एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

बदलता मौसम

लगता है मौसम बदलने लगा है
समय धीरे धीरे ,फिसलने लगा है
दिनों दिन जवानी ,अब ढल सी गयी है
उमर हाथ से अब , निकल  सी गयी है
कभी हौसला था ,इशक में तुम्हारे
ला दूं तुम्हे , तोड़  कर  चाँद  तारे
मगर वक़्त ने यूं ,कमर तोड़ दी है
हमने वो अपनी ,जिदें छोड़ दी  है
पुरानी सब आदत,बदल सी गयी है
उमर हाथ से अब निकल सी गयी है
कभी होते थे दिन ,उमंगों के ऐसे
उडा करते थे हम, पतंगों के  जैसे
मगर बाल सर से अब उड़ने लगे  है
हक़ीक़त से जीवन की ,जुड़ने लगे है
आने लगी अब ,अकल सी गयी है
उमर हाथ से अब,निकल सी गयी है
बहुत याद आती है ,जवानी की बातें
थे चांदी से दिन और सोने सी  रातें
बुढापे में ये मन ,कसकने लगा है
झुर्राया तन हम पे ,हंसने लगा है
मुरझा ,चमकती ,शकल सी गयी है
उमर हाथ से अब ,निकल सी गयी है

घोटू

बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

हमारे बुजुर्ग....


पुरानी वेलेंटाइन से प्रणय निवेदन 

जमाना वो भी था तुम हूर लगा करती थी 
जवानी,हुस्न  पे  मगरूर लगा करती  थी
कितने ही लोग तुमपे लाइन मारा करते थे 
नज़र बचा के प्रोफ़ेसर भी ताड़ा करते थे 
शोख,चंचल और बला की तुम खूबसूरत थी 
दूध से नहाई ,तुम संगेमरमर की मूरत थी 
वक़्त की मार ने कुछ ऐसा जुलम ढाया है 
क्या से क्या हो गयी तुम्हारी कंचन काया है 
तुम्हारा प्यारा सा वो गुलबदन है फूल गया 
सुराहीदार सी गरदन पे मांस  झूल  गया 
छरहरा था जो बदन आज थुलथुलाया है 
थोड़ी धूमिल सी लगी ,होने कंचन काया है   
तो क्या हुआ जो अगर ढल गयी जवानी है 
न रही चेहरे पे रौनक  वो ही पुरानी  है 
हुस्न की जिसके हर तरफ ही शोहरत थी कभी
खण्डहर बतलाते ,बुलन्द इमारत थी कभी 
बन गयी आज तुम इतिहास का एक पन्ना हो 
बुजुर्ग आशिकों की आज भी तमन्ना  हो 
वैसे भी हम तो पुरातत्व प्रेमी  है , पुराने  है
इसलिए आज भी हम आपके  दीवाने  है 
आरज़ू है कि हम पे नज़रें इनायत  कर दो 
बड़ी बेरंग जिंदगानी  है ,इसमें  रंग भर दो
तुम्हारे प्यार का हम ऐसा कुछ सिला देंगे 
कसम से याद जवानी की हम  दिला देंगे 

घोटू     

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

माँ तुझे प्रणाम 

तूने मुझको पाला पोसा ,तू मेरी जननी है माता 
जब भी मुझे वेदना होती,नाम तेरा ही मुंह पर आता 
कैसे तुझे पता चल जाता,जब भी मुझको दर्द सताता 
अन्तरतल से बना हुआ है ,ऐसा तेरा मेरा  नाता 
तेरे चरणों में मौजूद है ,सारे तीरथ  धाम 
माँ तुझे प्रणाम 
नौ महीने तक रखा कोख में ,तूने कितना दर्द उठाया 
फिर जब मै दुनिया में आया,तूने अपना दूध पिलाया 
चिपका रखा मुझे छाती से ,तूने मुझको गोद उठाया 
ऊँगली पकड़ सिखाया चलना ,भले बुरे का बोध कराया 
इस दुनिया की उंच नीच का मुझे कराया ज्ञान 
माँ तुझे प्रणाम 
 धीरे धीरे ,बड़ा हुआ मैं ,गए बदलते कितने मौसम 
मुझको कुछ तकलीफ नहीं हो ,तूने ख्याल रखा ये हरदम 
मैं बीमार पड़ता तू रोती ,मैं हंसता तो खुश होती तुम 
करी कटौती खुद पर ताकि मुझको कुछ भी नहीं पड़े कम 
तूने मेरी खुशियों खातिर ,किया नहीं आराम 
माँ तुझे प्रणाम 
माँ तू ही मेरी ताक़त है ,मेरी शक्ति,मेरा बल है 
तेराआशीर्वाद हमेशा ,मेरे लिए बना सम्बल है 
मुझे बचाता ,हर पीड़ा से ,तेरा प्यार भरा आँचल है 
मैं उपकृत हूँ,ऋणी तुम्हारा ,मेरा रोम रोम हरपल है 
मुझ पर तेरी कृपा हमेशा ,बनी रहे अविराम 
माँ तुझे प्रणाम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
              जिंदगी 

तमन्ना थी जिंदगी में ,फतह कर लूं हर किला 
मगर जो था मुकद्दर में, मुझे बस वो ही मिला 
हार जो झेली कभी तो,कामयाबी भी मिली,
यूं ही बस चलता रहा इस जिंदगी का सिलसिला 
 दुश्मनो ने राह में ,कांटे बिछाये तो कभी,
दोस्तों ने हर कदम पर ,फूल भी डाले खिला 
मेरी कुछ कमजोरियों की,भी हुई आलोचना ,
तो मेरी अच्छाइयों का भी मिला,मुझको सिला 
दुनियाभर की सारी खुशियां ,मिलगयी उसदिन मुझे ,
तेरे जैसे हमसफ़र का ,साथ जिस दिन से मिला 
अब तो हँसते गाते सारी उमर ये कट जायेगी ,
जिंदगी मुझको नहीं है ,तुझसे कोई भी गिला 

घोटू 
 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-