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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

                      जड़े 

जो ऊपर से लहराते है और मुस्काते,महकाते है 
निज सुंदरता पर नाज़ किये जो किस्मत पर इतराते है 
होती है किन्तु जड़े इनकी ,सबकी जमीन के नीचे है 
ये सब तो तभी पनप पाते,जब कोई इनको सींचे  है 
जब तक इनकी मजबूत जड़ें,ये तब तक शान हुआ करते 
जो जड़े हिल गयी थोड़ी सी,तो ये कुरबान  हुआ करते 
इतना महत्व है जब जड़ का ,उनकी सोचो जो खुद जड़ है 
इन ऊपर उगने वालों से ,ये सब के सब होते बढ़  है 
आलू जमीन  के नीचे है, बारह महीनो का भोजन है 
नीचे जमीन के ही बढ़ते ,ये प्याज और गुणी लहसन है 
अदरक जमीन के नीचे है ,जो कितने ही गुण वाला है 
भू के अंदर उगती हल्दी ,जो भेषज और मसाला है 
धरती नीचे मूली ,सलाद और शलजम बड़ी भली लगती 
देती है तैल ,स्वाद वाली ,भू में ही मुंगफली  लगती 
कितनी ही जड़ीबूटियां भी उगती जमीन के अंदर है 
पैदा जमीन में होता है ,तब ही गुणवान चुकन्दर है 
हर बीज पनपता धरती में,माँ सीने की ऊष्मा पाकर 
जड़ से ही होता है विकास ,बनता तब वृक्ष घना जाकर 
ये सब ही भले दबे रहते ,भीतर ही भीतर बढ़ते है 
माँ धरती से चिपटे रहते ,तब ही गुण इनके बढ़ते है 
रहते जमीन के नीचे जो ,वो गुण की खान हुआ करते 
इनके जमीन से जुड़ने से ,इनके गुणगान हुआ करते 
इसलिए जुडो तुम धरती से,ये देश  तभी तो संवरेगा
तुम्हारा धरती से जुड़ना ,तुम में कितने गुण भर देगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

बहुएं तो बहुएं होती है 

बेटे की शादी होने पर ,कुछ ऐसी हालत होती है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है
जिसके आने की खुशियों की ,घर में गूंजी शहनाई थी  
अपनों से भी ज्यादा प्यारी ,कल तक जो नार पराई थी
अपने संग गाडी भर कर के ,लेकर दहेज़ जो आई थी 
 दिल और दिमाग में बेटे के ,जो जादू बन कर छाई थी
 अक्सर माँ बेटे के रिश्तों में ,बीज कलह के बोती  है 
तुम लाख बेटियों सी समझो ,बहुएं तो बहुएं  होती है 
फिर प्रेम जता कर के पति पर फेंका करती जादू ऐसा 
ना रहता है बेटे का भी ,व्यवहार वही पहले  जैसा 
कर छल प्रपंच कब्ज़ाती है ,वो घर का सब रुपया पैसा 
यह सब तो घर घर होता है ,इसमें हमको अचरज कैसा 
वह रौब जमाती ,घर भर के ,सर पर सवार वो होती है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है 
धीरे धीरे घर का सारा ,व्यवहार  बदलने लगता है 
बन कर गुलाम वो जोरू का,बेटा भी डरने लगता है 
जो रस्ता पत्नी दिखलाती,वह उस पर  चलने लगता है 
हो जाते है माँ बाप दुखी ,ये उनको खलने लगता है 
माँ के आंसू टेसुवे लगते ,बीबी के आंसू मोती  है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है 
धीरे धीरे ये घटनाएं ,परिवार विभाजन  लाती है 
घर के अंदर की राजनीती ,कुछ ऐसे से गरमाती है 
वो एक दुसरे को घर में ,आपस में फिर लड़वाती है 
जिसने उससे माँ छुड़वाई ,उसकी वो माँ छुड़वाती है 
ये किस्सा नहीं एक घर का ,घर घर ये हालत होती है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

