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शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

फुर्सत की ग़ज़ल

बैठे थे फुरसत में ,उनका दिल लगाने लग गये  
एक दिन जब हम उन्हें गाने सुनाने  लग गये
हमको ना सुर की पकड़ थी ,ना पकड़ थी ताल की ,
बेसुरे हम ,कान  उनके ,बस  पकाने लग गये
हमारे गाने की तानो  ने बिगाड़ा उनका मन ,
वो खफ़ा होकर हमें ,ताने सुनाने लग गये
बुढ़ापे में आशिक़ी का भूत कुछ ऐसा चढ़ा ,
मूड उनका सोने का था ,हम सताने लग गये
'घोटू 'कुछ ना काम है ना काज है ,हम क्या करें ,
वक़्त अपना इस तरह से ,हम बिताने लग गये  

घोटू 

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