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शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

गुनगुनाती रही



मेरी खामोशियाँ  मुझे रुलाती रहीं
बिखरे हर अल्फ़ाज के हालातों 
में फंसी खुद को मनाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

आँखों में सपने सजाती रही 
धडकनों को आस बंधाती रही 
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

हाथ बढाया कभी तो छुड़ाया कभी 
यूँ ही तेरे ख्यालों में आती जाती रही 
याद कर हर लम्हा मुस्कुराती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही 
हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही 
खुद को कभी हंसती कभी रुलाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही |

- दीप्ति शर्मा 

गुरुवार, 17 नवंबर 2011

पेट्रोल के दाम

पेट्रोल के दाम
-----------------
हमने पेट्रोल के दाम बढ़ाये,
लेकिन ममता के दबाब में,
'रोल बेक' नहीं किया
बल्कि कुछ दिनों बाद,
दाम घटा कर,
जनता को,'राहत का पैकेज' दिया
ये राजनीती का दाव है
आने वाला चुनाव है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 16 नवंबर 2011

गोल गप्पे

गोल गप्पे
------------
जिंदगी,
पानीपूरी के पानी की तरह,
खट्टी,मीठी,चटपटी,तीखी,
और स्वादिष्ट होती है
और आदमी इसे गटागट पी भी सकता है
पर उसमे इतना मज़ा नहीं आता
अगर उसका असली स्वाद लेना हो,
तो गोलगप्पे की तरह,
एक जीवनसाथी की जरुरत पड़ती है,
जिसमे भर भर कर,
घूँट घूँट पीने से,
जिंदगी का असली मज़ा आता है

मदन मोहन बहेती'घोटू'

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

हमारे गोल मोल सर


आँखों में चश्मा , चेहरा है गोल
पढ़ाते रहते वो हमें  गोल मोल 
बोर्ड पर लिखते है इतना और 
हमेशा बोलते है ओर ओर |
कहते हैं वो इतना मधुर कि
बोलते उनके सो जाते सारे लोग 
फिर भी वो नही रुकते और 
पढ़ाते रहते वो हमे गोल मोल |
हाथों में  पेपर चौक थाम के 
कितना पढ़ाते हैं बार बार |
कद है छोटा तन तन है मोटा 
पढ़ने में है थोडा खोटा
नंबर देता छोटा मोटा |
टुकुर टुकुर यूँ देखे सबको 
क्यों देखे ये पता नहीं 
मन ना हो पढने का फिर भी 
लिखते है वो मोर मोर 
पढ़ाते रहते हमे गोल मोल |
-  दीप्ति शर्मा 

सोमवार, 14 नवंबर 2011

आखरी मौका


  आखरी मौका
------------------
मेरी शादी के अवसर पर,
जब मै घोड़ी पर बैठ रहा था,
मेरे शादीशुदा मित्र ने कहा था,
'देखले,कितना शानदार मौका है
एसा मौका बार बार नहीं मिलता'
उस समय तो मै समझ नहीं पाया,
पर अब समझ में आया है  उसका मतलब
दोस्त ने कहा था'घोड़ी भी है,मौका  भी है,
जीवन भर की गुलामी से बचना है ,तो,
एडी दबा,घोड़ी दोड़ा,और भागले अब '
भागने का आखरी  मौका  था
पर मुझे रास्ता न दिखे,इसलिए लोगों ने,
मेरा चेहरा,सेहरे से ढक रखा था
 और मै भाग ना जाऊं ,मुझे रोकने के लिए,
बारातियों ने मुझे घेर कर रखा था
और तो और ,आपको मै क्या बतलाऊं
जब मै शादी के मंडप में पहुंचा,
मेरे जूते छिपा दिए गए,
कहीं मै भाग ना जाऊं
और विवाह  की बेदी के सामने बैठा कर,
दुल्हन के हाथ से मेरा हाथ बाँधा गया
जैसे गुनाहगार को हवलदार  पकड़ता है,
दुल्हन ने मेरा हाथ पकड़ा,
और मेरा भागने का ये मौका भी  हाथ से गया
और हाथ को बांधे बांधे ,
दुल्हन को आगे कर उसके पीछे पीछे,
मैंने अग्नि के चार फेरे भी काटे
और मुझे बहला कर ले लिए सात वादे
तब कहीं अगले तीन फेरों के लिए,
मुझे निकलने दिया आगे
और फिर चांदी के सिक्के से
मैंने उसकी मांग भरी
और एक वो दिन था और एक आज का दिन,
उसकी सभी मांगों को पूरी कर
वो आगे और उसके पीछे पीछे,
काट रहा हूँ मै चक्कर
काश घोड़ी पर बैठते वक़्त ही,
अपने दोस्त की बात समझ में आ जाती
तो आज ये नौबत नहीं आती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

आताताइयों के इस समाज में

मै ठिठक कर रुक गया
मंदिर के आहाते में
आज फिर एक लाश मिली थी
तमाशबीन
लाश के चारों ओर खडे थे
नजदीक ही कुछ
पुलिसवाले भी खडे थे
उत्सुकतावश मै भी शामिल हो गया तमाशवीनों में
देखा कटे हाथों वाली वह लाश
औधे मुॅह पडी थी
नजदीक ही उसके कटे हाथ पडे थे
जिसकी मुट्ठियॉ
अभी तक भिंची थी
न मालूम क्रोध से अथवा विरोध से
भीड का एक आदमी
चिल्ला चिल्लाकर बता रहा था
आज दूसरा दिन हुआ है
मंदिर को खुले और
हिंसा फिर होने लगी है
मुझे उसकी बात पर हॅसी सी आयी
तभी पुलिसवाले ने मेरी तरफ निगाह घुमायी
और बोला मिस्टर! तुम जानते थे इसे?
मैने कहा- जी नहीं,
तभी दूसरे ने लाश को
पलट दिया
लाश का चेहरा देखते ही मै सकपका गया
खून से लिपटी
कटे हाथों वाली वह लाश
किसी और की नहीं
मेरी अपनी ही तो थी?

शनिवार, 12 नवंबर 2011

आएगा कब 'लिटिल बच्चन ?'

आएगा कब 'लिटिल बच्चन ?'
-------------------------------- 
लगा कर के टकटकी सब
प्रतीक्षा में   लगे है   अब
जल्द आये वह मधुर क्षण
आएगा  जब 'लिटिल बच्चन'
अमित जी उत्सुक बहुत है
जया जी व्याकुल बहुत है
उल्लसित  अभिषेक जी है
प्रतीक्षा में  ये सभी है
मगन मन बेचेन श्वेता
आएगा  नन्हा चहेता
एश्वर्या दर्द पीड़ित
किये मन में प्यार संचित
राह पर है  प्रसूति की
एक नयी अनुभूति  की
ह्रदय में आनंद ज्यादा
बनेंगे अमिताभ दादा
और 'गुड्डी 'जया  दादी
खबर ने खुशियाँ मचा दी
टिकटिकी कर रही टक टक
धड़कने बढ़ रही   धक धक
प्रतीक्षा में है सभी जन
आएगा कब 'लिटिल बच्चन'
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

