उड़ परिंदे उड़
उड़ परिंदे उड़
रोज होने वाली जीवन की
गतिविधियों से जुड़
उड़ परिंदे उड़
देख है कितना दिन चढ़ा
सोच रहा क्या पड़ा पड़ा
पंख तू अपने फड़फड़ा
कदम लक्ष्य की और बढ़ा
अपना आलस झाड़ कर
दाना पानी जुगाड़ कर
जीने को ये करना पड़ता
और पेट है भरना पड़ता
कोई मदद को ना आएगा
तू भूखा ही मर जाएगा
इसलिए ऊंची उड़ान भर,
तू पीछे मत मुड़
उड़ परिंदे उड़
मदन मोहन बाहेती घोटू
बहुत सुंदर
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