊं
जगह जगह उद्योग  लगाऊं
या फिर एन. जी .ओ बनवा कर
इनके नाम अलाट करा कर
अच्छी सी सरकारी भूमि
करूं तरक्की,दिन दिन दूनी
रिश्तेदारों के नामो  पर
कोल खदान अलाट करा  कर
कोडी दाम,माल लाखों का
नहीं हाथ से छोडूं मौका
लूट रहे सब,मै भी लूटूं
मै काहे को पीछे छूटूं ?
या फिर जन्म दिवस मनवाऊँ
भेंट  करोड़ों की मै पाऊँ
काले पैसे को उजला कर
अपने नाम ड्राफ्ट  बनवा कर
कई नाम से,छोटे छोटे
करूं जमा मै पैसे  मोटे
या हज़ार के नोटों वाली
माला पहनूं , मै मतवाली
ले शिक्षा,गुरु घंटालों से
बचूं टेक्स के जंजालों से
केग रिपोर्ट में यदि कुछ आया
जनता ने जो शोर मचाया
उनका मुंह  बंद कर दूंगा
जांच कमेटी बैठा  दूंगा
बरसों बाद रिपोर्ट आएगी
भोली जनता ,भूल जायेगी
नेतागिरी है बढ़िया धंधा
कभी नहीं जो पड़ता  मंदा
हींग ,फिटकरी कुछ न लगाना
फिर भी आये रंग सुहाना
नाम और धन ,दोनों पाओ
सत्ता का आनंद  उठाओ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

















दोस्तों,
आज दशहरा है....रावण भाई साहब का आज अगले एक साल के लिए राम नाम सत्य होने वाला है......हर जगह भगवान राम की जय-जयकार हो रही है....आइये हम कलियुग में रामायण के उन पात्रों से भी सबक लें जो बहुत महत्वपूर्ण रहे पर उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया....

सूर्पणखा : भगवान ऐसी बहन किसी को न दे....इसके पंचवटी के जंगल में दिल बहलाने और नाक कटाने की वजह से ही भाई रावण का सत्यानाश हो गया....

मामा मारीच : भई साला हो तो ऐसा जिसने जीजा रावण के गैर कानूनी प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए जान दे दी....

कुम्भकरण : सिर्फ खाने - पीने और सोने में मस्त रहने वाले निकम्मे इंसान ने भाई के लिए जान देकर ये सन्देश दिया कि किसी को भी निकम्मा और निरर्थक मान लेने से पहले सौ बार सोचना चाहिए.....

मंदोदरी : रावण जैसे आतंकवादी पति का भी आख़िरी समय तक साथ दिया.....न तलाक लिया.....न फरार हुई.....न आत्महत्या की.....लंका में ही डटी रही......

मंथरा : इसके इधर का उधर करने की वजह से ही कैकेयी आंटी का दिमाग खराब हुआ था और राम - सीता - लक्ष्मण को जंगल जाना पडा....राजा दशरथ को जान गंवानी पड़ी.....ऐसे कान भरने वाले लोगों से सावधान रहना चाहिए...चाहे घर हो या दफ्तर....

बाली : इन भाई साहब से यह सबक मिलता है कि अपनी ताकत पर घमंड नहीं करना चाहिए वर्ना शेर को सवा शेर मिलता ही है....आखिर किसी न किसी तरह निपटा ही दिए गए न.......

मेघनाथ : एक बहुत लायक बेटा जिसने अपने दुर्बुद्धि बाप की हर आज्ञा का पालन किया.....आज के जमाने में तो तमाम बेटे (सब नहीं) तो ऐसे बाप को घर में ही निपटा दें......

भरत : भाई हो तो ऐसा.....राम के वन गमन के बाद सारा राजपाट मिल जाने के बाद भी स्वीकार नहीं किया.....जबकि आज के जमाने में तो जीवित भाई को मृत घोषित करा कर पूरी जायदाद हड़प जाने के किस्से अक्सर सुनने को मिलते हैं.....

कौशल्या : अपने बेटे को जंगल भिजवाने के बाद भी देवरानी कैकेयी को कुछ नहीं कहा.....वर्ना आज की जेठानी होती तो मारामारी पर उतर जाती....

.....और अब आप सभी को दशहरे की हार्दिक शुभकामना.....आशा करता हूँ कि रामायण की अच्छी चीज़ों से सीख लेंगे.....न कि ' हैप्पी दशहरा '........बोल के छुट्टी मनाएंगे......क्योंकि आजकल हर तीज - त्यौहार में ' लेट अस एंज्वाय ' का वायरल फीवर गुस गया है......

- VISHAAL CHARCHCHIT

दीवाना किया करते हो

चाँद को मामा कहते थे तुम उसे सनम अब कहते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

तारे जो अनगिनत हैं होते उसे भी गिना करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

आसमान के शून्य में भी तुम छवि को देखा करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

बंद नैनों से भी तुम अक्सर दरश प्रिये की करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

स्वप्न लोक में स्वप्न सूत में सदा बंधे तुम रहते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

हृदय से हृदय को भी तुम तार से जोड़ा करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

बातें जो मुख में ना आए, समझ क्यों लिया करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

हिचकी पे हिचकी आती, यूं नाम क्यों लिया करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

नैनों से नैनों के कैसे जाम को पिया करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