अमृता प्रीतम की कविता और उनकी धरोहर को बचाने की अपील

अमृता प्रीतम जी का एक लोकप्रिय उपन्यास है ‘एक थी सारा’ इस उपन्यास के संबंध में अमृता जी ने अपनी जीवनी में लिखा था कि यह एक सच्ची कहानी थी उन्होंने सारा के साथ खतोकिताबत की बात भी स्वीकारी है और लिखा है सारा का पहला खत जो मुझे मिला 1980 में उस पर 16 सितम्बर की तारीख थी लिखा था अमृता बाजी! मेरे तमाम सूरज आपके। मेेरे परिन्दों की शाम भी चुरा ली गयी है आज दुख भी रूठ गया है कहते है फैसले कभी फासलों के सुपुर्द न करना!
मैने तो फैसला आज तक नहीं देखा
यह कैसी आवाजें हैं!
जैसे रात को जले कपडों में घूम रही हैं............
जैसे कब्र पर कोई आँखें रख गया हो!
मैं दीवार के करीब मीलों चली, और इन्सानों से आजाद हो गयी
मेरा नाम कोई नहीं जानता , दुश्मन इतने वसीह क्यूँ हो गये !
मैं औरत- अपने चाँद में आसमान का पैबन्द क्यूँ लगाऊँ?
मील पत्थर ने किसका इन्तजार किया!
औरत रात में रच गई है अमृता बाजी!
आखिर खुदा अपने मन में क्यूँ नहीं रहता!
आग पूरे बदन को छू गई है
संगे मील, मीलों चलता है और साकत है.....
मैं अपनी आग में एक चाँद रखती हूँ
और नंगी आँख से मर्द कमाती हूँ
लेकिन मेरी रात मुझसे पहले जाग गई है
मैं आसमान बेचकर चांद नहीं कमाती...........
खत हाथ में पकडा रह गया ... लगा ...आसमान फरोशों की दुनिया में यह सारा नाम की लडकी कहाँ से आ गई? तो इस दुनिया में कैसे जिएगी? चाहा इसे दिल में छिपा लूँ.......- और यह रही धूल धूसरित मकान की आज की सूरत स्व0 अमृता प्रीतम जी के निवास के25 हौज खास को बचाकर उसे राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संजोने के लिये अनेक साहित्य प्रेमियों द्वारा माननीय राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य एवं दिल्ली सरकार से अनुरोध किया है। ऐसा विश्वास है कि इस मुहिम का असर अवश्य ही होगा । फिलहाल इस मुहिम में शामिल लोगों के प्रयासों का हाल लिंक के रूप में आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ साथ ही यह भी उम्मीद करूँगा कि आप भी अपना अमूल्य सहयोग देकर इस मुहिम को आगे बढाते हुये महामहिम से इस प्रकरण में हस्तक्षेप का अनुरोध अवश्य करेंगें। कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें यहाँ महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है ।!!!!

एक कबूतर ---

एक कबूतर ---
------------------
एक कबूतर आता जाता
मेरा फ्लेट सातवीं मंजिल पर बिल्डिंग की,
फिर भी ऊपर उड़ कर आता,ना इतराता
वही सादगी और भोलापन
मटकाता रहता है गरदन
अपनी वही गुटरगूं  करना
सहम सहम धीरे से चलना
कभी कभी जब होता प्यासा,
रखे गेलरी में पानी से भरे पात्र में,
चोंच डूबा,कुछ घूंटे भर कर प्यास बुझाता
एक कबूतर आता जाता
एक दिन उसके साथ आई थी एक कबूतरी
सुन्दर सी मासूम ,जरा सी भूरी भूरी
उसकी नयी प्रेमिका थी वो,
ढूंढ रहे थे वो तन्हाई
बैठ गेलरी के कोने में चोंच लड़ाई
इधर उधर ताका और झाँका,
प्यार जताया एक दूजे से
और प्रणय क्रीडा में थे वो लीन हो गए
फिर दोनों ने पंख फैलाये,फुर्र हो गए
देखा कुछ दिन बाद साथ में कबूतरी के,
चोंचे भर भर तिनके लाता
शायद निज परिवार बसाने,नीड़ बनाता
एक कबूतर आता जाता

मादा मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 9 नवंबर 2011

ग़ज़ल

ग़ज़ल
-------
जो कम बालों वाले या गंजे होते है
अक्सर उनकी जेबों में कंघे होते है
अपने घर में वो ताले लटका कर रखते,
जो धनहीन और भूखे नंगे होते है
प्रेम भाव,मिल जुल रहना ,सब धरम सिखाते,
नाम धरम का  ले फिर क्यों दंगे  होते है
जो कुर्सी पर बैठे ,वो ही बतलायेंगे,
कुर्सी के खातिर कितने पंगे होते है
हो दबंग कितने ही कोई,मर जाने पर,
दीवारों पर ,बन तस्वीर ,टंगे होते है
पांच साल तक ,शासन करते,पर चुनाव में,
वोट मांगते,नेता,भिखमंगे  होते है
इनकी सूरत मत देखो,फितरत ही देखो,
होते सभी सियार,मगर रंगे होते है
'घोटू' ज्यादा मत सोचो,मन में दुःख होगा,
वो खुश रहते,जिनके मन चंगे होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

ममता तुम कितनी निर्मम हो

ममता,तुम कितनी निर्मम हो
गाहे बगाहे,जब जी चाहे,
हमें डराती रहती तुम हो
ममता तुम कितनी निर्मम हो
तुम्हे पता,कितनी मुश्किल,पर
घेर लिया है सब ने मिल कर
आन्दोलन करते है अन्ना
पत्रकार है,सब चोकन्ना
भ्रष्टाचार और मंहगाई
काबू होती,नहीं दिखाई
रोज फूटते ,कांड नये है
साथी कई तिहाड़ गये है
मंहगाई हद लांघ गयी है
जनता भी अब जाग गयी है
फेल हो रहे,सभी दाव है
और अब तो सर पर चुनाव है
डगमग है कानून व्यवस्था
मै बेचारा,क्या कर सकता?
हालत बड़ी बुरी हम सबकी
ऊपर  से तुम्हारी धमकी
कहती ,गठबंधन छोडोगी
बुरे वक़्त में ,संग छोडोगी
अटल साथ भी यही किया था
बार बार तंग बहुत किया था
क्या है भेद तुम्हारे मन का
धर्म न जानो,गठबंधन का
शायद इसीलिए क्वांरी हो
पर पड़ती सब पर भारी हो
देखो एसा,कभी न करना
अब संग जीना है संग मरना
कोई किसी को ,दगा न देगा
जो चाहो,पैकेज  मिलेगा
मौका देख ,दिखाती दम हो
ममता तुम कितनी निर्मम हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

सोमवार, 7 नवंबर 2011

सुरमई -सुबह


आँखें खुली ...
अँधेरा सा लगा 
कमरे से जब बहार आया 
सूरज की लाल -लाल किरणे मद्धम -मद्धम 
आसमान को निगल रहा था 
पड़ोस में 
संगीत की धुन कानो को झंझकृत कर रही थी 
सुबह सूरज 
मेरे नैनों को नई रह दिखा रही थी 
मेरा नन्हा "यज्ञेय " 
हंसते हुए ..... 
किलकारी ले रहा था 
वह सुबह मेरी जीवन की 
नई जंग बन गई 
चेहेरे पर मुस्कान थी पर 
जेम्मेदारी की इक .... नई आगाज बन गई ...
...........लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "

