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बुधवार, 7 अगस्त 2024

ओ भैया मेरे लाडले 


तू जिए हजारों साल, ओ भैया मेरे लाडले तेरा जीवन हो खुशहाल , ओ भैया मेरे लाडले 


एक मां की संताने हैं हम 

संग गुजारा,हमने बचपन 

एक मिट्टी में हम तुम खेले 

वो दिन भी थे,क्या अलबेले 

कभी दोस्ती, कभी लड़ाई 

मिलजुल हमने करी पढ़ाई


तुम चले गए कालेज और हम ससुराल चले 

तू जिये हजारों साल ,ओ भैया मेरे लाडले


भाई बहन के प्यार का रिश्ता 

सारी उमर तलक हैं निभता 

हर एक बरस जब आता सावन 

बंधता है रक्षा का बंधन 

भाई की कलाई पर बहना 

बांधती है राखी का गहना 

और बरसती है प्यार, ओ भैया मेरे लाडले तू जिये हजारों साल , ओ भैया मेरे लाडले


मदन मोहन बाहेती घोटू

मौत से निवेदन 


ऐ मौत तू आएगी ही, निश्चित तेरा आना

बस इतनी गुजारिश है जरा देर से आना


जबतक था जवां,उलझा गृहस्थी के जाल में 

हर दम ही रहा व्यस्त, कमाने को माल मैं 


यूं वक्त खिसकता गया और आया बुढ़ापा

अपने में भी मैंने दिया तब ध्यान जरा सा


 भगवान ने इतनी हसीं दुनिया यह बनाई 

कुछ भी मजा लिया न ,यूं ही उम्र गमाई


जितनी बची है जिंदगी, कुछ ऐश मैं कर लूं

भगता उम्र का भूत ,लंगोटी ही पकड़ लूं


 आनंद से है उम्र बची मुझको बिताना  

ऐ मौत गुजारिश है ,जरा देर से आना


कितनी ही मेरी ख्वाइशें अब तक है अधूरी

मैं चाहता हूं जीते जी कर लूं उन्हें पूरी


कितनों के ही एहसान है,मैं उनको चुका दूं

सतकर्म में, मैं,अपनी उमर बाकी लगा दूं 


काटू बुढ़ापा ऐश और आराम करूं मैं

गगरी को अपने कर्म की पुण्यों से भरूं मैं


 सब पाप धो दूं गंगा में ,जीवन सुधार लूं

कुछ दान धर्म कर लूं ,प्रभु को पुकार लूं


 अगले जन्म के वास्ते हैं पुण्य कमाना  

ऐ मौत गुजारिश है कि ज़रा देर से आना


मदन मोहन बाहेती घोटू

मुझको दिया बिगाड़ आपने

 मुझको दिया बिगाड़ आपने
 मुझ पर इतनी प्रीत लुटाकर सचमुच किया निहाल आपने
मै पहले से कुछ बिगड़ा था,थोडा दिया बिगाड़ आपने

पहले कम से कम अपने सब ,काम किया करता था मै खुद
अस्त व्यस्त से जीवन में भी,रखनी पड़ती थी खुद की सुध
अब तो मेरे बिन बोले ही ,काम सभी हो कर देती तुम
टूटे बटन टांक देती  हो ,चाय     नाश्ता  धर देती तुम 
मेरी हर सुख और सुविधा का ,पूरा ध्यान तुम्हे रहता है
मुझ को कब किसकी जरुरत है,पूरा भान तुम्हे रहता है
 मुझे आलसी बना दिया है ,
रख कर इतना ख्याल आपने 
 मै पहले से कुछ बिगड़ा था,   थोडा दिया बिगाड़  आपने 

भँवरे सा भटका करता था ,कलियों पीछे ,हर रस्ते में
लेकिन जब से तुम आई हो , मेरे दिल के गुलदस्ते में
तुम्हारे ही पीछे अब तो ,  मै बस  हूँ  मंडराया करता
लव यू, लव यू, का गुंजन ही ,अब मै दिन भर गाया करता
पागल अली ,कली  के चक्कर ,में इतना पाबन्द हो गया
इधर उधर ,होटल में खाना ,अब तो मेरा बंद हो गया
ऐसी स्वाद ,प्यार से पुरसी ,
घर की रोटी दाल आपने 
 मै पहले से कुछ बिगड़ा था ,थोड़ा  दिया बिगाड़  आपने

