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गुरुवार, 11 जून 2015

टी.वी. न्यूज़ चैनल

       टी.वी. न्यूज़ चैनल

मैं आत्मउल्झनानन्द 'बेखबर'
आपकी पसंदीदा न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर
आपका स्वागत करता है
आपका यह पसंदीदा चैनल ,
देश में होनेवाली हर हलचल पर,
अपनी पैनी नज़र रखता है
और हर खबर सबसे पहले ,
आप तक पहुंचा दिया करता है
कोई भी खबर को तोड़ मरोड़ कर ,
यानि कि ब्रेक करके ,हम ब्रेकिंग न्यूज़ बनाते है
और उसके बाद ,एक लम्बे ब्रेक में ,
विज्ञापन दिखाते है
और उसीसे हम कमाते है
कोई भी  करेंट टॉपिक पर,
विपरीत विचारधाराओं के लोगों की ,
पैनल बनवा कर ,लेते है उनके व्यूहज
और  लोगों को करते है कन्फ्यूज
हम लोगो को चने के झाड़ पर चढ़ाते है
और  तिल का ताड़ बनाते है
 पर कभी कभी ताड़ का तिल भी बना देते है
और इससे अच्छा कमा लेते है
हमने जिसकी भी डुगडुगी बजाई है
उसने ही सत्ता पाई है
 कुछ ज्योतिषी भी है हमारे पेनल पर
जो रोज बताते है भविष्यफल
पर कई बार जब वो बतलाते है,
कि आज आपका लाभ का योग है
तो पेट्रोल के दाम बढ़ जाते उसी रोज है
कई बाबा लोगों की पोल भी हम खुलवाते है
तो दूसरे दिन ,उनके स्पोन्सर्ड ,
प्रोग्राम भी  दिखलाते है 
क्योंकि बाबा लोगों की सच्चाई बताना ,
हमारा सामाजिक कर्तव्य है
और स्पोंसर्ड प्रोग्राम दिखाना ,
हमारा बिजनेस है ,जिससे मिलता द्रव्य है
हम ख़बरें सुनाते रहते है दिनभर
और बड़े बड़े घोटाले करते है उजागर
और कभी कभी बड़े बड़े घोटाले दबा देते है
और इससे भी कुछ कमा लेते है
हम लोगों को सबकी खबर देते है
और हम सबकी खबर भी  लेते है
और अब थोड़ी देर के लिए ,
एक कमर्शियल ब्रेक लेते है

मदनमोहन बाहेती'घोटू ' 
 

भगवान क्यों हुआ पत्थर का

          भगवान क्यों हुआ पत्थर का

भगवान ने दुनिया को बनाया
उसे नदी,पर्वत और झरनो से सजाया
वृक्ष विकसाये ,पुष्प महकने  लगे
तितलियाँ उड़ने लगी,पंछी चहकने लगे
और इसके बाद जब उसने इंसान को गढ़ा
तो उसे देख कर वह खुश हो गया बड़ा
उसके बाद उसने कुछ दिन तक विश्राम किया
और फिर अपनी सर्वोत्तम कृति ,
औरत का निर्माण किया
और उसे देख कर खुद मुग्ध हो गया विधाता था
बहुत कोशिश करता था उसे समझने की ,
लेकिन समझ न पाता था
पर एक दिन अचानक,ऐसी कुछ बात हो गयी
उसके बनाये आदमी की ,
उस औरत से मुलाक़ात हो गयी
और उनके बीच हो गया कुछ ऐसा आकर्षण
कि वो दोनों मिल कर ,तोड़ने लगे,
भगवान के बनाये हुए सब नियम
उन्होंने उसके बगीचे से तोड़ कर ,
खा लिया एक वर्जित फल
और उनमे आ गयी अकल
और फिर यह देख कर ईश्वर हो गया परेशान
जब वो दोनों मिल कर करने लगे,
खुद ही नर नारी का निर्माण
अपने कार्यक्षेत्र में इंसान की घुसपैठ देख ,
सर घूम गया ईश्वर का
उसको इतना झटका लगा ,
कि हो गया वो पत्थर का

घोटू
 

राजनीति

               राजनीति

राजनीति तो है एक गहरा समन्दर
लोग  मोती  ढूंढते  है  इसके  अंदर
कभी भी स्थिर नहीं रहता यहाँ जल
तरंगे उठती , सदा है  यहाँ हलचल
है बड़ा खारा यहाँ का मगर पानी
कभी आता ज्वार भाटा  या  सुनामी
हुआ करते नित निराले खेल भी है
बहुत सारी शार्क भी है,व्हेल  भी है
दांत जिनके तीखे है और बड़े जबड़े
रोज ही करते  घोटाले और लफ़ड़े
कई  मछुवारे यहां रोजी चलाते
डालते है जाल और मछली फंसाते
कुछ किनारे पर खड़े कुछ कर न पाते
कुशल गोताखोर मोती ढूंढ  लाते
मगर इसमें लोग घुस पाते तभी है
नंगे होकर ,खोलते कपडे  सभी  है
जो है नंगे ,दांत जिनके शार्क से है
रत्नाकर ये बस उन्ही के वास्ते है

घोटू

बुधवार, 10 जून 2015

जवानी के वो दिन

      जवानी के वो दिन

है याद जवानी के वो दिन ,था रूप तुम्हारा मायावी
मैं था दीवाना जोश भरा,अब उम्र हुई मुझ पर हावी
लेकिन मेरे दीवानेपन, का अब भी है वो ही आलम
है प्यार बढ़ गया उतना ही,जितना कि जोश हुआ है कम
अपनी धुंधलाई आँखों से ,तुम मुझे देखती मुस्का कर
मैं तब भी होता था पागल,मैं अब भी होता हूँ पागल
जब जब  भी हाथ पकड़ता हूँ  ,स्पर्श तुम्हारा मैं  पाता
बिजली सी दौड़ा करती है ,तन भी सिहरा सिहरा जाता
ये वृक्ष अभी भी खड़ा तना ,पर हरे रहे अब पान  नहीं
 फिर भी देते है मंद पवन ,माना लाते  तूफ़ान  नहीं
ये पुष्प भले ही सूख गए ,पर खुशबू अब भी है बाकी
मदिरा उतनी ही मादक है ,वो ही प्याला ,वो ही साकी
ये बात भले ही दीगर है,पीने की उतनी  ललक नहीं
गरमी अब भी अंगारों में ,माना की उतनी दहक नहीं
क्या हुआ अगर मै झुर्राया ,और त्वचा तुम्हारी है रूखी
उतना ही दूध गाय देती,हो घास हरी या   फिर  सूखी
सब जिम्मेदारी निपट गयी ,बच्चे खुश अपने अपने घर
अब बचे हुए बस हम और तुम,अवलम्बित एक दूसरे पर
अब भूल गए सब राग रंग,जीवन के बदले रंग ढंग
अब शिथिल हो रहे अंग अंग,और रूठ गया हमसे अनंग
ढल गयी जवानी,जोश गया ,मस्ती का मौसम बीत गया
आओ हम फिर से शुरू करें ,जीवन जीने का दौर  नया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

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