रविवार, 6 नवंबर 2011

लेपटोप क्या आया घर में----

लेपटोप क्या आया घर में----
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लेपटोप क्या आया घर में,जैसे  सौत आ गयी मेरी
दिन भर साथ लिए फिरते हो,करते रहते छेड़ा छेड़ी
एक ज़माना था जब मेरी,आँखों में दुनिया दिखती थी
कलम हाथ में  थाम उंगलियाँ,प्यारे प्रेमपत्र लिखती थी
अब तो लेपटोप परदे पर,नज़रें रहती गढ़ी तुम्हारी 
छेड़ छाड़ 'की पेड'बटन से,उंगली करती रहे  तुम्हारी
अब मुझको तुम ना सहलाते,अब तुम सहलाते हो कर्सर
लेपटोप को गोदी में ले,बैठे ही    रहते  हो     अक्सर
कभी कभी तो उसके संग ही , लेटे काम किया करते हो
'मेल' भेजते,'चेटिंग','ट्विटीग' ,सुबहो- शाम किया करते हो
रोज 'फेस बुक' पर तुम जाने किस किस के चेहरे हो ताको
और खोल कर के' विंडो 'को,जाने कहाँ कहाँ तुम झांको
कंप्यूटर था,तो दूरी थी,ये तो मुआ रहे है चिपका
करते रहते 'याहू याहू',फोटो देखो हो किस किस का
मेरे लिए जरा ना टाइम ,दिन है सूना,रात अँधेरी
लेपटोप क्या आया घर में,जैसे सौत आ गयी मेरी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 5 नवंबर 2011

वो




आंचती हुई काजल को
वो कैसे मुस्कुरा रही है |,

लुफ्त उठा जीवन का
मोहब्बत की झनकार में
अपनी धुन में मस्त उसकी
पायलियाँ गीत गा रही हैं |

केशो को सवारकर 
चुनरी ओढ़ वो घूँघट में
लज्जा से सरमा रही है |

साज सज्जा से हो तैयार
खुद को निहार आइने में
नजरे झुका और उठा रही है |

इंतज़ार में मेरे वो सजके
भग्न झरोखे में छिपकर
मेरा रास्ता ताक रही है |

- दीप्ति शर्मा 

ऊनी कपड़ों वाला बक्सा

ऊनी कपड़ों  वाला बक्सा
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सर्दी का मौसम आया तो मैंने खोला,
बक्सा ऊनी  कपड़ों वाला
जो पिछले कितने महीनों से,
घर के एक सूने कोने में,
लावारिस सा पड़ा हुआ था,
हम लोग भी कितने प्रेक्टिकल होते है
जरुरत पड़ने पर ही किसी को याद करते है,
वर्ना,उपेक्षित सा छोड़ देते है
बक्से को खोलते ही,
फिनाईल  की खुशबू के साथ,
यादों का एक भभका आया
मैंने देखा ,फिनाईल की गोलिया,
जब मैंने रखी थी ,पूरी जवान थी,
पर मेरे कपड़ों को सहेजते ,सहेजते,
बुजुर्गों की तरह ,कितनी क्षीण हो गयी है
सबसे पहले मेरी नज़र पड़ी,
अपने उस पुराने सूट पर, 
जिसे मैंने अपनी शादी पर  पहना था,
और  शादी की सुनहरी यादों की तरह,
सहेज कर रखा था
मुझे याद  आया,जब तुमने पहली बार,
अपना सर मेरे कन्धों पर रखा था,
मैंने ये सूट पहन रखा था
मैंने इस सूट को,हलके से सहलाया,
और कोशिश की ढूँढने की,
तुम्हारे उन होठों  के निशानों को,
जो तुमने इस पर अंकित किये थे,
पिछले कई वर्षों से,
इसे पहन नहीं पा रहा हूँ,
क्योंकि सूट छोटा हो गया है,
पर हकीकत में,सूट तो वही है,
मै मोटा हो गया हूँ,
क्योंकि कपडे नहीं बदलते,
आदमी बदल जाता है
फिर निकला वह बंद गले वाला स्वेटर,
जिसे उलटे सीधे फंदे डाल,
तुमने  बड़े प्यार से बुना था,
और जिसे पहनने पर लगता था,
की तुमने अपने बाहुपाश मै,
कस कर जकड  लिया हो,
इस बार उस स्वेटर के  कुछ फंदे,
उधड़ते से नज़र आये
फिर दिखी शाल,
देख कर लगा,जैसे रिश्तों की चादर पर,
शक  के कीड़ों ने,
जगह जगह छेद कर दिए है,
मन मै उभर आई,
जीवन की कई ,खट्टी मीठी यादें,
भले बुरे लोग,
सर्द गरम दिन,
बनते बिगड़ते रिश्ते
फिर मैंने सभी ऊनी कपड़ों को,
धूप में फैला दिया,इस आशा से कि,
सूरज कि उष्मा से,
शायद इनमे फिर से,
नवजीवन का संचार हो जाये
मै हर साल  जब भी,
ऊनी कपड़ों का बक्सा खोलता हूँ,
चंद पल,पुरानी यादों को जी लेता हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

वह युग 'ऐ जी'ओ जी' वाला

अब भी मुझे याद आता है,वह युग 'ऐ जी'ओ जी' वाला
पश्चिम की संस्कृती ने आकर,सब व्यवहार बदल ही डाला
जब सर ढके पत्नियाँ घर में,पति का नाम नहीं लेती थी
अजी सुनो पप्पू के पापा,या चूड़ी खनका  देती थी
कभी बुलाना हो जो पति को,कमरे की सांकल खटकाना
कभी कोई आ जाये अचानक,शर्मा कर झट से हट जाना
चंदा से मुखड़े को ढक कर,दिन भर घूंघट करके रहना
कितना प्यारा ,मनभाता था,उनका 'ऐ जी'ओ जी'कहना
ले लेने से नाम पति का,उमर पति की कम होती थी
तब पति पत्नी के रिश्ते में,थोड़ी झिझक,शरम होती थी
घर के बूढ़े बड़े बैठ कर,कर देते थे रिश्ता पक्का
पहली बार सुहागरात में,मुंह दिखता था,पति पत्नी का
कैसा होगा जीवन साथी,मन में कितना 'थ्रिल 'होता था
मुंह दिखाई से मन रोमांचित,प्रथम बार जब मिल होता था
इस युग में,शादी से पहले,मिलना जुलना  अब होता है
होती रहती डेटिंग वेटिंग,पिक्चर विक्चर  सब होता है
हनीमून हिल स्टेशन पर,घूंघट,मुंह दिखाई सब गायब
जींस और टी शर्ट पहन कर,नव दम्पति घूमा करते अब
एक दूजे को ,प्रथम  नाम से ,पति पत्नी है अब पुकारते
गया  ज़माना,'सुनते हो जी',का पुकारना बड़े  प्यार से
लेकर नाम बुलाने का तो, होता है अधिकार सभी का
पर 'ऐ जी'ओ जी'कहने का,हक़ था केवल पति पत्नी का
रहन सहन सब बदल गया है,इस युग का है चलन निराला
अब भी मुझे याद आता है,वह युग 'ऐ जी'ओ जी' वाला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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बुधवार, 2 नवंबर 2011

तुम्म्हारी आँच

जीवन की
सर्द और स्याह रातों में
भटकते भटकते आ पहुँचा था
तुम तक
उष्णता की चाह में
और तुम्हारी ऑच
जैसे धीरे धीरे समा रही है मुझमें
ठीक उसी तरह
जैसे धीमी ऑच पर
रखा हुआ दूध
जो समय के साथ
हौले हौले अपने अंदर
समेट लेता है सारे ताप को
लेकिन उबलता नहीं
बस भाप बनकर
उडता रहता है तब तक
जब तक अपना
मृदुल अस्थित्व मिटा नहीं देता
और बन जाता है
ठेास और कठोर
कुछ ऐसे ही सिमट रहा हूँ मैं
लगातार हर पल
शायद ठोस और कठोर
होने तक या
उसके भी बाद
ऑच से जलकर
राख होने तक ?

