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बुधवार, 26 जून 2019

आईने के पीछेवाला शख्स

मन  विदीर्ण
तन जीर्ण शीर्ण
आईने के पीछे वो कौन शख्स खड़ा है
उम्र में लगता ,मुझसे बहुत बड़ा है
 रह रह कर
पीड़ाये सह सह कर
उसकी  आँखें  पथरा  गयी है
चेहरे पर उदासी छा गयी है
मायूसियों ने उसे  घेर लिया है
खुशियों ने मुंह फेर लिया है
देखो चेहरा कैसा मुरझाया पड़ा है
आईने के पीछे वो कौन शख्स खड़ा है
क्या वो मैं हूँ या मेरा अक्स है
नहीं नहीं ,वो मैं नहीं हो सकता ,
वो तो कोई दूसरा ही शख्स है
मैं तो हँसता हूँ ,गाता हूँ
हरदम मुस्काता हूँ
चौकन्ना और चुस्त हूँ
एकदम दुरुस्त हूँ
मेरे मन में सबके लिए प्यार बसा है
मुझमे जीने की लालसा है
उदासियाँ मुझसे कोसों दूर है
मेरी जिंदादिली मशहूर है
उम्र कितनी भी हो जाय ,
मैं खुशियां खो नहीं सकता
इसके जैसा मेरा हाल  हो नहीं सकता
इस पर  तो मनहूसियत का रंग चढ़ा है
आईने के पीछे ,वो कौन शख्स खड़ा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' ,

सोमवार, 24 जून 2019

सास बहू संवाद

सास बोली बहू से कि ,तू  नई है
बुरे अच्छे का पता तुझको नहीं है
जो भी करती आई मैं ,वो ही सहीहै  
मुझसे अच्छा ,घर में  कोई भी नहीं है
मुझको मालुम ,घर को कैसे सजाते है
 मुझको मालुम,पैसा कैसे बचाते  है
तू नयी ,नौसिखिया ,तूने न जाना
कितना मुश्किल ,सफलता से घर चलाना
जवानी के गर्व में इठला न किंचित
मोहल्ले के सभी है  मेरे परिचित
बात मेरी ,गाँव सारा मानता है
तुझको मुश्किल से ही कोई जानता है
मैं बड़ी हूँ ,तुझे यदि ना भान होगा
सासपन मेरा यूं ही कुरबान होगा
चुप न रह पाती भले आराम में हूँ
ढूंढती कमियां तेरे हर काम में हूँ
कहीं ऐसा न हो तू गर्वान्वित हो
लोगों का दिल जीत ले,लाभान्वित हो
भूल मत ,मैंने बहू तुझको बनाया
भूल मत ,सर पर तुझे मैंने चढ़ाया
क्या पता था ,बजा तू यूं बीन देगी
मुझसे ही तू मेरा बेटा छीन लेगी
इसलिए सुन ,बढ़ न तू मुझसे अगाडी
तू अनाडी ,और पुरानी  मैं खिलाड़ी
अनुभव और ज्ञान का अहसास हूँ मैं
बात मेरी मान ,तेरी सास हूँ मैं
बहू बोली ,सास बलिहारी तुम्हारी
तुम्हारे पद चिन्ह पर चल रही सारी
सिर्फ मेरी सोच में है कुछ समर्पण
पाएं घरवाले ख़ुशी ,कर रही अर्पण
तन और मन से ,जो भी मुझसे बन सका है
फिर भी माथा आपका क्यों ठनकता है
भूल सकता कौन है तुम्हारी हस्ती
बहुत दिन तक चलाई तुमने गृहस्थी
थक  गयी  होगी ,जरा आराम देखो  
शांति से मैं कर रही वो काम देखो
लालसा सत्ता की है जो भी हटा दो
मन में लालच है अगर ,उसको घटा दो
आपने की सेवा ,पाया खूब मेवा
छोड़ गृहसेवा ,करो अब प्रभु सेवा

घोटू

गुजरे दिन

अब दीवारें फांदने के दिन गये
हसीनो को साधने के दिन गये गये

हुआ जो तुमको किसी से प्यार है
पहुँचने के लिए घर का द्वार  है
खिड़कियों से झाँकने के दिन गये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