मुझ पर ज्यादा बोझ ना पड़े ,रखती हो ये ख्याल  हमेशा
इसीलिये ,मेरे बटुवे से ,    खाली कर        देती सब पैसा 
मेरे लिए ,शर्ट  या कपडे ,लेने जब जाती बाज़ार हो
खुद के लिये , सूट या साडी ,ले आती तुम तीन चार हो
पैसा ,मेल हाथ का ,कह तुम,हाथ हमेशा धोती रहती
धीरे धीरे , लगी सूखने, मेरे धन की  ,गंगा बहती
मुझको ए टी एम ,समझ कर,किया है इस्तेमाल आपने 
 मैं पहले से कुछ बिगड़ा था  ,थोड़ा  दिया बिगाड़ आपने

मै पहले ,अच्छा खासा था ,तुमने क्या से क्या कर डाला
ये न करो और वो न करो कह,पूरा मुझे बदल ही  डाला
और अब ढल तुम्हारे सांचे में जब बिलकुल बदल गया मै
तुम्ही शिकायत ,ये करती हो,     पहले जैसा  नहीं रहा मै 
चोरी ,उस पर सीनाजोरी , ये तो  वो ही मिसाल हो गयी
ऐसा रंगा ,रंग में अपने , कि मेरी पहचान    खो गयी
सांप मरे ,लाठी ना टूटे ,
ऐसा  किया  जुगाड़  आपने
मै पहले से कुछ बिगड़ा था ,थोडा दिया बिगाड़ आपने
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 1 अगस्त 2024