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

दफ्तरी लंच

दफ्तरी लंच
--------------
एक बड़े दफ्तर के आगे,
हम्मर एक खोखा है
जहाँ पर दफ्तरी लंच खाने का,
बड़ा अच्छा मौका है
जैसे घर का खाना खा कर,
आप फील करते है 'होमली'
इसी तरह हमारे यहाँ खाकर,
आप फील करेंगे 'दफ्तरी'
जैसे कागज़ की प्लेटें,लकड़ी के चमचे,
जो  काम निकलने के बाद,
फेंक दिए जाते है
जैसे चाटुकार चमचे,जो अपने 'बॉस 'को,
मक्खन लगाते है और  चाटते है पाँव
उनके लिए मिलते है,
मौजे और जूतों की बदबू रहित,पाव
और वो भी मख्खन लगे,फिर भी सस्ता भाव
चाटुकारों ने ,जब से हमारे पाव खाएं है
एसा टेस्ट बदला है,बार बार आये है
दूसरा आइटम 'सेंडविच आम' है
आम आदमी के लिए,
एक तरफ घर की समस्याओं की स्लाइस है,
और दूसरी तरफ दफ्तर की मुश्किलों की स्लाइस
बीच में ,थोड़ी सी मजबूरी का मख्खन,
टिमटिमाती आस का  टमाटर ,
पत्ते दर पत्ते मुसीबतों से आते हुए,
पत्ता गोभी के चंद कतरे
लोगों के उपहास की नमक मिर्च,
बस बन गयी सेंडविच
आम आदमियों सी कितनी आम साईं
फिर भी सस्ते दाम है
एक बाईट लेने पर लगता है,
सभी समस्याओं का हल हो गया है
मन को बहलाना कितना सरल हो गया है
तीसरा आइटम 'ख्वाईशी दही बड़े 'है
बड़े बनने की इच्छा में,
दलहन को दल कर दाल बनना पड़ता है
फिर रात भर पानी में गलना पड़ता है
बचपन के साथी छिलकों का साथ छोड़ ,
समय के सिल पर पिसना पड़ता है
फिर  दुनियादारी की कढ़ाही में,
उबलते हुए समझोतों के तेल में तले जाना होता है
तब कही जाकर,माखनी दही में,
डुबकी लगाने का आनंद मिलता है
 इन दहिबडों को खाकर ही,
मन का कमल खिलता है
और भी कई आइटम है,
जो यदि आप खायेंगे,
दफ्तरी पायेंगे
जैसे गुलाब जामुन,
जिनमे  ना गुलाब की खुशबू है,
न जामुन का स्वाद,
फिर भी गुलाब जामुन कहाते है
बिलकुल आपके बॉस की तरह,
या आपके जॉब की तरह
जिनके नाम और काम में ,
आप बहुत बड़ा फर्क पाते है
सभी आइटमो का बेसिक सेलरी की तरह,
सस्ता दाम है
और मंहगाई भत्ते की तरह,
पानी पीने का मुफ्त इंतजाम है
क्योकि साहब,बेसिक सेलरी तो,
बेसिक मदों में ही चली जाती है
महीने खर्चा तो डी.ए.से चलता है
उसी तरह सेंडविच ,दहिबडों से,
भूख थोड़े ही मिटती है,
पेट तो पानी से ही भरता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जिस क्यारी से की यारी,वो क्यारी फिर क्यारी न रही
जिस डाली पे नज़र डाली,वो डाली फिर डाली  न रही
जिस गुलशन में हम पहुँच गये,कुछ गुल न खिले नामुमकिन है,
जिस महफ़िल के मेहमान हुए,वो महफ़िल फिर खाली न रही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अगज़ल ----- दिलबाग विर्क



     माना  कि  जुदाई  से  गए  थे  बिखर  से  हम 
     नामुमकिन तो था मगर, संभल गए फिर से हम. 
                           साहित्य सुरभि  


                         * * * * *

चंदा

चंदा
-----
किसी अच्छे कार्य के लिए,
या किसी आयोजन के लिए
किसी पूजा के लिए,
या किसी की सहायतार्थ,
जब कोई धनराशी,
विभिन्न लोगों से मांग मांग कर,
एकत्रित की जाती है,
उसे चन्दा कहते है
पर क्या आपने कभी ये सोचा है,
इसे चंदा ही क्यों कहते है?
सूरज ,सागर,सरिता या बादल क्यों नहीं कहते?
चन्दा,
सूरज से रौशनी उधर मांग,
दुनिया भर को शीतल उजाला देता है
और  इसी परोपकार में,लगा ही रहता है
इसी तरह ,लोगों से मांग मांग,जो राशी ,
परोपकार की आयोजन में लगाई जाती है ,
चन्दा कहलाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'












रविवार, 30 अक्तूबर 2011

हड्डियाँ और दांत

(मेडिकल कविता )
हड्डियाँ और दांत 
----------------------
डाक्टर बताते है
बच्चा जब पैदा होता है,
उसके शारीर में 350  हड्डियाँ होती है,
पर जैसे जैसे उमर बढती है
हड्डियाँ जुडती है
आदमी में बदलाव आता है
हड्डिय मजबूत होती है,
और उनमे जुडाव आता है
हड्डियाँ और आदमी ,
दोनों हो जाते है सख्त
और बचपन की 350 हड्डियाँ,
बड़े होने पर,206 ही रह जाती है फ़क्त
और इसी तरह बचपन में,
आदमी के जबड़े में,
छुपे होते है बावन दांत
इनमे से बीस,जो हड़बड़ी में होते है,
जल्दी निकल जाते है
पर पांच सात बरस में टूट कर  गिर जाते है
ये दूध के दांत कहलाते है
पर बाकि के बत्तीस दांत,
जो धीरज रखते है
धीरे धीरे निकलते है
और पूरी उमर चलते है
हमारे शरीर के ये अंग,
हमें बहुत कुछ सिखाते है
हड्डियाँ जुडाव की ताकत बताती है,
और दांत धीरज की महत्ता बताते है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

 

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

इस दीपावली पर

इस दीपावली पर
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कोई  के घर आये लक्ष्मी पद्मासन में,
कोई के घर अपने प्रिय वाहन उल्लू पर
मेरे घर पर लेकिन आई लक्ष्मी मैया,
एक नहीं,दो नहीं,तीन इक्कों पर चढ़ कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उल्लू बीसा

