जैसे ही मतलब निकलता ,बता देते है धता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता
पारिवारिक मूल्यों को ,लोग अब खोने लगे
सेंटीमेंटल ना रहे है ,प्रेक्टिकल होने लगे
रिश्ते अब रिसने लगे है ,मोहब्बत है घट गयी
मैं और मुनिया में ,दुनिया सिमट कर रह गयी
हुआ विगठन ,संगठन में ,डर रहा हमको सता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता
पारिवारिक बंधनो को ,तोड़ सब हमने दिया
होड़ पश्चिम से लगी और छोड़ सब हमने दिया
संस्कृति को भुलाया ,संस्कार सारे खो गये
कौन हम थे हुआ करते ,और अब क्या हो गये
आगे आगे और क्या होगा नहीं सकते बता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता
दिवाली की जगमगाहट ,फीकी पड़ने लग गयी
होली के रंगों की अब ,रंगत उजड़ने लग गयी
बुजुर्गों प्रति घट रही है श्रद्धा और सदभावना
लॉकडाउन लग गया ,अब गुम हुआ अपनपना
लोग पढ़ लिख तो गए पर बढ़ी ना बुद्धिमता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता
हो रहे परिवर्तनों का ,यदि करें हम आकलन
बढ़ रहा है फोन पर ही ,'हाय 'हैल्लो ' का चलन
तार थे जो प्यार के अब हो रहे बेतार है
मिलना जुलना कम ,बदलता जा रहा व्यवहार है
रिश्ते नाते ,डगमगाते ,होगा क्या ,किसको पता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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