बदल भी जाइये।

बातों को हलके से लेना
अब तो सीख भी जाइये
इतना गौर जो फरमाया
करते थे भूल भी जाइये
छोटे छोटे थाने अब तो
ना ही खुलवाइये
जो खुल चुके हैं पहले से
हो सके तो बंद करवाइये
छोटे चोर उठाईगीरों को
बुला बुला के समझाइये
समय बदल चुका है
स्कोप बढ़ते जा रहा है
कोर्स करके आइये
और तुरंत प्लेसमेंट
भी पाईये
ऎसे मौके बार बार
नहीं आते एक
मौका आये तो
हजारों करोड़ो पर
खेल जाइये।
चोरी डाके की कोचिंग
हुवा करती है कहीं दिल्ली में
एक बार जरूर कर ही आइये
अब ऎसे भी ना शर्माइये
काम वाकई में आपका
गजब का हुवा करता है
लोगों को मत बताइये
खुले आम मैदान में
खुशी से आ जाईये
जेल नहीं जाईये
मैडल पे मैडल पाइये।

मोतीचूर,गुलाब जामुन,और जलेबी-क्यों?

   मोतीचूर,गुलाब जामुन,और जलेबी-क्यों?

मोतीचूर,

बून्दियों का है वो संगठित रूप,
जो सहकारिता का प्रतीक है,जिसमे,
सैकड़ों बूंदिया,हाथ में दे हाथ
बिना अपना व्यक्तित्व खोये,
जुडी रहती है आपस में,
अन्य बून्दियों के साथ
मोती स्वरुप,
बून्दियों का ये संयुक्त रूप,
जिसे बनाने में,
इन मोती सी बून्दियों को चूरा नहीं है जाता
मोतीचूर है क्यों कहलाता?
दुग्ध को जब हम करते है गरम,
तो वो उबलता है,उफनता है
मानव स्वभाव से,दूध का स्वभाव,
कितना मिलता जुलता है
पर यदि धीरज के खोंचे से,
दूध को हिलाते रहो,
तो उफान रुक जाता है
और दुग्ध,धीरज वान होकर,
धीरे धीरे बंध जाता है
दूध,जब इस तरह,अपने स्वभाव से,
करता है उफान या गुस्सा खोया
दूध का यह बंधा रूप,कहलाता है खोया
पर जब इस खोये की,
छोटी छोटी गोलियों को,घी में तल कर,
किया जाता है रस में लीन
तो उन्हें कहते है 'गुलाब  जामुन'
विचारणीय बात ये है,
कि ये रसासिक्त गोलियां,
न तो रखती है गुलाब कि खुशबू,
न जामुन कि रंगत,या स्वाद आता है
तो यह गुलाब जामुन क्यों कहलाता है?
मैदे का घोल,
गर्मी से एक दो दिवस बाद,
लगता है उफनने,और खमीर बना ये पदार्थ,
जिसे जब,एक छिद्र के माध्यम से,
अग्नि तपित घी में डाल कर,
विभिन्न स्वरुप में तल कर,
जब प्यार कि चासनी में डुबोया जाता है
तो उसका यह रसमय व्यक्तित्व,सभी को भाता है
पर जब टेड़े मेडे आकारों की ये  रसासिक्त कृतियाँ,
नहीं होती है जली कहीं भी
क्यों कहलाती है जलेबी?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

सर्दियों का आगाज़

      सर्दियों का आगाज़

आ गया कुछ  ऋतू में बदलाव सा है

सूर्य भी अब देर से उगने लगा  है
है बड़ा कमजोर सा और पस्त भी है
इसलिए ये शीध्र होता   अस्त भी है
फ़ैल जाता है सुबह से ही धुंधलका
हो रहा है धूप का सब तेज  हल्का
रात लम्बी,रह गया है दिन सिकुड़ कर
बोझ वस्त्रों का गया है बढ़ बदन पर
नींद इतनी आँख में घुलने लगी है
आँख थोड़ी देर से खुलने लगी  है
सपन इतने आँख में जुटने लगे है
आजकल हम देर से उठने  लगे है
हो गया कुछ इस तरह का सिलसिला है
रजाई में दुबकना लगता भला  है
चाय,कोफ़ी,या जलेबी गर्म खाना
आजकल लगता सभी को ये सुहाना
भूख भी लगने लगी,ज्यादा,उदर में
जी करे,बिस्तर में घुस कर,रहो घर में
पिय मिलन का चाव मन में जग रहा है
सर्दियां आ गयी,एसा   लग रहा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

प्रिये !!


प्रिये !!

निःसंदेह हो
चक्षुओं से ओझल,
तेरी ही छवि
प्रतिपल निहारता,
स्मरण तेरा
प्रिये !!
आनंद बोध देता,
हृदय स्पर्शी होता
दूरी भी तेरी
प्रिये !!
समीपता का भाव लिए,
क्षण भर भी तुझसे
मैं परोक्ष नहीं हूँ |

वास तेरा
प्रिये !!
मेरे अन्तर्मन में
स्वयं का प्रतिरूप
तेरे नैनों में पाया,
फिर तू और मैं
मैं और तू कैसे ?
प्रिये !!
भौतिक स्वरूप भिन्न
एकीकृत अन्तर्मन,
होकर भी पृथक
तू और मैं
अभिन्न हैं प्रिये !!

