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बुधवार, 8 जुलाई 2015

ग़लतफ़हमी

                ग़लतफ़हमी

एक दिन मुर्गों के मन में , अचानक बात ये आई ,
            सवेरा तब ही  होता है कि जब हम बांग देते है
और इंसान है हमको ,भून तंदूर में खाता,
             करें हड़ताल एक दिन हम सुबह को टांग देते है
नहीं दी बांग एक दिन ,सूर्य पर निश्चित समय निकला
                   पड़ा ना फर्क रत्ती भर   ,रोज जैसा सवेरा  था
देख दिनचर्या हर दिन सी,ठिकाने आ गई बुद्धि  ,
              समझ औकात निज आयी ,ग़लतफ़हमी ने घेरा था        

घोटू

मधुमक्खी सी औरतें

          मधुमक्खी सी औरतें

औरतें होती है ,मधुमक्खी सी कर्मठ
परिवार हित करती दिन भर ही है खटपट
उड़ उड़ कर ,पुष्पों से ,करती है मधु संचित
छत्ते को भर देती ,रह जाती ,खुद  वंचित
डालता छत्ते पर ,कोई जो बुरी  नज़र
काट काट उसका वो बुरा हाल देती कर
एक दूजे संग गहरा ,बड़ा प्यार है इनका
बसा मधु छत्ते में ,परिवार  है  इनका

घोटू 

जमे हुए रिश्ते

           जमे हुए रिश्ते

आजकल हालत हमारी ,इस तरह की हो रही है
रिश्ते ऐसे जम गए है ,जैसे जम जाता  दही है
नींद हमको नहीं आती ,उनको भी आती नहीं है
जानते हम ,हो रहा जो ,सब गलत कुछ ना सही है
हमारे रिश्तों में  पर    ऐसी दरारें पड़  गयी है
अहम का टकराव है ये ,दोष कोई का नहीं है
सो रहे हम मुंह फेरे,वो भी उलटी  सो रही  है
मिलन की मन में अगन पर ,जल रही वो वही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीत का अंदाज

                 जीत का अंदाज          

हरेक चूहे में इतनी काबलियत कहाँ होती है ,
                 मिले एक कपडे की चिंदी ,और बजाज बन जाए
कभी भी जिसके पुरखों ने ,न मारी मेंढकी भी हो,
                 हिम्मती बेटा  यूं निकले  ,कि तीरंदाज  बन जाए
भरा मन में जो ज़ज्बा हो,अगर कुछ कर दिखाने का,
                    तो कायनात की सब ताकतें भी साथ देती है,
तुम्हारे हौंसले को फक्र  से सलाम सब बोलें,  
                    तुम्हारी जीत का कुछ इस तरह ,अंदाज बन जाए  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

यादें -बरसात की

              यादें -बरसात की

हमको तो बारिश में भीगे ,एक अरसा हो गया ,
               मगर वो रिमझिम बरसता प्यारा सावन याद है
याद है वो नन्ही नन्ही ,बूंदों की मीठी चुभन ,
                      श्वेत  भीगे वसन से वो झांकता तन ,याद है
पानी में तरबतर तेरा थरथरा कर कांपना,
                     संगेमरमर से बदन की ,प्यारी सिहरन याद है
तेरी जुल्फों से टपकती ,मोतियों की वो लड़ी,
                      और भीगे से अधर का , मधुर चुम्बन  याद है
मांग से चेहरे बहती लाली वो सिन्दूर की,
                      आग तन मन में लगाता ,तेरा यौवन याद है
तेरे संग बारिश में मेरा ,छपछपा कर नाचना ,
                       आज भी मुझको वो अपना दीवानापन याद है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   

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