धंधा पॉलिटिक्स का 

ना तो डिग्री की जरूरत,ना ही पूँजी चाहिए ,
ना किसी की नौकरी ,ना काम कोई रिस्क का 
बोलने में हो पटुता ,आता हो दंदफंद अगर,
सबसे ज्यादा फायदेमंद ,धंधा पॉलिटिक्स का 
इसलिए ऐ दोस्त हमतुम ,मिल के कुछ ऐसा करें ,
एक दूजे के ओपोजिट ,करे हम नेतागिरी 
चन्द अपने अपने चमचों की जुटाएं भीड़ हम ,
धरना दे,वादे करें ,हर चीज कर देंगे फ्री 
बनने कॉमनमैन ज्यों गाँधी ने त्यागे वस्त्र थे ,
हुआ केजरीवाल जनप्रिय बाँध मफलर कान पर 
वैसे ही हमतुम बनाने ,छवि कॉमन मेन की ,
जब भी पब्लिक में जो जाएँ,फट कपड़े पहनकर
तुम मेरी बखिया उधेड़ो,मैं तुम्हे ऊँगली करू,
एक दूजे को यूं ही हम ,रहे देते गालियां 
इस तरह से हमारी दूकान भी चलती  रहे ,
मज़ा पब्लिक को मिले ,हम तुम बटोरें तालियां 
तुम किसी से ,मुझ पे जूता ,उछलवाओ सभा में,
क्योंकि ब्रेकिंग न्यूज़ बनते,इस तरह के वाकिये 
और हम तुम टीवी पर आते रहेंगे रोज ही ,
मिडिया को तो हमेशा ,कुछ मसाला चाहिये 
इस तरह पॉपुलरिटी हमारी बढ़ जायेगी ,
और फायरब्रांड नेता ,सब हमे बतलायेंगे 
हमारी भी छवि बनेगी ,लड़ेगे हम इलेक्शन ,
हमे है विश्वास कि हम ,जीत निश्चित  जाएंगे 
कितने ही मतभेद हममें तुममे दिखते हो मगर,
दोस्त बन सत्ता के खातिर ,मिलाएंगे हाथ हम 
भरेंगे तिजोरियां ,जनता को जी भर लूट कर,
पांच सालों तक अगर ,यूं ही रहे जो साथ हम 
यूं तो संग में बैठ कर ,मिल कर पियेंगे जाम हम ,
मगर पब्लिक को दिखाने ,करेंगे हम दुश्मनी 
धंधा पॉलिटिक्स का अपना चलाने वास्ते,
बहुत होती फायदेमंद ,इस तरह की अनबनी 
कोई गर जो फस भी जाए ,किसी रिश्वत काण्ड में,
दूसरा पावर में हो तो,मदद वो उसकी करे 
इस तरह बेख़ौफ़ होकर ,देश हम चरते रहें ,
सैया हो कोतवाल तो फिर,हम किसी से क्यों डरे 
राजनेता करे जो भी,होता है जायज सभी ,
राजनीति में न होता ,काम कुछ 'इथिक्स ' का 
इसमें होता ही नहीं है ,रिटायर कोई,कभी ,
सबसे ज्यादा फायदेमंद,धंधा पॉलिटिक्स का 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

अब तो शिद्दत हो गयी 

चर्चा  करते  करते  मुद्दों की ,तो  मुद्दत  हो  गयी 
नतीजा कुछ भी न निकला ,अब तो शिद्दत हो गयी  
अभी तक भी कंवारा ,बैठा है मेरा  यार वो ,
रोज कहता था फलां से ,उसको उल्फत हो गयी 
शमा जलती ही रही ,कुछ फर्क ना उसको पड़ा,
मुफ्त  में  परवाने कितनो , की शहादत हो गयी 
सीमा पर कितने ही सैनिक मरे ,सब चलता रहा ,
एक  एम पी मर गया  तो बन्द   संसद हो गयी 
करोड़ों का काला पैसा ,जमा जिनके पास था ,
नोटबन्दी क्या हुई ,उनको तो हाजत  हो गयी 
दे दिया औरों के हाथों ,साइकिल का हेंडिल,
बाप बेटे लड़ लिए , कुर्सी  मुसीबत हो गयी 
जबसे पिछड़ापन तरक्की की  गारन्टी बन गया ,
लाभ लेने वालों की ,लम्बी सी पंगत  हो गयी 
निगलते भी नहीं बनता ,ना ही बनता उगलते,
अब तो इस माहौल में ,रहने की आदत हो गयी 

मदन मोहन बाहेती;घोटू;

सोमवार, 30 जनवरी 2017

           आदमी की बेबसी

इस तरह की बेबसी में ,रहा जीता आदमी
खून कम था,गम के आंसू ,रहा  पीता आदमी
पैसे की परवाह में ,परवाह खुद की, की नहीं
ऐसा लापरवाह रहा कि जिंदगी जी ही नहीं
अपने पर ही सब कटौती ,रहा करता आदमी
रोज ही जीने के खातिर ,रहा मरता  आदमी
गृहस्थी के बोझ में वो इस तरह पिसता रहा
खून तन का ,बन पसीना ,बदन से रिसता रहा 
रख के स्वाभिमान गिरवी ,औरों की सुनता रहा
कभी तो ये दिन फिरेंगे ,ख्वाब ये बुनता  रहा
ठोकरें खा,गिरता ,उठता , गया चलता आदमी
रोज ही जीने के खातिर रहा मरता   आदमी
 मुश्किलों  में दिन गुजारे,रात भी सो ना सका
इतने गम और पीड़ में भी ,खुल के वो रो ना सका
हंसा भी वो ,जो कभी तो ,खोखली  सी  एक हंसी
जिंदगी भर ,रही छायी,  मायूसी और  बेबसी
जुल्म ये खुद पर  हमेशा  ,रहा करता  आदमी
रोज ही जीने के खातिर ,रहा मरता   आदमी
भाग्य के और आस्था के गीत वो गाता रहा
पत्थरों की ,मूरतों को,सर नमाता वो  रहा
पुण्य  थोड़ा सा कमाने ,पाप  करता वो रहा
इसी उलझन में हमेशा ,बस उलझता वो रहा
जमाने की बेरुखी से ,रहा डरता  आदमी
रोज ही जीने के खातिर ,रहा मरता आदमी

मदनमोहन बाहेती'घोटू'

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