दिल बहलाने

मधुमक्खी हर रोज
की तरह है भिनभिनाती
फूलों पर है मडराती
एक रास्ता है बनाती
बता के है रोज जाती
मौसम बहुत है सुहाना
इसी तरह उसको है गाना
भंवरा भी है आता
थोड़ा है डराता
उस डर में भी तो
आन्नद ही है आता
चिड़िया भी कुछ
नया नहीं करती
दाना चोंच में है भरती
खाती बहुत है कम
बच्चों को है खिलाती
रोज यही करने ही
वो सुबह से शाम
आंगन में चली है आती
सबको पता है रहता
इन सब के दिल में
पल पल में जो है बहता
हजारों रोज है यहाँ आते
कुछ बातें हैं बनाते
कुछ बनी बनाई
है चिपकाते
सफेद कागज पर
बना के कुछ
आड़ी तिरछी रेखाऎं
अपने अपने दिल
के मौसम का
हाल हैं दिखाते
किसी को किसी
के अन्दर का फिर भी
पता नहीं है चलता
मधुमक्खी भंवरे
चिड़िया की तरह
कोई नहीं यहां
है निकलता
रोज हर रोज है
मौसम बदलता
कब दिखें बादल और
सूखा पड़ जाये
कब चले बयार
और तूफाँ आ जाये
किसी को भी कोई
आभास नहीं होता
चले आते हैं फिर भी
मौसम का पता
कुछ यूँ ही लगाने
अपना अपना दिल
कुछ यूँ ही बहलाने ।

गुलाबी ठंडक-गुलाबी मौसम

      गुलाबी ठंडक-गुलाबी मौसम

बदलने मौसम लगा है आजकल,,

                          शामो-सुबह ,ठण्ड थोड़ी बढ़ रही
दे रही है रोज दस्तक सर्दियाँ,
                          लोग कहते ठण्ड गुलाबी  पड़ रही
रूप उनका है गुलाबी फूल सा,
                           पंखुड़ियों से अंग खुशबू से भरे
देख कर मन का भ्रमर चचल हुआ,
                           लगा मंडराने,करे तो क्या करे
हमने उनको जरा छेड़ा प्यार से,
                            रंग गालों का गुलाबी हो गया
नशा महका यूं गुलाबी सांस का,
                           सारा मौसम ही शराबी हो  गया
आँख में डोरे गुलाबी प्रिया के,
                           तो समझलो चाह है अभिसार की
लब गुलाबी जब लरजते,मदमदा ,
                           चौगुनी  होती है लज्जत प्यार की
मन रहे अब हर दिवस त्योंहार है,
                           रास,गरबा,दिवाली  और दशहरा
हो गुलाबी ठण्ड समझो आ गया,
                            प्यार का मौसम सुहाना ,मदभरा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

उधेड़बुन


असमंजस है व्याप्त

स्थिति भयावह
रजनी-सा तम
चहुंओर
व्याकुल मन
कुठित
घिरा हुआ राष्ट्र
कंटीली दीवारों से |

अपनत्व की धारा
कलुषित बाढ़ बनी
तथाकथित परिजन
नोंच-खसोट में लिप्त
विश्वास की चादर
फटती जा रही
मिष्टान का भी स्वाद
धतूरे जैसा |

कैसी राह में
चले हैं हम
भविष्य अपना
व राष्ट्र का
न जाने
किस हद तक
संरक्षित |

कैसे हो भला
किरण कहाँ है
कई प्रश्नों के
विकट जाल में
दिन-ब-दिन उलझता |

आतंकित मन
प्रश्न अनुत्तरित
जवाबों की खोज में
एक और प्रश्न;
व्यस्त है हृदय
न जाने कैसी
ये उधेड़बुन |

खरीददार

रद्दी बेच डाल
लोहा लक्कड़
बेच डाल
शीशी बोतल
बेच डाल
पुराना कपड़ा
निकाल
नये बर्तन में
बदल डाल
बैंक से उधार
निकाल
जो जरूरत नहीं
उसे ही
खरीद डाल
होना जरूरी है
जेब में माल
बाजार को घर
बुला डाल
माल नहीं है
परेशानी कोई
मत पाल
सब बिकाउ है
जमीर ही
बेच डाल
बस एक
मेरी परेशानी
का तोड़ निकाल
बैचेनी है बेचनी
कोई तो खरीददार
ढूँड निकाल।

चलित-फलित

         चलित-फलित

स्थिर यह आकाश शून्य है,लेकिन सूर्य चलायमान है

कितनो को दे रहा रोशनी,कितनो में भर रहा  प्राण है
चलना गति है,चलना जीवन,चलने से मंजिल मिलती है
वृक्ष खड़ा ,स्थिर रहता है,किन्तु हवाएं जब चलती है
शाखें हिलती,पत्ते हिलते,वृक्ष अचल,चल हो जाता  है
कभी पुष्प की बारिश करता है,और कभी फल बरसाता है
नदिया का जल,होता चंचल,जब वो चलती,कल कल करती
उदगम से लेकर सागर तक,अपना नीर,बांटती ,चलती
पाती है संपर्क धरा जो,हो जाती,उपजाऊ,सिंचित
स्थिर ,कूप,सरोवर,इनका,सीमा क्षेत्र,बड़ा ही सीमित
सूर्य ताप से ,वाष्पित होकर,हो जाते है,शुष्क सरोवर
लहरे बहा,तरंगित रहता,पूरित जल से,हरदम सागर
चंदा चलित,चांदनी देता,बादल चलित ,नीर बरसाते
धरा चलित ,अपनी धुरी पर,दिन और रात तभी है आते
यह ऋतुओं का चक्र चल रहा,वर्षा,गर्मी या फिर  सरदी
हम मे सब मे,तब तक जीवन,जब तक सांस,हमारी चलती
चलित फलित है,चलना ऊर्जा ,जड़ता लाती है स्थिरता
चलने से ही गति मिलती है,गति से ही है प्रगति,सफलता
चंचल चपल,बाल्यपन होता,होती चंचलता यौवन में
होती बड़ी चंचला  लक्ष्मी, जो सुख सरसाती जीवन में
नारी नयन बड़े चंचल है,सबसे ज्यादा चंचल मन है
स्थिरता,स्थूल बनाती,चलते रहना  ही जीवन है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