ढला ही करती सभी की उमर है
दिल का आना पर न कोई जुरम है
प्यार के अधिकार तो ना  छिन  गये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

सब के मन में मचलता रोमांस है
हरेक को पर नहीं मिलता चांस है
ढूंढ लो तुम,मिलन के पल छिन नये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

खुल अब ना खेलने  की है उमर
मिले जितना ,करो उससे ही सबर
अब छलांगे मारने के दिन गये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

घोटू 

रविवार, 23 जून 2019

इज्जत

किसी ने मुझसे पूछा यार ये इज्जत क्या है
सभी की नाक में दम ,इसने कर के रख्खा है
कहा हमने किसी के, जब भी छुए जाते चरण
इसका मतलब है कि उसकी इज्जत करते हम
कोई धनवान है तो उसकी बड़ी इज्जत है  
कोई बलवान है तो उसकी बड़ी इज्जत है
कोई सत्ता में है तो लोग करते है  इज्जत
कोई को दिलवाता इज्जत है उसका ऊंचा पद
देश की इज्जत को  सैनिक शहीद हो  जाते
बढ़ती इज्जत ,खिलाड़ी ,जीत पदक जब लाते
किसीको सर झुकाओ ,नमस्कार प्रणाम करो
कहो आदाब अर्ज ,झुक के या सलाम करो
ये तो इज्जत के प्रदर्शन के सब तरीके है
जो कि सब हमने अपने बुजुर्गों से सीखे है
ये इज्जत क्या है और ये रहती कहाँ पर है
किसी के सर की पगड़ी इज्जत का उसकी घर है
कोई की नाक ऊंची ,याने कि इज्जत उसकी
गयी इज्जत तो समझो नाक कट गयी उसकी
कभी घटती है इज्जत तो  नज़र झुक जाती
पकड़ के कान ,बनो मुर्गा तो  इज्जत जाती  
कोई की इज्जत उसकी मूछों में नज़र आती
मूंछ बाल हुआ बांका ,इज्जत घट जाती
टेकना घुटने ,किसी आगे ,घटाता  इज्जत
आपके हाथों में रहती है आपकी इज्जत
आपके वस्त्र भी इज्जत को ढका करते है
गलती की ,दाग फिर इज्जत पे लगा करते है
काम अच्छे करो ,इज्जत कमाई जाती है
गलत हो काम तो इज्जत गमाई जाती है
कहीं  नीलाम होती और कहीं बेचीं जाती
धूल हो जाती कहीं मिट्टी  में ये मिल जाती
जरा  सी भूल से इज्जत पे बट्टा लग जाता
डूब जाती है या फिर उसपे पानी फिर जाता
कभी उतारी कभी लूटी जाती है इज्जत ,
ये घटित होता है माँ और बहनो संग जब तब
फेल बेटा  हुआ ,माँ बाप की इज्जत जाती
अच्छे कॉलेज में पढता है तो इज्जत आती
ये इज्जत अहम् है ,व्यवहार की प्रक्रिया है
बड़ा मुश्किल है समझना कि ये इज्जत क्या है
छोड़ दो शान झूठी ,जड़ है जो फ़जीहत की
चैन से जियो ,खाओ ,दाल रोटी इज्जत की

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
जवानी के बीते दिन


हमें वो प्यार की बातें पुरानी याद आती है
एक राजा याद आता है एक रानी याद आती है
जवानी में कभी ना ख्याल तक आया बुढ़ापे का ,
बुढ़ापा आगया तो अब जवानी  याद आती है
सुनहरे होते थे दिन और रंगीली रात होती थी ,
हवा में उड़ते थे ,साँझें सुहानी याद आती है
बहुत पुश्तैनी दौलत थी,उड़ादी यूं ही मस्ती में ,
अब करना काम पड़ता है तो नानी याद आती है
सुनु में माँ की या फिर बात अपनी बीबी की मानूँ ,
मुसीबत मेरी ,उनकी खींचातानी याद आती है  
बुढ़ापे में सहारे की ,बड़ी उम्मीद थी जिनसे ,
न पूंछें ,बच्चों की हरकत ,बेगानी याद आती है
 तभी कोने से एक दिल के ,आई आवाज ये 'घोटू '
नहीं ये मेरी, घर घर की ,कहानी याद आती है

घोटू 

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