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मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

आलस 

कार्य हमेशा वह टलता ,जो जाता किया तुरंत नहीं 
                               आलस का कोई अंत नहीं 
आलस ही तो ,सदा काम में ,तुमसे टालमटोल कराता 
करते लोग ,बहानेबाजी ,जब उन पर आलस चढ़ जाता 
काम आज का कल पर टालो ,कल का परसों,परसों का फिर 
और इस तरह,काम कोई भी,पूर्ण नहीं हो पाता  आखिर 
एक बार जो टला ,टल गया ,रहा रुका वह आलस के वश 
क्योंकि जब आलस छा जाता ,हो जाता है मानव बेबस 
सब आराम तलब हो सोते ,उससे बढ़  आनंद नहीं
                                आलस का कोई अंत नहीं 
सर्दी में रजाई और बिस्तर ,नहीं छूटते आलस कारण 
जम कर भोजन अगर कर लिया ,आलस को दे दिया निमंत्रण 
साम्राज्य आलस का छाता ,जिस दिन भी छुट्टी रहती है 
खाना पीना सब बिस्तर पर ,आलस की गंगा बहती है 
देख हमें आलस में डूबा ,डट कर डाटे  श्रीमती जी 
कान हमारे ,जूँ न रेंगती  ,वो रहती है ,खीजी खीजी 
ख़लल कोई मस्ती में डाले ,हमको कभी पसंद नहीं
                                 आलस का कोई अंत नहीं 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अब तो उमर बची चौथाई 

जीवन भर संघर्ष रत रहे 
किन्तु अग्रसर ,प्रगतिपथ रहे 
खाई ठोकरें,गिरे,सम्भल कर ,
हमने अपनी मंजिल पाई 
अब तो उमर बची चौथाई 
ख़ुशी मिली तो कभी मिले गम 
उंच नीच में गुजरा जीवन 
कभी चबाये चने प्रेम से,
तो फिर कभी जलेबी खाई 
अब तो उमर बची चौथाई 
कोई ने अड़ ,काम बिगाड़ा 
कोई ने बढ़ ,दिया सहारा 
दोस्त मिले ज्यादा ,दुश्मन कम ,
हाथ मिले,ना हाथापाई 
अब तो उमर बची चौथाई 
मोहमाया में ऐसे उलझे 
याद ना रहा ,राम को भजे 
प्रभु ना सुमरे ,उमर काट दी,
गिनने में बस आना ,पाई 
अब तो उमर बची चौथाई 
जर्जर होती ,काया पल पल 
बहुत जुझारू,मगर आत्मबल 
बहुत जरा ने जाल बिछाया ,
लेकिन मुझे हरा ना पाई 
अब तो उमर बची चौथाई 
अब थकान है,बहुत चले हम 
जग ज्वाला में ,बहुत जले हम 
अब जल, अस्थि ,फूल बनेगी ,
गंगा में जायेगी  बहाई 
अब तो उमर बची चौथाई 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

जरूरत है 

जरुरत है,जरूरत है 
हमे चाहिये एक ऐसी कामवाली बाई 
जो कर सके घर का झाड़ू पोंछा और सफाई 
और साथ में ,बिना चूं चपड़ और कुछ कहे 
मेरी पत्नी की डाट भी सुनती रहे 
बिलकुल जबाब न दे और बुरा न माने 
डाट सुनना भी ,अपनी ड्यूटी का ही अंश जाने 
क्योंकि सुबह सुबह उसे बात या बेबात पर  डाट 
निकल जायेगी पत्नी के मन की  डाटने की भड़ास 
उनका डाटने का 'कोटा' खलास हो जाएगा 
तो फिर मेरे हिस्से ,डाट नहीं,प्यार आएगा 
और फिर हर रोज 
मुझे नहीं मिलेगा, सुबह सुबह डाट का 'डोज '
क्योंकि बच्चो को वो डाट नहीं सकती 
और सास से है वो डरती 
बचा एक मैं ही वो प्राणी हूँ जो सब कुछ सहता 
और उनकी डाट सुन कर भी कुछ नहीं कहता 
अब जब कामवाली बाई ये डाट खायेगी 
तो सुबह सुबह मेरी शामत  नहीं आएगी
मुझे डाट के प्रातःकालीन प्रसाद से ,
छुटकारा मिल जाएगा 
और कामवाली बाई को ,
इस विशेष काम के लिए ,
'डाट अलाउंस'अलग से चुपके से दिया जाएगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

अग्निपरीक्षा 

मैं ,दीपक की बाती  सी जली ,
              फैलाने को तुम्हारे जीवन में प्रकाश 
मैं पूजा की अगरबत्ती सी जली,
            फैलाने को तुम्हारे जीवन में उच्छवास  
मैं चूल्हे की लकड़ी सी जली ,
         तुम्हारे घर की रोटी और दाल पकाने को 
मैं हवन की आहुति सी स्वाह हुई,
         तुम्हारे जीवन में पुण्य संचित करवाने को 
मैं तो बस  हर बार राख ही होती रही ,
      और इसके बाद भी ,बतलाओ मैंने क्या पाया 
तुमने तो उस राख से भी अपने जूठे ,
            बरतनो  को माँझ माँझ  कर चमकाया 
क्या मेरी नियति में जलना ही लिखा है ,
       मुझे कब तक जलाते रहेंगे ,दहेज़ के लोभी 
कब तलक  ,कितनी निर्दोष सीताओं को ,
          कितनी बार  ये अग्निपरीक्षाये  देनी होगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
स्थानम प्रधानम 

नारी  सर की शोभा ,उसके काले कुंतल 
बिखर  गए तो  लगता जैसे छाये  बादल 
और बंधे  तो चेहरा  जैसे  चाँद चमकता 
लहराते तो सहलाने को  मन है  करता 
बहुत सर चढ़े है ,सर पर चढ़ है इतराते 
छोड़ा सर का साथ ,नज़र  कचरे में आते 
ये ही बाल ,सर छोड़ ,गिरे यदि अनजाने में 
और मिल जाए,दाल में, सब्जी या  खाने में 
केश धारिणी को कितनी  सुननी  पड़ती है 
मचती घर में कलह ,बात इतनी बढ़ती  है 
ऑफिस से जब पति देवता ,घर पर आते 
उनके कपड़ों  पर पत्नी को  बाल  दिखाते
देते खोल ,पोल पति की ,ये चुगलखोर बन 
मियां और बीबी  में  ,करवा देते  अनबन  
इनकी शोभा तब तक,जब तक है ये सर पर 
है स्थान प्रधान, जहां ये रहे संवर  कर 
सर से अगर गिर गए तो बन जाते  कूड़ा 
जब  ये  बदले  रंग ,आदमी होता  बूढा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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