जवाब नहीं मिलता



दिल की हस्ती किसी को क्या दिखाएँ "दीप",
गुम हो सकूँ ऐसा कोई मंजर नहीं मिलता;
नदियां तो अक्सर मिल जाती हैं राहों में,
पर डूब सकूँ ऐसा कोई समंदर नहीं मिलता |

साथ उसके रह सकूँ वो जहां कहाँ ऐ "दीप",
जला सकूँ खुद को वो शमशान नहीं मिलता;
इश्क में तेरे डूब जाने को दिल करता तो है,
पर टूट सकूँ जिसमे वो चट्टान नहीं मिलता |

तैयार तो खड़े हैं हम यहाँ लुटने को ऐ "दीप",
पर चुरा सके जो मुझको वो चोर नहीं मिलता;
बह तो जाऊँ मैं बारिश में तेरे प्यार की मगर,
बरसात वो कभी मुझको घनघोर नहीं मिलता |

एक अलग-सी ही दुनिया बसा लूँ संग तेरे मैं,
साथ तेरे बैठ के देखूँ वो ख्वाब नहीं मिलता;
प्रश्न तो कितने ही उठते हैं मन में "दीप",
पर दे सकूँ जो तुझको वो जवाब नहीं मिलता |

हे भगवान्!ये क्या हो रहा है?

  हे  भगवान्!ये क्या हो रहा है?

हे भगवान्! ये क्या हो रहा है

शासन करने वाले माल लूट रहे है,
और बेचारा आम आदमी रो रहा है
सत्ता से जुड़े लोग,और जो उनके सगे है
सब अपनी अपनी तिजोरियां भरने में लगे है
कोई करोड़ों की रिश्वतें खा रहा है
कोई अपने दामाद को फायदा पहुंचा रहा है
 सत्ता में हो या विपक्ष
सब का है एक ही लक्ष्य
जितना हो सके देश को लूट लें
पता नहीं बाद में ये मौका मिले ,ना मिले
तुम करो मेरे चार काम
मै करूं तुम्हारे चार काम
'ओपोजिशन ' तो दिखने का है
हमारा मुख्य ध्येय तो पैसा कमाने का है
देश की जमीन है,
थोड़ी मै अपने नाम करवालूँ
थोड़ी तुम अपने नाम करवालो
आधी मै खालूं,आधी तुम खालो
मिलजुल कर जमाने में गुजारा करलो
और अपनी अपनी तिजोरियां भरलो
एक मंत्री ,विकलांगों के नाम पर,
झूंठे दस्तावेजों से,लाखों रूपये उठाता है
और कोई जब ये तथ्य सामने लाता है
तो देश का कानून मंत्री,
कानून को ताक पर रख कर,उसे धमकाता है
मेरे विरुद्ध यदि कुछ बताओगे
और मेरे क्षेत्र में आओगे
तो देखते है कैसे वापस जा पाओगे
कानून का मंत्री खुले आम,
 कानून की धज्जियाँ उड़ा देता  है
और इस पर देश का दूसरा मंत्री ,
(जो कोयले की दलाली में खुद काला है)
ये प्रतिक्रिया देता है
केन्द्रीय मंत्री सिर्फ लाखों में करे  घोटाला ,
इस बात पर विश्वास नहीं कर,सकता कोई समझवाला
अरे केन्द्रीय मंत्रियों का स्टेंडर्ड तो है,
करने का करोड़ों का घोटाला
मंहगाई का दंश गरीब झेल रहे है
और राजनेता करोड़ों में खेल रहे है
 अब तो तेरे अवतार लेने का सही टाईम आगया है ,
और तू सो रहा है
हे भगवान!ये क्या हो रहा है?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

कमबख्त यार

 कमबख्त  यार

बड़ा कमबख्त यार है मेरा

गुले गुलज़ार प्यार है मेरा
        बहुत वो मुझसे  प्यार करता है
         मस्तियाँ और धमाल करता है
         ख्याल रखता है वो मेरा हरदम,
         जान मुझ पर निसार  करता है
मेरी साँसों की मधुर सरगम है,
मुझपे अनुरक्त यार है मेरा
 बड़ा कमबख्त यार है मेरा
         देखता तिरछी जब निगाहों से
          रिझाता है नयी  अदाओं  से
           कभी खुद आके लिपट जाता है,
          कभी  जाता है छिटक बाहों से
सताता मुझको अपने जलवों से,
वक़्त,बेवक्त  यार है मेरा 
बड़ा कमबख्त  यार है मेरा
             कभी सावन सा वो बरसता है
              कभी बिजली सा वो कड़कता है
             कभी बहता है नदी सा ,कल कल,
             कभी वो बाढ़ सा   उमड़ता  है
कभी मख्खन सा वो मुलायम है,
तो कभी सख्त  यार है मेरा
बड़ा कमबख्त  यार है मेरा       
               जब भी हँसता है,मुस्कराता है
               आग सी दिल में वो  लगाता है
               रोशनी बन के झाड़ फानूस की,
                मेरे   घर को वो  जगमगाता है
मेरे जीवन को जिसने महकाया,
ऐसा जाने बहार है मेरा
बड़ा कमबख्त यार है मेरा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम पंछी एक डाल के