आलस का मजा 


आपने सोने का मजा तो लिया होगा 

आपने बिछोने का मजा भी लिया होगा 

लेकिन कितनी ही बार ऐसा भी होता है

आदमी सुबह तलक गहरी नींद सोता है

जल्दी से उठने का मन नहीं होता है 

पर हालतों से करना पड़ता समझौता है

एक मन कहता है ,पड़े रहो मत जागो

एक मन कहता है अब निद्रा को त्यागो

कभी आंख खुलती है कभी बंद हो जाती

बदन कसमसाता है और अंगड़ाई आती

कभी फिर करवट ले सोने को मन करता

सोने और जगने में यूं ही द्वंद है चलता 

तन कहता जग जाओ, मन कहता सो जाओ 

फिर से तुम सपनों की दुनिया में खो जाओ 

इसी कशमकश को तो कहते हैं आलस हम

 जगने की मजबूरी ,नींद टूटने का गम

बदन टूटने लगता आती है जम्हाई 

कभी इधर कभी उधर लेते हैं हम अंगड़ाई

नींद का खुमार मुश्किल से छूट पाता है

सच में ऐसे आलस में बड़ा मजा आता है


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 31 जुलाई 2024

मैं तुमसे क्या मांगा था 


मैंने तुमको देखा, तुमसे क्या मांगा था 

केवल तुमसे बस इतना सा ही तो मांगा था

अपनी प्यारी चंचल हिरणी सी आंखों से

प्यार भरी एक दृष्टि मुझ पर भी बरसा दो

 मेरे जीवन को हरशा दो 

पर तुमने इनकार कर दिया 


तुमने नज़र उठाई , मैने क्या मांगा था

केवल तुमसे बस इतना सा ही तो मांगा था

अपने कोमल से कपोल पर,

 एक चुम्बन अंकित करने दो 

मुझको रोमांचित करने दो 

पर तुमने इनकार कर दिया 


तुम पास आई तो दिल धड़का

 मैंने तुमसे बस इतना सा ही तो मांगा था

अपने रक्तिम और रसीले इन अधरों का,

मुझको भी  रसपान करा दो,

मेरे जीवन को सरसा दो

पर तुमने इनकार कर दिया 


तुम सकुचाई और शरमाई 

मैंने तुमसे बस इतना सा ही तो मांगा था

अपनी कसी और कमनीय देह को

अपने बाहुपाश में मुझे बांध लेने दो 

मुझे स्वर्ग का सुख लेने दो,

पर तुमने इनकार कर लिया 


मैं निराश हो लौट रहा था तुमने टोका 

झोंका आया एक तुम्हारे मधुर स्वरों का

बोली टुकड़ों टुकड़ों की ये मांग अधूरी 

मैं राजी हूं तुम्हे समर्पित होने  पूरी 

प्यार भरे तुम्हारे प्यारे आमंत्रण ने 

मेरे जीवन का सपना साकार कर दिया

तुमने मुझपर बहुत बड़ा उपकार करदिया


मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 30 जुलाई 2024

ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी 


ये मिट्टी नहीं है हमारी ये मां है 

मिट्टी से अपना बदन ये बना है 

जीवन के पल-पल में छाई है मिट्टी 

हमेशा बहुत काम आई है मिट्टी 

ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी 


गांव की मिट्टी में बीता था बचपन

मिट्टी का घर था और मिट्टी का आंगन मिट्टी के चूल्हे की रोटी सुहानी 

मिट्टी के मटके से पीते थे पानी 


मिट्टी के होते खिलौने थे सुंदर 

वो गाड़ी वो गुड़िया वो भालू वो बंदर 

मिट्टी की पाटी में खड़िया लगाकर 

सीखे थे हमने गिनती और अक्षर 

मिट्टी में खेले ,हुए कपड़े मैले 

बचपन में छुप छुप कर खाई है मिट्टी 

ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी 


मिट्टी की सिगड़ी में सर्दी में दादी 

हमें सेक मक्की के भुट्टे खिलाती 

मिट्टी सुराही का ठंडा वो पानी

 मिट्टी के  कुल्हड़ की चाय सुहानी


 बारिश में मिट्टी में चलना वो थप थप बचाने को पैसे थी मिट्टी की गुल्लक 

हमेशा बहुत काम आई है मिट्टी 

जीवन के हर रंग छाई है मिट्टी 

ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी 


त्यौहार जब भी दिवाली का आता

 मिट्टी के गणपति और लक्ष्मी माता 

सभी लोग मिलकर के करते थे पूजन मिट्टी के दीपक से घर होता रोशन 


अब तो शहर में है कंक्रीट के घर 