उल्लू बीसा
-------------
श्री लक्ष्मी वहां प्रभो,महिमा धन्य अपार
सोना,चाँदी और तुम,जगती के  आधार
करे रात के समय जो,कोई भी व्यापार
श्री उल्लू की कृपा से,भरे रहे भंडार
नमो नमो उल्लू महाराजा
प्रभो आप रजनी के राजा  
निशा दूत अति सुन्दर रूपा
वास आपका कोटर ,कूपा
सूखे तरु पर आप विराजे
राज सिंहासन पर नृप साजे
कौशिकनाथ,लक्ष्मी भक्ता
धन्य धन्य रजनी अनुरक्ता
प्रभो आपकी महिमा न्यारी
लक्ष्मी जी की आप सवारी
भक्त,तपस्वी,साधू,संता
पक्षीराज निशा के कंता
चाँद,उलूक ,दोई एक जाती
रात पड़े निकले ये साथी
सूरज छिपे,होय अंधियारा
दर्शन होए प्रभु तुम्हारा
दिन का हल्ला,हुल्लड़ बाजी
हुई प्रभु को लख नाराजी
दुनिया की भगदड़ से ऊबे
क्षीण चक्षु भक्तिरस डूबे
शांति रूप को भक्ति जागी
सब कुछ त्याग बने बैरागी
करे रात को लक्ष्मी सेवा
धन्य निशाचर उल्लू देवा
धनी सेठ और जग की माया
सब पर प्रभू आपका साया
घूक,तिजोरी,पैसेवाले
तीनो लक्ष्मी के रखवाले
तीनो एक सरीखे के ग्यानी
एक घाट का पीते पानी
कीर्ति आपकी वेद बखाने
गुण महिमा मूरख भी जाने
सुन कर मधुर आपकी वाणी
विव्हल होते जग के प्राणी
करे रात को जो व्यापारा
धन और पैसा आय अपारा
जो भी ध्यावे उल्लू बीसा
बने कीमती देशी घी  सा
उसका दुःख दारिद मिट जाए
पैसा औ लक्ष्मी को पाए
उल्लू बीसा तुम पढो,बन लक्ष्मी के दास
भर जायेगी तिजोरी,मिट जायेगे त्रास
(इति श्री उल्लू बीसा संपन्न)
(लक्ष्मी जी की कृपा के लिए उनके प्रिय वाहन
उल्लू  का आराधन धन प्रदायक होता है )

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

साहित्य सुरभि: कुंडलिया छंद - 2

साहित्य सुरभि: कुंडलिया छंद - 2: दीवाली त्यौहार पर , जले दीप से दीप अन्धकार सब दूर हों , रौशनी हो समीप । रौशनी हो समीप, उमंग...

१०० वीं प्रस्तुति

शुभकामनाएं--

File:Onam pookalam.jpg
रचो रँगोली लाभ-शुभ, जले  दिवाली  दीप |
माँ लक्ष्मी का आगमन, घर-आँगन रख लीप ||

Deepavali To Complete With Gambling













घर-आँगन रख लीप, करो स्वागत तैयारी |
लेखक-कवि मजदूर, कृषक, नौकर, व्यापारी |
Diwali Cracker Hamper
नहीं खेलना ताश, नशे की छोडो टोली |
दो बच्चों का साथ, रचो मिल सभी रँगोली  ||

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

आत्मदीप


Tuesday, October 25, 2011

आत्मदीप

लो फिर से आ गए दिवाली
मेरे मन के आत्मद्वीप पर
उस प्रदीप पर
काम क्रोध के
प्रतिशोध के
वे बेढंगे
कई  पतंगे
शठ रिपु जैसे थे मंडराए
मुझ पर छाए
पर मैंने तो
उनको सबको
बाल दिया रे
अपने मन से
इस जीवन से
मैंने उन्हें
निकाल दिया रे
मगन में जला
लगन से जला
और मैंने
शांति की दुनिया बसा ली
लो फिर से आ गए दिवाली

सूनी सूनी है दिवाली

सूनी सूनी है दिवाली
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जब से मइके गयी,पड़ी है मेरे दिल की बस्ती खाली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
                             सूनी सूनी है दिवाली
थी आवाज़ पटाखे सी पर फिर भी लगती भली बड़ी थी
हंसती थी तो फूल खिलाती,मेरे दिल की फूलझड़ी थी
छोड़ा करती थी अनार सा,हंस कर खुशियों का फंव्वारा
जिसकी पायल की रुनझुन से ,गूंजा करता था घर सारा
जिसके  हर एक इशारे पर,मै,चकरी सा खाता था चक्कर
वह चूल्हे चौके की रौनक,चली गयी है अब पीहर
महीने पहले चली गयी,मेरे घर की खुशियों की ताली
दीपावल आ गयी पर ना ,अब तक घर आई घरवाली
                              सूनी सूनी है दीवाली
कौन मुझे पकवान खिलाये,घेवर,फीनी,बर्फी,गुंझा
गृहलक्ष्मी ही पास नहीं फिर आज करूं मै किसकी पूजा
श्रीमती जी ,आ जाओ ना,दीप जला दो,मेरे दिल का
कुछ तो ख्याल  करो रानीजी,अपने राजा की मुश्किल का
तुम मइके में मना रही होगी दीवाली खुश हो हो कर
मेरी  आँखे,नीर भरी है,बाट तुम्हारी ,बस जो जो कर
देखो तुम्हारे विछोह में,मैंने कैसी दशा बना ली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
                                सूनी सूनी है दीवाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

कब

 
कैद हैं कुछ 
यादों के भंवर 
जो सुलगते हैं 
पर पिघलेगे कब ?
- दीप्ति  शर्मा 

दीपोत्सव आये

दीपोत्सव आये
प्रमुदित मन हम करे दीप अभिनन्दन,
आज धरा पर कोटि चन्द्र मुस्काए
दीपोत्सव आये
बाल विधु से कोमल चंचल
सुंदर मनहर स्नेहिल निर्झेर
घर घर दीप जले
पल पल प्रीत पले
अंध तमस मय निशा आज मावस की
भूतल नीलाम्बर से होड़ लगाये
दीपोत्सव आये
रस मय बाती लों का अर्चन
पुलकित हे मन जन जन जीवन
नव प्रकाश आया
ले उल्हास आया
रससिक्त दीपक में लों मुस्काई
ज्यो पल्वल में पद्मावली छाये
दीपोत्सव आये

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं,

रविकर की पहली रचना ; अक्तूबर1978

 http://www.shunya.net/Pictures/South%20India/Ajanta/AjantaCaves38.jpg

विश्वास है बिलकुल नहीं कि भूल मैं तुझको सकूँगा -
जब रुपहली मोतियाँ खिलखिलायेंगी कभी -
घिर घटाएं माह पावस में सुनाएँ गरजने-
जब कभी व्याकुल नजर जा टिके उत्तुंग शिख पर -
ऋतुराज आकर या सुनाये जब प्रिये रव कोकिला-
याद कैसे छोड़ दूंगा तब भला मैं |
री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं ||