    हम पंछी एक डाल के

समझदार चिड़ियायें,
सुबह जल्दी से उठ कर,
बिजली के खम्बों के नीचे,
पा जाती ढेर सारे कीड़े
       जैसे 'सेल' लगने पर,
       समझदार  महिलायें,
       सुबह सुबह जल्दी जा,
      चुन लेती अच्छे कपडे
सुबह सूर्य उगने पर,
बिजली के तारों पर,
पंक्तिबद्ध होकर के,
चहचहाती चिड़ियायें
        काम काज निपटाकर ,
        सर्दी के मौसम में,
        धूप भरे  आँगन में,
        गपियाती   महिलायें
आसमां में कुछ पंछी,
पंखों को फैलाये,
चुहुलबाजियाँ करते,
बस यूं ही उड़ते है
          रिटायर्मेंट होने पर,
          समय काटने को ज्यों,
          कुछ बूढ़े  संग बैठ,
           गप्प  मारा करते है
कुछ पंछी,सुबह सुबह,
नीड़ छोड़ उड़ जाते,
चुगने को दाना और,
शाम ढले आते है
          जैसे हम सुबह सुबह,
          दफ्तर को जाते है,
          नौकरी कर दिन भर,
          शाम को आते है
 पंछी के जीवन सा,
हम सबका है जीवन
सपनो के पंख लगा,
हम उड़ते है हर क्षण

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

पत्नी,प्रियतमा और प्यार

             पत्नी,प्रियतमा और प्यार

पत्नी को प्रियतमा बना कर  प्यार कीजिये

महका कर इस जीवन को  गुलजार कीजिये
                  घर की मुर्गी दाल बराबर  नहीं समझिये
                  बल्कि बराबर दिल के उसे सजा कर रखिये
                  मान तुम्हे परमेश्वर ,जान लुटा वो देगी
                   तुम मानोगे एक बात वो दस   मानेगी
                  इधर  उधर  ना फिर तुम्हारा मन भटकेगा
                  हर पल तुमको जीने का आनंद   मिलेगा
                  बन कर एक दूजे का संबल जीओ  जीवन
                  और कहीं भी नहीं मिलेगा  ये अपनापन
                  सदा रहोगे जवां,बुढ़ापा  भाग जाएगा
                  तुमको सचमुच में ,जीने का स्वाद आएगा
खुशियाँ भरिये,और सुखमय संसार कीजिये
पत्नी को प्रियतमा बनाकर  प्यार  कीजिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                        

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

ठूँठ


घर के बाहर
कुछ दूरी पर
सड़क किनारे
एक वृक्ष था
कई वर्षों से,
पर आज वहाँ
अचेतन-सा
खड़ा एक ठूँठ,
तिरस्कृत-सा
बहिष्कृत-सा
समय के साथ
सुख वो गया
सारे पत्ते छोड़ गए
डलियाँ काट ली गई,
अपनों से ठुकराया हुआ
एकटक स्तब्ध-सा |

जवानी में उसके
पूछ थी बहुत
फलदार था
छायादार था
तारीफ था पाता
इतराता था
सानिध्य उसके
भीड़ थी होती,
बड़ी बड़ी डालियाँ,
असंख्य पत्ते
हरवक्त खड़ा वो
लहलहाता था |

पर आज तो
दृश्य उलट है
देखता नहीं कोई
पूछता भी नहीं
त्यागा हुआ है
तन्हा -सा है
कोई नहीं है उसका,
चौपाया अकसर
देह रगड़ते
शायद है रोता
व्याकुल है होता
रहता मन मसोस का
कुछ भी ना कह पाता |

इंतजार में है
कोई किसी दिन
आयेगा उसके पास
काट लेगा उसे
जलाएगा उसको
हाथों को सेकेगा
शायद कुछ ऐसा ही
अंत है उसका
बंद आँखों से अपने
वह राह देख रहा |

राहगीरों को चलते
जब देखता है
कभी-कभी तो वो
बहुत ज़ोर से हँसता
शायद है कहता-
तेरा भी हाल
मुझ जैसा होगा
जीना है जी लो
भाग-दौड़ कर लो
जानता हूँ इन्सानों को
आगे चलके जीवन में
तेरा भी तिरस्कार होगा
तेरा भी बहिष्कार होगा
मौत की भीख माँगेगा
उम्र के इस पड़ाव पर |

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

हे माँ दुर्गा



प्रथम दिवस माँ शैलपुत्री, कष्ट मेरी हर लेना,
मानव जीवन को मेरे, साकार यूंही कर देना |

द्वितीय दिवस हे ब्रह्मचारिणी, विद्या का फल मांगु,
जीवन हो उज्ज्वल सबका, उज्ज्वलता तुझसे चाहूँ |

तृतीय दिवस माँ चंद्रघंटा, मुझको बलशाली करना,
हर मुश्किल से लड़ पाऊँ माँ, शक्तिशाली करना |

चतुर्थ दिवस हे कुष्मांडा, जगत की रक्षा करना,
भक्तों का अपने हे माता, तू सुरक्षा करना |

पंचम दिवस स्कन्द-माता, जगत की माता तू,
मातृत्व तू बरसाना माता, सब कुछ की ज्ञाता तू |

षष्ठी दिवस माँ कात्यायिनी, दुष्टों की तू नाशक,
तू ही तो सर्वत्र व्याप्त माँ, तू ही सबकी शाशक |

सप्तम दिवस माँ कालरात्रि, पापी तुझसे भागे,
सेवक पे कृपा करना, जो ना पूजे वो अभागे |

अष्टम दिवस माँ महागौरी, श्वेतांबर धारिणी,
अंधकार को हरना माता, तू ही तो तारिणी |

नवम दिवस हे सिद्धिदात्री, कमलासन तू विराजे,
शंख, सुदर्शन, गदा, कमाल, माँ तुझसे ही तो साजे |

