एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2021

मेरी बुजुर्गियत

मेरी बुजुर्गियत
बन गई है मेरी खसूसियत
और परवान चढ़ने लगी है ,
मेरी शख्सियत 
हिमाच्छादित शिखरों की तरह मेरे सफेद बाल 
उम्र के इस सर्द मौसम में ,लगते हैं बेमिसाल 
पतझड़ से पीले पड़े पत्तों की तरह ,
मेरे शरीर की आभा स्वर्णिम नजर आती है 
आंखें मोतियों को समेटे ,मोतियाबिंद दिखाती है 
नम्रता मेरे तन मन में इस तरह घुस गई है 
कि मेरी कमर ही थोड़ी झुक गई है 
मधुमेह का असर इस कदर चढ गया है 
कि मेरी वाणी का मिठास बढ़ गया है 
अब मैं पहाड़ी नदी सा उछलकूद नहीं करता हूं
मैदानी नदी सा शांत बहता हूं
मेरा सोच भी नदी के पाट की तरह,
विशाल होकर ,बढ़ गया है
मुझ पर अनुभव का मुलम्मा चढ़ गया है
अब मैं शांत हो गया हूं
संभ्रांत हो गया हूं
कल तक था सामान्य
अब हो गया हूं गणमान्य
बढ़ गई है मेरी काबलियत
मेरी बुजुर्गियत
निखार रही है मेरी शक्सियत
मुझमें फिर से आने लगी है,
वो बचपन वाली मासूमियत

मदन मोहन बाहेती घोटू

3 टिप्‍पणियां:

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-