India Ajanta Cave Painting: Ajanta Caves Photos, Ajanta Caves Wallpapers, Ajanta Caves Galleries ...
सत्य है अब भी यही कि रूप पर आसक्त हूँ मैं -
पर तिमिर एकांत में, आवेश में उन्माद में भी -
कह नहीं सकती कि चाहा रूप पर अधिकार तेरे |
पर मधुप क्या दूर रह पाया मधुरता से कभी -
बन पतिंगा रूप पर तेरे जला  मैं |
री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं ||
http://www.shunya.net/Pictures/South%20India/Ajanta/Ajanta08.jpg
पर समझ पाया नहीं मैं आप का यह खेल अब भी -
भूल करके इस भले को घर बनाओगी धरा पर -
खूबसूरत गुम्बदों को शीश पर ढोती रही तुम-
अंगूरी लताएँ खूबसूरत साथ में सजती रही जो -
चैन कैसे पा सकूँ उनको भुला मैं |
री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं ||

कोहरा छाने लगा है

कोहरा छाने लगा है
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चमकती उजली ऋतू का ,रूप धुंधलाने लगा है
                               कोहरा     छाने  लगा     है
बीच अवनी और अम्बर ,आ गया है  आवरण सा
गयी सूरज की प्रखरता,छा  गया कुछ चांदपन सा
मौन भीगे,तरु खड़े है,व्याप्त  मन में दुःख बहुत है
बहाते है,पात आंसू, रश्मियां उनसे विमुख है
कभी बहते थे उछालें मार कर, जब संग थे सब
हुए कण कण,नीर के कण,हवाओं में भटकते अब
 कभी सहलाती बदन,वो हवाएं चुभने लगी  है
स्निग्ध थी तन की लुनाई,खुरदुरी होने लगी है
पंछियों की चहचाहट ,हो गयी अब गुमशुदा है
बड़ी बदली सी फिजा है,रंग मौसम का जुदा है
लुप्त तारे,हुए सारे,चाँद  शरमाने   लगा है
                          कोहरा  छाने लगा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

देश द्रोहियों ने रचा, षड्यंत्रों का जाल

 

तू ही लक्ष्मी शारदा, माँ दुर्गा का रूप |
जीव-मातृका मातु तू, प्यारा रूप अनूप ||
जीव-मातृका=माता के सामान समस्त जीवों का
पालन करने वाली सात-माताएं-
धनदा  नन्दा   मंगला,   मातु   कुमारी  रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
शत्रु-सदा सहमे रहे, सुनकर सिंह दहाड़ |
काले-दिल हैवान की, उदर देत था फाड़ ||

देश द्रोहियों ने रचा, षड्यंत्रों का जाल |
 सोने की चिड़िया उड़ी, गली विदेशी दाल ||

टुकड़े-टुकड़े था  हुआ,  सारा   बड़ा   कुटुम्ब, 
पाक-बांगला-ब्रह्म  बन, लंका  से  जल-खुम्ब ||
BharatMata.jpg

महा-कुकर्मी पुत्र-गण, बैठ उजाड़े गोद |
माता के धिक्कार को,  माने महा-विनोद ||

कमल पैर से नोचकर,  कमली रहे सजाय |
कमला बसी विदेश तट,  ढपली रहे बजाय || 
तट = Bank


INC-flag.svg 

हाथ गरीबों पर उठा,  मिटी गरीबी रेख |
पंजे ने पंजर किया,  ठोकी दो-दो मेख | 
मेख = लकड़ी का पच्चर / खूंटा 

File:Bahujan Samaj Party.PNG http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/f/f2/ECI-arrow.png

सिंह खिलौना फिर बना, खेले हाथी खेल |
करे महावत मस्तियाँ,  मारे तान गुलेल ||

कुण्डली 
CPI-banner.svg
File:ECI-bow-arrow.png
हँसुआ-बाली काटके,  नटई नक्सल काट |
गैंता-फरुहा खोदता,  माइंस रखता पाट | 
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/4/45/ECI-corn-sickle.png File:ECI-two-leaves.png
माइंस रखता पाट, डाल  देता दो पत्ती|
खड़ी पुलिस की खाट, बुझा दे जीवन-बत्ती |
File:ECI-hurricane-lamp.pngFile:ECI-bicycle.png
लालटेन को  ढूँढ़, साइकिल लेकर बबुआ | 
मुर्गे जैसा काट,  ख़ुशी से झूमें हँसुआ ||
File:ECI-cock.png
 बिद्या गई विदेश को, लक्ष्मी गहे दलाल |
माँ दुर्गा तिरशूल बिन, यही देश का हाल ||

जगह जगह विस्फोट-बम, महँगाई की मार |
कानों में ठूँसे रुई, बैठी है सरकार ||

लक्ष्मी माता और आज की राजनीति

 लक्ष्मी माता और आज की राजनीति
--------------------------------------------
जब भी मै देखता हूँ,
कमालासीन,चार हाथों वाली ,
लक्ष्मी माता का स्वरुप
मुझे नज़र आता है,
भारत की आज की राजनीति का,
साक्षात् रूप
उनके है चार हाथ
जैसे कोंग्रेस का हाथ,
लक्ष्मी जी के साथ
एक हाथ से 'मनरेगा'जैसी ,
कई स्कीमो की तरह ,
रुपियों की बरसात कर रही है
और कितने ही भ्रष्ट नेताओं और,
अफसरों की थाली भर रही है
दूसरे हाथ में स्वर्ण कलश शोभित है
ऐसा लगता है जैसे,
स्विस  बेंक  में धन संचित है
पर एक बात आज के परिपेक्ष्य के प्रतिकूल है
की लक्ष्मी जी के बाकी दो हाथों में,
भारतीय जनता पार्टी का कमल का फूल है
और वो खुद कमल के फूल पर आसन लगाती है
और आस पास सूंड उठाये खड़े,
मायावती की बी. एस.  पी. के दो हाथी है
मुलायमसिंह की समाजवादी पार्टी की,
सायकिल के चक्र की तरह,
उनका आभा मंडल चमकता है
गठबंधन की राजनीती में कुछ भी हो सकता है
तृणमूल की पत्तियां ,फूलों के साथ,
देवी जी के चरणों में चढ़ी हुई है
एसा लगता है,
भारत की गठबंधन की राजनीति,
साक्षात खड़ी हुई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

टिप्पण-रुप्पण एक सम, वापस मिली न एक -

किस्मत  में  पत्थर  पड़े,  माथे  धड़  दीवाल |
भंग  घोटते  कामजित,  घोटे  मदन  कमाल |
Deepavali To Complete With Gambling













घोटे  मदन  कमाल, दिवाली जित-जित आवै |
पा   जावे   पच्चास,  दाँव   पर   एक  लगावे |

रविकर  होय  निराश,  लगा  के  पूरे  सत्तर |
हार जाए सब दाँव, पड़े किस्मत में पत्थर ||
File:Bicycle-playing-cards.jpg
चौपड़ पर बेगम सजे, राजा बैठ अनेक |
टिप्पण-रुप्पण एक सम, वापस मिली न एक |

Custom Imprinted Playing Cards

वापस मिली न एक, दाँव रथ-हाथी-घोड़े |
 थोड़े चतुर सयान, टिपारा बैठे मोड़े |
File:Jack playing cards.jpg
कह रविकर कविराय, गया राजा का रोकड़ |
जीते सभी गुलाम,  हारते रानी-चौपड़ ||
टिपारा=मुकुट के आकार की कलँगीदार  टोपी