नौ रूपों में हे माँ दुर्गा, कृपा सदैव बरसाना,
पूजूँ तुझको, ध्याऊँ तुझको, सत्या मार्ग दिखलाना |

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

दौरा

एक गड्ढा
जो बहुत
दिनो से

बहुत लोगो को
गिरा रहा था
आज शाम
पी डबल्यू डी
की फौज द्वारा
भरा जा रहा था
सारे अफसरों के
हाथ में झाडू़
तक दिखाई
दे रहे थे
होट मिक्स
हो रहे थे
रोलर तक
चलाये दे
रहे थे
पब्लिक की
समझ में
कुछ नहीं
आ रहा था
जिसको देखो
वो कुछ ना कुछ
अंदाज लगा
रहा था
अरे कल
उत्तराखंड

का बर्थडे है
एक बता
रहा था
डी ऎम की
कार तक
बेटाईम

खड़ी थी
माल रोड पर
किसी से पूछा
तो पता चला
वो भी शहर में
चक्कर लगा
रहा था
इतने में
"मोतिया"
हंसता हुवा
आ रहा था

बड़े जोर
जोर से

ठहाके लगा
रहा था

पूछा तो
बोलता
जा रहा था

पागल मत
हो जाओ

गड्ढा ही तो
भरा जा रहा है
सालों को
पता भी नहीं
कल मुख्यमंत्री
बाय रोड
आ रहा है ।

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

एक राजा के लम्बे कान

धन्ना नाई की कहानी
मुझे मेरी माँ ने सुनाई थी
पेट में उसके कोई भी
बात नहीं पच पाती थी
निकल ही किसी तरह
कही भी आती थी
राजा ने बाल काटने
उसे बुलाया था
उसके लम्बे कान
गलती से वो देख आया था
बताने पर किसी को भी
उसे मार दिया जायेगा
ऎसा कह कर
उसे धमकाया था
पर बेचारा आदत का मारा
निगल नहीं पाया था
एक पेड़ के ठूँठ के सामने
सब उगल आया था
पेड़ की लकड़ी का तबला कभी
किसी ने बना के बजाया था
उसकी आवाज में राजा का
भेद भी निकल आया था
मेरी आदत भी उस नाई
की तरह ही हो जाती है
अपने आस पास के सच
देख कर भड़क जाती है
रोज तौबा करता हूँ कही
किसी को कुछ नहीं बताउंगा
सभी तो कर रहे हैं
करने दो मैं कौन सा
कद्दू में तीर मार ले जाउंगा
उस समय मैं अपने को
सबसे अलग सा
देखने लग जाता हूँ
सारे लोग बहुत सही
लगते हैं और मैं अकेला
जोकर हो जाता हूँ
एक राजा के दो लम्बे कान
तो बहुत पुराने हो गये
कहानी सुने भी मुझे
अपनी माँ से जमाने हो गये
आज रोज एक राजा
देख के आता हूँ
उसके लम्बे कानों को
भी हाथ लगाता हूँ
वहाँ कोई किसी को भाव
नहीं देता जान जाता हूँ
फिर रोज धन्ना नाई
की तरह कसम खाता हूँ
पर यहाँ आ कर तो
हल्ला मचाने में
बहुत मजा आता है
लगता है नक्कार खाने मे
तूती बजाने जैसे कोई जाता है
देखना ये है कि इस ठूंठ का
कोई कैसे तबला बना पाता है
फिर मेरे राजाओं के लम्बे लम्बे
कानो की खबर इकट्ठा कर
उनके कान भरने चला जाता है?

शिशु.


लो , अथाह भविष्य का एक निमिष
आ गया मेरे पास !
हाँ,आगत स्वयं बढ कर समा गया मेरी बाहों में !
*
यह शिशु,अपनी नन्ही मुट्ठियों मे ,
कसकर बाँधे है सारा भविष्य !
''मेरे शिशु ,क्या ले कर आए हो इस मुट्ठी में ?"
और मुंदी कली- सी अँगुलियाँ खोलना चाहती हूं ,
वह कस कर भींच लेता है !
*
हँस पढती हूं मैं -
कहाँ कोई देख पाया है आगत को ?
टक-टक देखता रहता है वह ,
अपनी गहन विचारपूर्ण दृष्टि से !
निस्पृह , निर्लिप्त , निर्दोष !
*
हमारी समझ से परे ,
रहस्यमय दृष्यों में खोया -
कभी रुआँसा ,कभी शान्त ,
कभी उज्ज्वल हँसी से आलोकित होता मुखमणडल!
*
और हम सारे काम - धन्धे छोड दौड पडते हैं ,
उस भुवन - मोहिनी मुस्कान को निहारने ,
उस दीप्त मुख के आनन्द-विभोर क्षण की आकांक्षा में !
*
जीवन को पढ़ने का ,मगन मन गढ़ने का ,
आगत को रचने के स्वर्णिम क्षण जीने का ,
मिला है अवसर -
लोरियाँ सुनाने का ,मुग्ध हँसी हँसने का !
*
हो जाऊँ चाहे अतीत ,
मै ही रहूंगी व्याप्त ,
अनगिन इन रूपों मे ,
सांसों मे सपनो मे !
*
मेरी ही चेतना की व्याप्ति यहाँ से वहाँ तक !
रोशनी का कण आँखों मे समा गया ,
जिसने उद्भासित कर दिया दिग् - दिगन्त को !
*
- प्रतिभा सक्सेना

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

मरने पर ........

मरने पर ........

