मकर संक्रांति पर प्रणयनिवेदन
दिन गुजारे ,प्रतीक्षा में ,शीत में ,मैंने ठिठुर कर
सूर्य आया उत्तरायण,नहीं तुमने दिया उत्तर
है मकर संक्रान्ति आयी ,शुभ मुहूरत आज दिन का
पर्व है यह खिचड़ी का ,दाल चावल के मिलन का
हो हमारा मिलन ऐसा ,एक दम ,हो जाए हम तुम
दाल तुम ,मैं बनू चावल,खिचड़ी बन जाय हमतुम
कहते कि आज के दिन ,दान तिल का पुण्यकारी
पुण्य कुछ तुम भी कमा लो,बात ये मानो हमारी
इसलिए तुम आज के दिन,प्रिये यहअहसान करदो
तिल तुम्हारे होठ पर जो है,मुझे तुम दान कर दो
मदनमोहन बाहेती'घोटू'
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