मौसम बदला

मौसम बदला
----------------
धूप कुनकुनी,नरम नरम दिन,और सौंधी सौंधी सी राते
साँझ चरपरी,भोर रसभरी,और खट्टी मीठी सी बातें
गरम जलेबी,गाजर हलवा,स्वाद भरा मतवाला  मौसम
छत पर धूप,तेल की मालिश,चुस्ती फुर्ती वाला मौसम
है स्वादिष्ट,चटपटा, मनहर,प्यारा मौसम मादकता का
और उस पर से छोंक लगा है, मधुर तुम्हारी सुन्दरता का
ये मौसम जम कर खाने का,छकने और  छकाने का है
नरम रजाई,कोमल कम्बल,तपने और तपाने का है
प्यारा प्यारा ठंडा मौसम,पर इसकी तासीर गरम है
सिहरन सी पैदा कर देती,तेरे तन की गरम छुवन है
तन की ऊष्मा,मन की ऊष्मा और फिर अपनेपन की ऊष्मा
मादक नयन ,गुलाबी डोरे,बढ़ जाती प्रियतम की सुषमा
सर्दी के आने की आहट,सुबह शाम है ठण्ड गुलाबी
गौरी के गोरे गालों की,रंगत होने लगी   गुलाबी
दिन छोटा,लम्बी है रातें,है ये मौसम मधुर मिलन का
सूरज भी जल्दी घर जाता,पल्ला छोड़ ,ठिठुरते दिन का
इस मतवाली,प्यारी ऋतू में,आओ हम सब मौज मनाएं
त्योंहारों का मौसम आया,आओ हम मिल दीप जलाएं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

हे अग्नि देवता!

हे अग्नि देवता!
-------------------
हे अग्नि देवता!
शारीर के पंचतत्वों  में,
तुम विराजमान हो,
तुम्ही से जीवन है
तुम्हारी ही उर्जा से,
पकता और पचता भोजन है
तुम्हारा स्पर्श पाते ही,
रसासिक्त दीपक
 ज्योतिर्मय हो जाते है,
दीपवाली छा जाती है
और,दूसरी ओर,
लकड़ी और उपलों का ढेर,
तुमको छूकर कर,
जल जाता है,
और होली मन जाती है
होली हो या दिवाली,
सब तुम्हारी ही पूजा करते है
पर तुम्हारी बुरी नज़र से डरते है
इसीलिए,  मिलन की रात,
दीपक बुझा देते है
तुम्हारी एक चिंगारी ,
लकड़ी को कोयला,
और कोयले को राख बना देती है
पानी को भाप बना देती है
तुम्हारा सानिध्य,सूरत नहीं,
सीरत भी बदल देता है
तो फिर अचरज कैसा है
कि तुम्हारे आसपास,
लगाकर फेरे सात,
आदमी इतना बदल जाता है
कि माँ बाप को भूल जाता है
बस पत्नी के गुण गाता है
इस काया की नियति,
तुम्ही को अंतिम समर्पण है
हे अग्नि देवता! तुम्हे नमन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


 

सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल ||

रविकर की प्रस्तुति

 (शुभकामनाएं)
कर करवल करवा सजा,  कर सोलह श्रृंगार |
माँ-गौरी आशीष दे,  सदा बढ़े शुभ प्यार ||
   करवल=काँसा मिली चाँदी
कृष्ण-कार्तिक चौथ की,  महिमा  अपरम्पार |
क्षमा सहित मन की कहूँ,  लागूँ  राज- कुमार ||
Karwa Chauth
(हास-परिहास)
कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल |
  सजी कन्त के वास्ते, बदली-बदली  चाल ||
  करवाल=तलवार  
करवा संग करवालिका,  बनी बालिका वीर |
शक्ति  पा  दुर्गा   बनी,  मनुवा  होय  अधीर ||
करवालिका = छोटी गदा / बेलन जैसी भी हो सकती है क्या ?

 शुक्ल भाद्रपद चौथ का, झूठा लगा कलंक |
सत्य मानकर के रहें,  बेगम सदा सशंक ||

  लिया मराठा राज जस, चौथ नहीं पूर्णांश  |
चौथी से ही चल रहा,  अब क्या लेना चांस ??


(महिमा )  
नारीवादी  हस्तियाँ,  होती  क्यूँ  नाराज |
गृह-प्रबंधन इक कला, ताके पुन: समाज ||

 मर्द कमाए लाख पण,  करे प्रबंधन-काज |
घर लागे नारी  बिना,  डूबा  हुआ  जहाज  ||

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

दूरियॉ

वर्ष 1985 के लगभग लिखी निम्न पंक्तियों को आपके साथ साझा कर रहा हूँ
विकास के युग में माना घट गयी हैं दूरियॉ ।
इन्सान से इन्सान की अब बढ गयी हैं दूरियॉ ।।
सूर्य का गोला लटकता है हर इक छत से जरूर ।
किन्तु इतने पास अब रहते नहीं है दिल हुजूर ।।
चॉद तक जाने लगे हैं यान माना बेलगाम ।
पर धरा के चॉद का अब रह गया है सिर्फ नाम ।।
संसार आकर है सिमटता हर सुबह इस मेज पर ।
क्या हुआ अपने बगल में जानेंगे पढकर खबर ।।
शोर पुर्जों का हुआ है इस कदर कुछ बेअदब ।
पंछियों का मधुर कलरव खो गया इसमें अजब ।।
अब धरा लगती खिलौना यूँ सहज हैं दूरियॉ ।
इन्सान से इन्सान की पर बढ गयी हैं दूरियॉ।।

अपहरण


अपहरण

---------
जो अपनी बहन के अपहरण का
 बदला लेने के लिये,
पृथ्वीराज को हरवा दे,
उसे जयचंद कहते है
और जो खुद अपने मित्र अर्जुन के साथ,
अपनी बहन सुभद्रा को   भगवा दे,
उसे श्रीकृष्ण कहते है
लोगों की सोच में,
या अपहरण अपहरण में कितना अंतर है

मदन मोहन बहेती 'घोटू;

चंदा मामा और करवाचौथ

चंदा मामा और करवाचौथ
--------------------------------
जब भी कभी होती है पूनम की रात
मेरे मन में उठती रह रह यह बात
चाँद और सूरज  दोनों चमकते है
राहू और केतु दोनों को डसते  है
पर सूरज  हर दिन चमकता ही रहता
और  चाँद पंद्रह दिन बढ़ता फिर घटता
अमावस  की रात को चाँद कहाँ है जाता
और चंदा बच्चों का मामा क्यों कहलाता
औरते करवा चौथ को,क्यों पूजती है चाँद को
सामने छलनी रख,क्यों देखती  है चाँद को
मनन करने पर आया कुछ ज्ञान मन में
सभी प्रश्नों का किया समाधान हमने
चाँद की शीतलता जानी पहचानी है
चन्द्रमा दुनिया का सबसे बड़ा दानी है
सूरज से रौशनी वो लेता उधर है
बांटता दुनिया को,करता उपकार है
इसी दान वीरता और परोपकार के कारण
बढ़ता ही रहता है ,जब तक कि हो पूनम
और पूर्ण होने पर,अहंकार है  आता
इसी लिए रोज़ रोज़ फिर घटता ही जाता
चाँद को केरेक्टर थोडा सा ढीला है
वैसे भी तबियत का थोडा  रंगीला है
अहिल्या के किस्से से,औरतें घबरायी
चाँद को बना लिया उनने अपना भाई
कहने लगी बच्चों से,ये चंदा मामा है
भाई का फ़र्ज़ बहन कि इज्जत बचाना है
 फिर भी कर्वाचोथ का व्रत वो करती है
चाँद और अपने बीच,चलनी रख लेती है
जिससे बस धुंधली सी शकल ही नज़र आये
रूप देख चंदा की नीयत ना ललचाये
दुखी हो पड़ा रहता ,धुत्त ,सोमरस पीकर
इसीलिए अमावास को नहीं आता धरती पर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