जीते जी तीर्थ  न करवाये,

                       मरने पर संगम जाओगे
भर पेट खिलाया कभी नहीं,
                      पंडित को श्राद्ध खिलाओगे      
बस एक काम ही एसा है,
                      जो तब भी किया और अब भी किया,
जीते जी बहुत जलाया था,
                      मरने पर भी तो जलाओगे 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

बहू तो आखिर बहू है

 बहू तो आखिर बहू है

क्या हुआ जो नहीं तुमसे,ठीक से वो बात करती

क्या हुआ घर पर न टिकती,करती रहती मटरगश्ती
क्या हुआ जो उसे खाना बनाने से बहुत चिढ  है
क्या हुआ जो छोटी  छोटी बात पे वो जाती भिड़ है
क्या हुआ कर बंद कमरा,देखती रहती है टी.वी.
अपने बेटे की बना कर ,लाये हो तुम उसे बीबी
इसलिए ये उसे हक है,जी में आये,वो करे  वो
तुम्हारी करके बुराई,कान निज पति के भरे वो
पति जो भी कमाता है,उस पे अपना हक जमाये
सास,ननदों की न पूछे,मौज मइके में  उडाये
तुम्हारा  ही पुत्र तुमसे,छीन यदि उसने लिया है
 बढाया है वंश तुम्हारा,तुम्हे  पोता दिया  है
है पराये घर की बेटी,था पराया  खून पर अब
इतने दिन से ,चूस करके,खून तुम्हारा ,मगर सब
तुम्हारे ही लहू जैसा, हो गया उसका लहू  है
बहू तो आखिर बहू  है

मदन मोहन बाहेत'घोटू'

विचारणीय प्रश्न

विचारणीय  प्रश्न

कभी,कहीं,किसी पार्टी में,

या फिर और कहीं,
आप अपने किसी परिचित से मिलते है
और उनके मुख से,
अपने बारे में कमेन्ट सुनते है
"आज आप स्मार्ट लग रहे है या,
 आज आप बड़ी सुन्दर लग रही हो "
तो आप खुश होकर उन्हें धन्यवाद देते  है
पर क्या आपने कभी ये सोचा है
कि उनकी इस तारीफ़ में थोडा लोचा है
उनका ये कहना कि आज,
 आप लग रहे है सुन्दर या स्मार्ट
शायद बतलाता है ये बात
कि ये तारीफ़ है आज भर की
अन्य दिनों,आप उनको,सुन्दर,
या स्मार्ट नहीं लगते कभी
और उनका आज आपकी तारीफ़ करना,
कहीं आपको दुशाले में लपेट कर मारना तो नहीं है
और आप खुश हो या नाराज,
आपको विचारना यही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कभी हम पास होते है,कभी हम फ़ैल होते है

कभी हम पास होते है,कभी हम फ़ैल होते है

हमारी जिंदगानी में,बहुत से खेल होते है

कभी हम पास होते है,कभी हम फ़ैल होते है
हरेक पल में परीक्षा है,हरेक पल में समीक्षा है
मगर धीरज नहीं खोना,बुजुर्गों की ये शिक्षा है
भले भी लोग मिलते है,बुरे भी लोग मिलते है
कहीं पर कांटे चुभते है,कहीं पर फूल खिलते है
कभी तन्हाई का आलम,कभी है भीड़  यारों की
कभी सूखी पड़ी फसलें,कभी मस्ती बहारों की
इस दुनिया के समंदर में,हमारी तैरती किश्ती
कभी ये डगमगाती है,कभी तूफां में जा फसती
कभी है ज्वार या भाटा ,कभी सुन्दर फिजायें है
कभी सूरज की गर्मी hai,कभी शीतल हवायें है
अगर तकदीर अच्छी है,भला हमराह मिलता है
हरेक  मुश्किल में तुम्हारी,जो थामे बांह मिलता है
न कोई आस कोई से,न कोई से अपेक्षा है
न कोई से गिले शिकवे, न कोई की उपेक्षा है
दुआ है दोस्तों की और नहीं हो खोट नीयत में
मिलेगा तारने वाला,तुम्हे हर एक मुसीबत में
लगन हो,कोशिशें होऔर अगर हो हौंसला हासिल
चले जाओ,चले जाओ,बड़ी आसान है मंजिल
किसी से अनबनी होती,किसी से मेल होते है
कभी हम पास होते हैं,कभी हम फ़ैल होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'





कभी सोलह की लगती हो, कभी सत्रह की लगती हो

कभी सोलह की लगती हो, कभी सत्रह की लगती हो

मुझे  जब कनखियों से देखती ,तिरछी नज़र से तुम

बड़ी हलचल मचा  देती हो     मेरे इस जिगर में तुम
दिखा कर दांत सोने का,    कभी जब मुस्कराती हो
तो इस दिल पर अभी भी सेकड़ों ,बिजली गिराती हो
हुआ है आरथेराइटिस, तुम्हे  तकलीफ   घुटने की
मगर है चाल में अब भी ,अदायें वो, ठुमकने  की
वही है शोखियाँ तुम में,वही लज्जत, दीवानापन
नजाकत भी वही,थोडा,भले ही  ढल गया है तन
बदन अब भी मुलायम पर,मलाईदार  लगती हो
महकती हो तो तुम अब भी,गुले गुलजार लगती हो
तुम्हारा संग अब भी रंग ,भर देता है जीवन में
जवानी जोश फिर से लौटता है तन के आँगन में
सवेरे उठ के जब तुम ,कसमसा ,अंगडाई भरती हो
कभी सोलह की लगती हो,कभी सत्रह की लगती हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आंसू

