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बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

ऑउटडेटेड  रिश्ते 

दादा दादी ,नाना नानी 
ये सब है अब चीज पुरानी 
इनके दिन अब 'फेड 'हो गए 
ये 'ऑउटडेटेड' हो गये 

बीते दिन जब सभी पर्व में 
इन्हे पूजते सभी गर्व में 
सब 'रिस्पेक्ट ' दिया करते थे 
आशीर्वाद लिया करते थे 

लेकिन अब ये बूढ़े,खूसट 
सदा टोकना जिनकी आदत 
हरेक बात में टांग अड़ाते 
उंच नीच हमको समझाते 

'गेप' हो गया 'जनरेशन ' का 
इन्हे क्या पता न्यू फैशन का 
करना है यदि 'सेलिब्रेशन '
हम न चाहते है 'रिस्ट्रिक्शन '

इनके आगे लगता 'फियर '
खुल कर कह ना सकते 'चीयर '
हमें समझते अब भी बच्चा 
इन्हे 'अवॉइड 'करना अच्छा 

शायद इन्हे बुरा लगता है 
मौजमस्ती में सब चलता है 
दुखी मगर कुछ न बोलेंगे 
आशीर्वाद फिर भी ये देंगे 

घोटू 
चार पंक्तियाँ -५ 

उनकी हाँ में हाँ मिलाओ तुम सदा ,
बात हर एक पर  बजाओ तालियां 
अगर उनकी करी  ये चमचागिरी ,
समझो आशीर्वाद उनका पा लिया 
वो करे जो भी और जैसा भी करे ,
जरूरी, पुल तारीफों के बांधना 
बात उनके मन मुताबिक ना करी ,
लगेंगे  देने  तुम्हे  वो  गालियां 

घोटू 
बूंदी और सेव 

मोती सी गोलमोल,पीली एक मीठी बूंदी ,रसासिक्त 
और एक चरपरे,मनभावन ,कुरमुरे सेव है स्वादिष्ट 
दोनों ही सबको प्यारे है ,दोनों ने मोहा सबका मन 
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी बेसन ,वो भी बेसन 

जब गीला बेसन बूँद बूँद,था तला गया देशी घी में 
रसभरी चासनी उसने पी तो बदल गया वो बूंदी में 
मिल मिर्च मसाले संग बेसन ,निकला छिद्रों से झारी की 
और गर्म तेल में तला गया ,बन गया सेव वह प्यारी सी 
जैसी जिसकी संगत होती ,वैसी ही रंगत जाती बन 
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी बेसन ,वो भी बेसन 

सज्जन का साथ अगर मिलता ,मानव सज्जन बन जाता है 
मिलती जब दुर्जन की संगत ,तो वह दुर्जन कहलाता है 
पानी के संग घिसे चंदन ,तो वह प्रभु के मस्तक चढ़ता 
अग्नि का साथ अगर पाता ,तो किसी चिता में जा जलता 
संगत से एक राख बनता ,संगत से एक बने पावन 
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी चंदन,वो भी चंदन 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

Sunday, January 22, 2012

अहो रूप-महा ध्वनि

अहो रूप-महा ध्वनि 
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इक दूजे की करे प्रशंसा,हम तुम ,आओ
मै तुम्हे सराहूं,  तुम मुझे  सराहो
ऊंटों की शादी में जैसे,आये गर्दभ,गायक बन कर
ऊँट सराहे गर्दभ गायन,गर्दभ कहे  ऊँट को सुन्दर
सुनकर तारीफ,दोनों पमुदित,इक दूजे का मन बहलाओ
मै तुम्हे सराहूं,तुम मुझे सराहो
काग चोंच में जैसे रोटी, नीचे खड़ी लोमड़ी, तरसे 
कहे  काग से गीत सुनाओ,अपने प्यारे मीठे स्वर से
तारीफ़ के चक्कर में अपने ,मुंह की रोटी नहीं गिराओ
मै तुम्हे सराहूं, तुम मुझे सराहो
इन झूंठी तारीफों से हम,कब तक खुद को खुश कर लेंगे
ना तो तुम ही सुधर पाओगे,और हम भी कैसे सुधरेंगे
इक दूजे की  कमी बता कर ,कोशिश कर ,सुधारो,सुधराओ
मै  तुम्हे सराहूं, तुम मुझे सराहो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
              साडू  भाई 

एक ही कुए से,बाल्टी भर भर के ,
     प्यास को जिन्होंने ,अपनी बुझाया है 
एक ही चूल्हे से,लेकर के अंगारा,
    सिगड़ियां अपनी को,जिनने  जलाया है 
एक ही चक्की का,पिसा हुआ आटा और ,
      एक  हलवाई की ही,  खाते मिठाई    है          
एक ही दूकान पर,ठगे गए दो ग्राहक,
       आपस में   कहलाते, वो साडू भाई    है 

घोटू   

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