मिट्टी की खुशबू नहीं है कहीं पर 

एक कंचन काया बदन यह हमारा 

इसकी भीअंतिम विदाई है मिट्टी 

जीवन के पल-पल मे छाई है मिट्टी 

  ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी 


मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 20 जुलाई 2024

छुपे रुस्तम 


हम जमीन से जुड़े हुए हैं 

पर पापुलर हैं जन-जन में 

चाहे अमीर ,चाहे गरीब 

हम मौजूद सबके भोजन में 

मैं तो हूं छुपी हुई रुस्तम 

मत समझो मैं मामूली हूं 

बाहर से हरी भरी पत्ती 

पर अंदर लंबी मूली हूं 

छोटे पौधों सी मैं दिखती 

पर अंदर मीठी गाजर हूं 

मैं शलजम प्यारी रूप भरी 

मैं गुण की खान चुकंदर हूं 

माटी के अंदर छुपा हुआ 

मैं आलू सबको भाता हूं 

मैं निकल धरा से प्याज बना 

भोजन का स्वाद बढ़ाता हूं 

मैं गुणकारी सब पर भारी 

भरा मसाला मैं गुण का 

तो मैं हल्दी हूं हितकारी 

मैं हूं तड़का लहसुन का 

मैं तेल भरी, हूं मूंगफली ,

मिट्टी में पलकर हूं निखरी 

मैं जमीकंद , मैं हूं अरबी 

मैं शकरकंद हूं स्वाद भरी 

हम सब धरती की माटी में 

छुप कर रह कर है बड़े हुए 

बाहर से दिखते घास फूस

पर अंदर गुण से भरे हुए 

इसलिए किसी का बाह्य रूप 

को देख ना कीमत आंको तुम 

अगर परखना है गुण को 

तो उसके अंदर झांको तुम 


मदन मोहन बाहेती घोटू

घोटू के पद 


घोटू ,बात प्रिया की मानो 

वरन तुम्हारी क्या गति होगी,

 तुम अपनी ही जानो 

घोटू, बात प्रिया की मानो 


जीवन यदि सुख से जीना है, पत्नी के गुण गाओ 

पत्नी की हां में हां बोलो और आनंद उठाओ 

वह देवी है सुख की दाता,वही मालकिन घर की 

उसके कारण ,घर में रौनक ,खुशियां जीवन भर की 

चला रही वो सारे घर को, उसमें है चतुराई तुम कमाओ ,उसके चरणों में ,अर्पित करो कमाई 

पत्नी भक्ति में जो डुबोगे, पाओगे फल प्यारा 

तुम्हें प्यार प्रसाद मिलेगा , भोजन नवरस वाला 

वह बिग बॉस तुम्हारे घर की कदर करो दीवानों 

घोटू ,बात प्रिया की मानो


मदन मोहन बाहेती घोटू

बच्चे तो रौनक है घर की 


जीवन में खुशियां लाने को अनमोल भेंट ये ईश्वर की 

बच्चे तो रौनक है घर की 


नन्हे मुन्ने ,भोले भाले ,मासूम बहुत ,निश्चल निर्मल 

पहले चलते घुटने घुटने फिर चलते उंगली पकड़ पकड़ 

पल में रोना पल में हंसना ,पल में दुध्दू पल में सुस्सु 

है चेहरे पर मुस्कान कभी तो गालों पर बहते आंसू 

गोदी में आना ,सो जाना पलकों पर निंदिया पल भर की

बच्चे तो रौनक है घर की 


उनके छोटे-मोटे झगड़े ,हर रोज लगे ही रहते हैं 

मम्मी से शिकायत करते पर,

पापा से डर कर रहते हैं 

हरदम ही लगी रहा करती 

इनकी कुछ ना कुछ फरमाइश 

ये ढेरों खिलौने पा जाए ,हरदम रहती 

 इनकी ख्वाहिश 

दिनभर करते ही रहते हैं , ये शैतानी दुनिया भर की

बच्चे तो है रौनक घर की 


बच्चे जब होते हैं घर में तो चहल पहल सी रहती है 

सन्नाटा नहीं काटता है ,घर में हलचल सी रहती है 

ये बाल स्वरूप कन्हैया है ,नटखट इनकी लीलाएं हैं 

तुम्हारे जीवन में हरदम खुशियां बरसाने आए हैं 

इन पर न्योछावर कर दो तुम

 ममता अपने जीवन भर की 

बच्चे तो रौनक है घर की


मदन मोहन बाहेती घोटू

झुर्रियां


झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 

छा गई पूरे तन पर हैं अब झुर्रियां 


मेरा कोमल बदन जो था मांसल कभी 

हर जगह अब तो चमड़ी सिकड़ने लगी

अंग तन के गए पड़ है ढीले सभी 

हाथ में झुर्रियां,पांव में झुर्रियां 

झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 


जोश था जो जवानी का सब खुट गया

ऐसा आया बुढ़ापा कि मैं लुट गया 

गाल थे जो गुलाबी, भरी झुर्रियां 