               आंसू
 
नहीं अश्कों पे जाओ तुम,ये आंसू बरगलाते है
ख़ुशी हो या हो गम ,आँखों में आंसू आ ही जाते है
जो पानी आँख से बहता, सदा आंसू नहीं  होता
ये तो चेहरा बताता है,कोई हँसता है या  रोता
कोई जब दूर जाता है ,तो आँखें डबडबाती  है
कोई मुद्दत से मिलता है,तो आँखें भीग जाती है
 कभी जब भावनाओं में,जो विव्हल होता है ये मन
तो अपने आप होते नम,हमारी  आँख के चिलमन
निकल जाते है आंसूं ,आँख में कचरा अगर पड़ता
दवाई सुरमा डालो तो भी पानी आँख से   बहता
रसोई में जो काटो प्याज, आंसू आ ही जाते है
मिर्च झन्नाट खा लो तेज,आंसू डबडबाते   है
बहुत ज्यादा हंसी भी आँख में पानी है ले आती
करुण कोई कहानी सुन के आँखें नीर भर लाती
बहुत गुस्से में बरसा करते आंसूं बन के अंगारे
कभी भी,किस तरह के हों,ये आंसू होते है खारे
मगरमच्छी है कुछ आंसूं,जो होते है दिखाने को
किसी की सहानुभूति या किसी का प्यार पाने को
अपनी जिद्द मनवाते है बच्चे,अस्त्र  है आंसू
त्रिया हाथ पूरी करवाने को तो ब्रह्मास्त्र है आंसू
हसीनो के कपोलों पर ये मोती बन ढलकते है
तो हो कितने ही पत्थर दिल,सभी के दिल पिघलते है
बड़े कमबख्त है आंसू,यूं ही आ जाते है जब तब
बहे गौरी के गालों पर,बिगाड़े चेहरे का मेक अप
ह्रदय की भावनायें,वाष्पीकृत हो जो उठती है
तो हो कंडेंस,आँखों से,वो बन आंसूं ,निकलती है
आदमी आता है रोता,वो जाता ,हर कोई रोता
मगर भंडार आंसूं का,कभी खाली  नहीं  होता
हंसाते है, रुलाते है, मनाते है, सताते   है
ख़ुशी हो या हो गम,आँखों में आंसूं आ ही जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ओ कलम !!



ओ कलम तू लिखना वादों को,
मेरे हर बुलंद इरादों को;
मेरे ऊर की हर बातों को,
हर उठते हुए जज़्बातों को |

मेरे भावों की भाषा बन,
अभिव्यक्ति की अभिलाषा बन;
तू सत्य समाज का उद्धृत कर,
मेरे सपनों को विस्तृत कर |

मेरे शब्दों के पंख लगा,
हर खोट पे जाके दंश लगा;
असत्य न स्वीकार कर,
कुरीतियों पे वार कर |

न व्यर्थ कहीं गुणगान कर,
जो है जायज़ तू मान कर;
गंदगी कभी न माफ कर,
लिख-लिख के उनको साफ कर |

हर ओर ईर्ष्या व्याप्त है,
मानवता बस समाप्त है;
नैतिकता की तू अलख जगा,
बुराइयों पर अग्नि लगा |

ओ कलम न डर न डरने दे,
हुंकार सत्य का भरने दे;
काँटों में भी मुझे राही बना,
लहू का मेरे तू स्याही बना |

पर सत्य मार्ग न छोड़ तू,
नाता हरेक से जोड़ तू;
अच्छा-बुरा जो होता लिख,
तू ध्यान दिला, सब जाए दिख |

ओ कलम तू प्रेरणास्रोत बन,
संदेशों से ओत-प्रोत बन;
लिखा तेरा जो पढे बढ़े,
सोपान उचित हरवक्त चढ़े |

ओ कलम  मेरा हथियार बन,
मेरा सबसे निज यार बन;
अन्तर्मन का तू दूत बन,
मेरु-सा तू मजबूत बन |

जो ना कह पाऊँ मैं मुख से,
तू लिखना बांध उसे तुक से;
साहित्य पटल पर उड़ता जा,
ओ कलम मेरे शब्द बुनता जा |

श्रद्धा और श्राद्ध

             श्रद्धा और श्राद्ध

हम अपने पुरखों को,पुरखों के पुरखों को,

                  साल में पंद्रह दिन ,याद किया करते है
ब्रह्मण को हम प्रतीक,मान कर के,पितरों का,
                 पितृ पक्ष में उनको ,तृप्त  किया  करते है
श्राद्ध कर श्रद्धा से,तर्पण कर पितरों का,
                 मातृ शक्ति का वंदन, नौ  दिन तक करते है
यह उनकी आशीषों का ही तो प्रतिफल है,
                  दसवें दिन रावण  को,मार   दिया करते  है
विदेशी कल्चर की ,दीवानी नव पीढ़ी,
                     मात पिता   के खातिर,करती है इतना बस
एक बरस में केवल,एक कार्ड दे देती ,
                        एक दिवस मातृदिवस,एक दिवस पितृ दिवस   
इक दिन वेलेंटाइन,लाल पुष्प भेंट करो,
                         बाकि दिन जी भर के,मुंह मारो इधर  उधर
पूजती है पति को,भारत की महिलाएं,
                          मानती है परमेश्वर,रखती है व्रत   दिन भर
हमारे संस्कार,बतलाते बार बार,
                          होता है सुखदायी,परम्परा का पालन
बहुत पुण्य देता है,मात पिता का पूजन,
                           श्रद्धा से पूजो तो, पत्थर भी है भगवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

   

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