नया दौर
उम्र का कैसा गणित है
भावनाएं भ्रमित हैं
शांत रहता था कभी जो,
बड़ा विचलित हुआ चित है
पुष्प विकसित था कभी, मुरझा रहा है
जिंदगी का दौर ऐसा आ रहा है
ना रही अब वह लगन है
हो गया कुछ शुष्क मन है
लुनाई गायब हुई है,
शुष्क सा सारा बदन है
जोश और उत्साह बाकी ना रहा है
जिंदगी का दौर एसा आ रहा है
जवानी जो थी दिवानी
बन गई बीती कहानी
एक लंगडी भिन्न जैसी,
हो गई है जिंदगानी
प्रखर सा था सूर्य, अब ढल सा रहा है
जिंदगी का दौर एसा आ रहा है
मदन मोहन बाहेती घोटू
बेहतरीन रचना
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