मेरी बुजुर्गियत
मेरी बुजुर्गियत
बन गई है मेरी खसूसियत
और परवान चढ़ने लगी है ,
मेरी शख्सियत
हिमाच्छादित शिखरों की तरह मेरे सफेद बाल
उम्र के इस सर्द मौसम में ,लगते हैं बेमिसाल
पतझड़ से पीले पड़े पत्तों की तरह ,
मेरे शरीर की आभा स्वर्णिम नजर आती है
आंखें मोतियों को समेटे ,मोतियाबिंद दिखाती है
नम्रता मेरे तन मन में इस तरह घुस गई है
कि मेरी कमर ही थोड़ी झुक गई है
मधुमेह का असर इस कदर चढ गया है
कि मेरी वाणी का मिठास बढ़ गया है
अब मैं पहाड़ी नदी सा उछलकूद नहीं करता हूं
मैदानी नदी सा शांत बहता हूं
मेरा सोच भी नदी के पाट की तरह,
विशाल होकर ,बढ़ गया है
मुझ पर अनुभव का मुलम्मा चढ़ गया है
अब मैं शांत हो गया हूं
संभ्रांत हो गया हूं
कल तक था सामान्य
अब हो गया हूं गणमान्य
बढ़ गई है मेरी काबलियत
मेरी बुजुर्गियत
निखार रही है मेरी शक्सियत
मुझमें फिर से आने लगी है,
वो बचपन वाली मासूमियत
मदन मोहन बाहेती घोटू
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे भाव को व्यक्त करती बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंHindi Story
जवाब देंहटाएंmppsc
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bhoot ki kahani