ग्रहों का खेल
कहते है कि आदमी का भाग्य सारा ,
नवग्रहों का खेल ये कितना गजब है
सिर्फ नौ ,बारह घरो की कुंडली में,
अपने क्रम से घूमते रहते ही सब है
कोई बैठा रहता है कोई के घर में ,
और किसी की किसी के संग दुश्मनी है
कोई सा ग्रह भाग्य के स्थान पर है ,
देखता पर वक्रदृष्टी से शनि है
शुक्र गुरु मिल लाभ के स्थान पर है ,
शत्रु के स्थान पर राहु डटा है
कर रहा मंगल किसी का है अमंगल ,
और किसी का सूर्य केतु से कटा है
है उदय का ग्रह कोई तो अस्त का है,
और किसी का नीच वाला चन्द्रमा है
और कहीं पर बुध बैठा स्वग्रही बन
अजब सा व्यवहार सबका ही बना है
सबकी अपनी चाल होती,घर बदलते ,
कोई किस से मिल अजब संयोग देता
शत्रु के घर ,मित्र ग्रह रहते कई दिन ,
कोई सुख तो कोई प्रगति रोक देता
सिर्फ नौ ग्रह,रह न पते मगर टिक कर ,
जब कि है उपलब्ध बारह घर यहां पर
एक दूजे के घरों में घुसे रहते,
जब कि सबका ,अपना अपना है वहां घर
मित्र कोई है किसी का, कोई दुश्मन
चाल अपनी चलते ही रहते है हर दिन
तो बताओ ,इतने सारे लोग हम तुम,
दोस्त बन ,संग संग रहे,क्या है ये मुमकिन
हम करोड़ों लोग है और कई बेघर ,
भटकने का सिलसिला ये रुका कब है
कहते है कि आदमी का भाग्य सारा ,
नौ ग्रहों का खेल ये कितना अजब है
मदनमोहन बाहेती 'घोटू'
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