युग परिवर्तन
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
काली स्लेट ,खड़िया लेकर बच्चे अ आ ई पढ़ते थे
स्याही और होल्डर से लिख कर आगे पढाई में बढ़ते थे
फिर फाउंटेन पेन आया ,और बाल पेन ने किया राज
अब पेपर लेस पढाई से ,चलता है सारा काम काज
कम्यूटर पर और ऑन लाइन ,बच्चे पढाई अब करते है
सारी दुनिया का वृहद ज्ञान ,निज लैपटॉप में भरते है
छोटे बच्चों को बड़े बड़ों ,के कान काटते देखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
उन दिनों सास का शासन था ,बहुएं सासों से डर रहती
करती थी दिन भर काम और उनके ताने भी थी सहती
बच्चे उन्मुक्त खेलते थे ,बस्तों का बोझा भी कम था
चाचा ,ताऊ सब संग रहते ,और मस्तीवाला आलम था
माहौल इस तरह अब बदला ,बहुओं से डरती थी सासें
और मात पिता भी बच्चों से ,डर कर रहते,अच्छे खासे
परिवार नहीं संयुक्त रहे ,अब खिंची बीच में रेखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
तब गावों के कुछ घर में ही ,रखते थे रेडियो लोगबाग
फिर ट्रांजिस्टर ले बड़ी शान से घूमा करते उसे टांग
काले सफ़ेद टेलीविज़न ने नयी क्रांति का बोध दिया
रंगीन हुआ टेलीविजन ,लोगो ने हाथों हाथ लिया
सबको पछाड़ जब मोबाईल ,आया तो सबके मन भाया
रेडियो ,कैमरा और टीवी ,अब सबकी मुट्ठी में आया
यह छोटा उपकरण काम का है और बड़े मजे का है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
तब सिगरेट पांचसोपचपन का , डिब्बा निज हाथों में लेकर
कुछ लोग शान से धूम्रपान ,करते रहते है रह रह कर
फिर पान मसाले ने आकर ,ऐसा लोगों का रुख बदला
सबके हाथों की शान बना,डिब्बा एक पानपराग भरा
वो युग बीता ,कोरोना ने ,फिर फैलाया ऐसा डर है
कि उससे बचने ,लोगों के ,हाथों में सेनेटाइजर है
बदले हालातों के आगे ,हमने घुटनो को टेका है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
काली स्लेट ,खड़िया लेकर बच्चे अ आ ई पढ़ते थे
स्याही और होल्डर से लिख कर आगे पढाई में बढ़ते थे
फिर फाउंटेन पेन आया ,और बाल पेन ने किया राज
अब पेपर लेस पढाई से ,चलता है सारा काम काज
कम्यूटर पर और ऑन लाइन ,बच्चे पढाई अब करते है
सारी दुनिया का वृहद ज्ञान ,निज लैपटॉप में भरते है
छोटे बच्चों को बड़े बड़ों ,के कान काटते देखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
उन दिनों सास का शासन था ,बहुएं सासों से डर रहती
करती थी दिन भर काम और उनके ताने भी थी सहती
बच्चे उन्मुक्त खेलते थे ,बस्तों का बोझा भी कम था
चाचा ,ताऊ सब संग रहते ,और मस्तीवाला आलम था
माहौल इस तरह अब बदला ,बहुओं से डरती थी सासें
और मात पिता भी बच्चों से ,डर कर रहते,अच्छे खासे
परिवार नहीं संयुक्त रहे ,अब खिंची बीच में रेखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
तब गावों के कुछ घर में ही ,रखते थे रेडियो लोगबाग
फिर ट्रांजिस्टर ले बड़ी शान से घूमा करते उसे टांग
काले सफ़ेद टेलीविज़न ने नयी क्रांति का बोध दिया
रंगीन हुआ टेलीविजन ,लोगो ने हाथों हाथ लिया
सबको पछाड़ जब मोबाईल ,आया तो सबके मन भाया
रेडियो ,कैमरा और टीवी ,अब सबकी मुट्ठी में आया
यह छोटा उपकरण काम का है और बड़े मजे का है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
तब सिगरेट पांचसोपचपन का , डिब्बा निज हाथों में लेकर
कुछ लोग शान से धूम्रपान ,करते रहते है रह रह कर
फिर पान मसाले ने आकर ,ऐसा लोगों का रुख बदला
सबके हाथों की शान बना,डिब्बा एक पानपराग भरा
वो युग बीता ,कोरोना ने ,फिर फैलाया ऐसा डर है
कि उससे बचने ,लोगों के ,हाथों में सेनेटाइजर है
बदले हालातों के आगे ,हमने घुटनो को टेका है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।