पुरानी वेलेंटाइन से प्रणय निवेदन
जमाना वो भी था तुम हूर लगा करती थी
जवानी,हुस्न पे मगरूर लगा करती थी
कितने ही लोग तुमपे लाइन मारा करते थे
नज़र बचा के प्रोफ़ेसर भी ताड़ा करते थे
शोख,चंचल और बला की तुम खूबसूरत थी
दूध से नहाई ,तुम संगेमरमर की मूरत थी
वक़्त की मार ने कुछ ऐसा जुलम ढाया है
क्या से क्या हो गयी तुम्हारी कंचन काया है
तुम्हारा प्यारा सा वो गुलबदन है फूल गया
सुराहीदार सी गरदन पे मांस झूल गया
छरहरा था जो बदन आज थुलथुलाया है
थोड़ी धूमिल सी लगी ,होने कंचन काया है
तो क्या हुआ जो अगर ढल गयी जवानी है
न रही चेहरे पे रौनक वो ही पुरानी है
हुस्न की जिसके हर तरफ ही शोहरत थी कभी
खण्डहर बतलाते ,बुलन्द इमारत थी कभी
बन गयी आज तुम इतिहास का एक पन्ना हो
बुजुर्ग आशिकों की आज भी तमन्ना हो
वैसे भी हम तो पुरातत्व प्रेमी है , पुराने है
इसलिए आज भी हम आपके दीवाने है
आरज़ू है कि हम पे नज़रें इनायत कर दो
बड़ी बेरंग जिंदगानी है ,इसमें रंग भर दो
तुम्हारे प्यार का हम ऐसा कुछ सिला देंगे
कसम से याद जवानी की हम दिला देंगे
घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।