भ्रष्टाचार आन्दोलन के "साइड इफेक्ट"

           

बहुत सारी भीड़ है | वो देश सुधार और भ्रष्टाचार को मिटने का आन्दोलन कर रहे हैं , 
सारी सड़के जाम हैं ,
जनता बेहाल है ,
सर्कार का बुरा हाल है ,
ये समाधान है या 
कोई व्यवधान है जो 
यहाँ हर कोई परेशान है 

तभी एक एम्बुलेंस दूर से आती है , उस भीड़ में वो फंस  जाती है , मरीज की हालत गंभीर है पर कोई उसे निकलने नही दे रहा है क्यूँ की  वो समाज सेवी है और देश का सुधार कर रहें हैं |

नारें लगा रहें वो देखो 
लोगो का हुजूम बना 
और समाज चला रहे हैं 
वो जो तड़प रहा है अंदर 
देख उसे नजरे झुका रहे हैं 
न ही वो उनका सगा है 
न ही सम्बन्धी है फिर 
क्यों दिखावे में नहा रहें हैं 
तड़प रहा है वो इलाज को 
और देखो ये सब यहाँ 
भ्रष्टाचार मिटा रहे हैं |

बहुत सारी भीड़ इकट्ठी है , सरकार के खिलाफ कुछ हैं जो सच में साथ हैं और कुछ लोग दिमाग से वहा और मन से दफ्तर में हैं , जहाँ कोई आएगा घुस देके जायेगा , वो दलाल है सरकार के जिनके आँखों में हमेशा से ही पट्टी बंधी है |

सरकार के खिलाफ बन खड़ें हैं
हाथों में मशाल लिए अड़े हैं 
दिल से यहाँ पर दिमाग से वहां 
जहा घुस मिल जाएगी 
क्यों जिद कर वो 
दिखावे को पड़े हैं 
घुस खाकर पेट भरता है जिनका 
क्यों वो आम जनता के साथ 
हाथ में हाथ लिए वहा डटे हैं |

 -  दीप्ति शर्मा


शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

अग़ज़ल - दिलबाग विर्क

साहित्य सुरभि: अग़ज़ल - 26: कोई भी तो नहीं होता इतना करीब दोस्तो खुद ही उठानी पडती है अपनी सलीब दोस्तो. दोस्त बनाओ मगर दोस्ती पे न छोडो सब कुछ क्य...

घाट-घाट पर घूम, आज घाटी को-

घाट-घाट पर घूम, आज घाटी को माँगें ||



टांगें  टूटी  गधे  की ,  धोबी   देता   छोड़ |
बच्चे   पत्थर  मारके,   देते  माथा  फोड़ |


 


 देते माथा  फोड़,   रेंकता  खा  के  चाटा |
 मांगे जनमत आज, गधों हित धोबी-घाटा |


घाट-घाट पर घूम,  मुआँ  घाटी को माँगें |
चले चाल अब टेढ़ ,  तोड़  दे  चारों  टांगें ||

ड़ी दलीलें  तुम रखो,  उधर है  डंडा  फ़क्त ||

वाणी पुन्नू  की  प्रबल,  अन्नू  का  उपवास | 
चित्तू  का  डंडा  सबल,  दिग्गू  का  उपहास |

लोकपाल  मुद्दा  बड़ा,  जनता  तेरे  साथ |
काश्मीर का मामला, जला रहा क्यूँ  हाथ ?

कालेधन  से  है  बड़ा, माता  का  सम्मान |
वैसी भाषा  बोल मत,  जैसी  पाकिस्तान ||

झन्नाया था गाल  जब,  तू   तेरा  स्टाफ |
उस बन्दे को कूटते,  हमें  दिखे  थे साफ़ ||

सड़को पर जब आ गया, सेना का सैलाब |
तेरे  बन्दे  पिट गए,  कल  से  थे  बेताब  |

करना यह दावा नहीं,  हो  गांधी  के भक्त |
बड़ी दलीलें  तुम रखो,  उधर है  डंडा  फ़क्त ||

वैसे  दूजे  पक्ष  को,  मत  कर  नजरन्दाज |
त्रस्त बड़ी सरकार थी,  मस्त  हो रही आज ||

पहले  पीटा  फिर  पिटा,  चले   कैमरे  ठीक  |
होती  शूटिंग सड़क  पे, नियत लगे  ना  नीक ||

घूँस - युद्ध  की  नायकी,  घाटी  में  यूँ  डूब |
घूँसा जबड़े  पर  पड़ा,   देत   दलीलें   खूब ||

रही व्यक्तिगत सोच, चला कश्मीर छेंकने |

लगा रेकने जब कभी, गधा बेसुरा राग |
बहुतों ने बम-बम करी, बैसाखी में फाग |

बैसाखी में फाग, घास समझा सब खाया |
गलत सोच से खूब, सकल परिवार मुटाया |

रही व्यक्तिगत सोच, चला कश्मीर छेंकने |
ढेंचू - ढेंचू  रोज, लगा  बे-वक्त  रेंकने ||

एक चिठ्ठी -मनमोहन सिंह जी के नाम

एक चिठ्ठी -मनमोहन सिंह जी के नाम
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आदरणीय मनमोहन सिंह जी,
सादर प्रणाम
(राम राम नहीं करूँगा ,
वर्ना आप मुझे बी जे पी का समझ लेंगे
और ये चिठ्ठी दिग्विजय सिंह को दे देंगे)
दशहरे के दिन आपको टी वी पर देखा,
रामलीला मैदान में
हाँ,उसी राम लीला मैदान में,
जहाँ आपकी सेना ने,
युद्ध के सारे नियमो का अवलंघन कर,
रात के दो बजे,
लाठी चार्ज किया था,
सोती हुई महिलाओं और साधू संतो पर
आपने मंचासीन होकर,
सोनिया जी के साथ में
धनुष बाण लेकर हाथ में
कागज के पुतले रावण पर तीर चलाया
हर साल की प्रक्रिया को दोहराया
जैसे हर साल आप पंद्रह अगस्त पर,
लाल किले पर भाषण देते हुए,
अपनी मृदुल वाणी में बतलाते है
की मंहगाई घटा देंगे
भ्रष्टाचार मिटा देंगे
पर ये दोनों बढ़ते ही जाते है
आप कुछ नहीं कर पाते है
और इसे गठबंधन की मजबूरी बताते है
वैसे ही दशहरे के दिन तीर चलाने से,
भ्रष्टाचार का रावण नहीं मर पायेगा
आपका तीर खाने को बार बार,
हर साल दशहरे को आएगा
क्योंकि उसकी महिमा प्रचंड है
आप लोगों की कृपा से,
उसकी नाभि में ,अमृत कुंड है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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