आइना भी उड़ाता है अब खिल्लियां

झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 


उम्र ऐसी बड़ी बेवफा हो गई 

सारे चेहरे की रौनक दफा हो गई 

जब कहती है बाबा हमें सुंदरिया 

तो चलती है दिल पर कई छुर्रियां 

झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 

छा गई पूरे तन पर अब झुर्रियां 


मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 1 जुलाई 2024

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स्वजनों से 


मेरे  सारे रिश्तेदारों 

प्यारे संगी साथी यारों 

मैं अब अस्सी पार हो रहा 

व्यथित और बीमार हो रहा 

गिरती ही जाती सेहत है 

चलने फिरने में दिक्कत है

 बीमारी तन तोड़ रही है 

याददाश्त संग छोड़ रही है

मैं और मेरी पत्नी साथी 

हर सुख दुख में साथ निभाती 

लेकिन वह भी तो वृद्धा है 

पर उसकी मुझ में श्रद्धा है 

जैसे तैसे कष्ट सहन कर 

मेरी सेवा करती दिनभर

 बेटी बेटे दूर बसे हैं 

अपने झंझट में उलझे हैं 

बना रखी है सब ने दूरी 

अपनी अपनी है मजबूरी 

भले शिथिल हो गए अंग है 

लेकिन जीने की उमंग है 

भले साथ ना देती काया 

पर न छूटती मोह और माया 

हटता नहीं मोह का बंधन 

सबसे मिलने को करता मन 

आना जाना मुश्किल है अब 

व्यस्त काम में रहते  है सब 

लेकिन मेरी यही अपेक्षा 

वृद्धो की मत करो उपेक्षा 

भूले भटके जब भी हो मन 

दिया करो हमको निज दर्शन 

तुम्हें देख मन होगा हलका 

दो आंसू हम लेंगे छलका 

शिकवे गिले दूर हूं सारे 

सुन दो मीठे बोल तुम्हारे 

तुमको छू महसूस कर सकूं 

तुम्हें निहारूं और ना थकू 

थोड़ा समय निकालो प्यारो 

मेरे सारे रिश्तेदारों 


मदन मोहन बाहेती घोटू

होली का त्यौहार 


आओ आओ मनाए सब यार 

 प्यार से होली का त्यौहार 

रंगों के संग खुशियां बरसे 

उड़े अबीर गुलाल 

मनाए होली का त्यौहार 


यह प्यारा त्योंहार रंगीला 

हर कोई है नीला पीला 

धूम मच रही है बस्ती में 

झूम रहे हैं सब मस्ती में 

आपस में कोई भेद नहीं है 

जीवन का आनंद यही है

 ले पिचकारी सभी कर रहे 

रंगों की बौछार 

मनाएं होली का त्यौहार


रात होलिका दहन किया था 

बैर भाव को फूंक दिया था 

प्रभु नाम का जीता था जप

हार गया था हिरनाकश्यप

जीत गया प्रहलाद भक्त था

प्रभु भक्ति में अनुरक्त था

लिया प्रभु ने उसके खातिर

नरसिंह का अवतार 

मनाएं होली का त्योंहार 


मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 30 जून 2024

संबोधन 


बेटे को *बिटुवा* कहते तो अच्छा लगता है 

बेटी को *बिटिया* कहने से प्यार उमड़ता है 

यह मेरे *वो *है कहकर पत्नी शर्माती है लेकिन पति की *वो* होने से वह घबराती है 

कहो पिताजी को पापा तो लगता अपनापन 

माताजी को *मां* कहना है ममता का बंधन बड़े भाई को *भैया* कहना चाचा को *चाचू* 

और बहन को *दीदी* कहना दादा को *दादू *

यह कुछ संबोधन है जो परिवार बनाते हैं और आपके रिश्तों में अपनापन लाते हैं सदा पिता को *आप* लगा संबोधित करते हैं 

पर मां को* तू *,ईश्वर को भी* तू* ही कहते है

बूढ़े बाबा खुश होते *अंकलजी *कहने पर 

हो जाती नाराज पड़ोसन *आंटी जी* कहने पर 

*सुनते हो जी *का संबोधन पति का होताअक्सर 

 किंतु पुकारा जाता है अब नाम एक दूजे का लेकर 

संबोधन में आदर देने नाम आगे *जी* *साहब *लगाते 

पत्नी के भ्राता साला ना वह है *साले साहब* कहाते 

नाम तुम्हारा ही लेकर हरदम जाता तुम्हें पुकारा 

नाम ही है पहचान तुम्हारी नाम बिन  ना अस्तित्व तुम्हारा 


मदन मोहन बाहेती घोटू

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