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शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

देशी और विदेशी लोगों में अंतर

   देशी और विदेशी लोगों में अंतर

उनने पूछा विदेशों में घूमते रहते हो तुम,
              विदेशी लोगों में ,हममे,फर्क क्या  बतलाईये
हमने बोला वो भी इन्सां,हम भी इन्सां,रहने को,
              उनको भी घर चाहिए और हमको भी घर चाहिये
दोनो को ही अपना तन ढकने को कपडे चाहिये,
              और सोने के लिये ,तकिया और बिस्तर  चाहिये
गोरे है वो ,काला करते ,धूप में बैठे बदन ,
             और हमको गोरा होने क्रीम पावडर  चाहिये
पेट भरने,उनको ,हमको,सबको खाना चाहिये,
              मगर उनको साथ में ,वाईन या बीयर चाहिये
एक के संग घर बसा कर उम्र भर रहते है हम,
              और बदलते पार्टनर ,उनको अधिकतर चाहिये
हमको पढने और  उनको पोंछने के वास्ते,
               सवेरे ही सवेरे  ,दोनों को पेपर    चाहिये           

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 27 अगस्त 2012

aaj tumne kuchh likha kya

आज तुमने कुछ लिखा क्या ?

गाँव में या फिर गली में
देश भर की खलबली में
तुम्हे कुछ अच्छा  दिखा क्या?
आज तुमने कुछ लिखा  क्या  ?
बाढ़ है तो कहीं सूखा
अन्न सड़ता,देश भूखा
बेईमानी और करप्शन
विदेशों में देश  का  धन
कहीं रेली, कहीं धरना
रोज का लड़ना झगड़ना
बात हर एक में सियासत
साधते सब अपना मतलब
कई अरबों के घोटाले
लीडरों के काम काले
और इस सब खेल में है
कई नेता जेल में है
लुट रहा है देश का धन
हर एक सौदे में कमीशन
फिर कोई नेता बिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
चरमराती व्यवस्थाएं
डगमगाती आस्थाए
कीमतें आसमान चढ़ती
भाव और मंहगाई  बढती
लूट और काला बाजारी
मौज करते बलात्कारी
अस्मते लुटती सड़क पर
और सोती है पुलिस पर
हर तरफ है भागादौड़ी
पिस रही जनता निगोड़ी
प्रतिस्पर्धा लिए मन में
जी रहे सब टेंशन में
लड़ रहे नेता सदन में
बदलते निज रूप क्षण में
बात पर कोई टिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
संत योगी,योग करते
चेलियों संग भोग करते
धर्म अब बन गया धंधा
स्वार्थ में है मनुज अँधा
छा रहा आतंक सा है
आदमी हर तंग सा है
पडोसी ले रहे  पंगे
कर रहे ,घुसपेठ,दंगे
बड़ी नाजुक है अवस्था
हुई चौपट सब व्यवस्था
घट रही है  kkकी दर
है सभी नज़र हम पर
आगे ,पीछे,दायें,बायें
आँख है सारे  गढ़ाये 
चाईना क्या,अमरिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा  क्या ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

kharrate

खर्राटे
नींद में गाफिल जो रहते,होंश है उनको कहाँ
उनके खर्राटों को सुन कई,लोग होते  परेशां
खुद तो सोते चैन से और दूसरों को जगाते
आदमी को अपने खर्राटे नहीं है   सुनाते
इस तरह ही दूसरों की बुराई आती नज़र
लोग  अपनी बुराई से,रहा करते  बेखबर
झांक कर के देखिये अपने गरेंबां में कभी
नज़र आ जाएगी तुमको,स्वयं की कमियां सभी
कमतरी का अपनी सब,अहसास जिस दी पायेंगे
खर्राटे या बुराई सब खुद बखुद मिट जायेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

manmohan uchav

         मनमोहन उचाव
कई दिनों से,हमारी छवि ,
बड़ी मैली हो रही थी
हमारी सरकार,
कई आरोपों का बोझा ढो रही थी
हमें अपनी छवि का करना था,
स्वच्छ और साफ़ आलांकन
इसलिए हमने सस्ते में करदिया,
कोल ब्लोक का आबंटन
क्योंकि एक्टिवेटेड कार्बन,
पानी कि अशुद्धियों को ,
साफ़ कर पीने लायक बनाता है
और कोयला भी कार्बन का एक स्वरूप कहाता है
ये सच है ,माल थोडा सस्ते में बिका
पर लोगों को हमारे इस शुध्धिकरण प्रयास में भी,
घोटाला दिखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

शनिवार, 18 अगस्त 2012

Sahitya Surbhi: अगज़ल - 44

Sahitya Surbhi: अगज़ल - 44:       अपनी हस्ती को गम के चंगुल से आजाद करने का        काश ! हम सीख लेते हुनर खुद को शाद करने का ।       अंजाम की बात तो बहारों पर मुनस्...

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