एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

कसूर और जुर्बाना

मूड उनका सोने का था ,हमने सोने ना दिया ,
जुर्बाने में सोने के जेवर दिलाना  पड़  गया
 गाने गा गा बेसुरे  ,उनको पकाया ,फल मिला ,
खाना उसदिन शाम को ,हमको पकाना पड़ गया
उलटी सीधी ,बेतुकी ,बातों से चाटा इस कदर ,
आलू टिक्की ,चाट सब ,उनको खिलाना पड़ गया
मार उनके प्यार की ,हम पर पड़ी कुछ इस तरह
मारकेटिंग के लिए ,उनको ले जाना पड़  गया

घोटू 
दो दो लाइना -खाते पीते

तू है मेरी गरम जलेबी ,मैं रबड़ी का लच्छा
दोनों संग मिल स्वाद बढ़ाते ,प्यार हमारा सच्चा  

फूला हुआ  गोलगप्पा मैं ,स्वाद भरा तू पानी
तू दिल में आ ,स्वाद चटपटा ,भर देती तूफानी

मैं हूँ पाव और तू भाजी ,सबके मन को भाती
कभी बड़ा बन ,बड़ा पाव हम ,बन जाते है साथी

तू इडली सी नरम मुलायम मैं मद्रासी डोसा
तू है फूली हुई कचौड़ी ,मैं हूँ गरम समोसा

मैं हूँ गरम भटूरे जैसा ,तू छोले सी शोला
तेरी मदमाती खुशबू से ,मन मेरा भी डोला

मैं आलू की टिक्की सा तू चाट पापड़ी प्यारी
दही बड़े सी स्वाद चटपटी ,सब पर पड़ती भारी

प्रियतम तू है दाल माखनी ,मैं भड़ता बैंगन का
मिस्सी रोटी सा प्यारा ,जलवा तेरे यौवन का

मैं राजस्थानी बाटी तू ,नरम चूरमे जैसी
बेसनगट्टे की सब्जी हो ,स्वाद लगे तू वैसी

मैं काले गुलाबजामुन सा ,रसमलाई तू प्यारी
स्लिम काजू की कतली ,तूने ,मेरी नियत बिगाड़ी
१०
मैं मलाई घेवर सा ,तेरा है  फीनी  सा जलवा
कलाकार मैं कलाकंद सा ,तू गाजर का हलवा
११
मैं मथुरा के पेड़े जैसा ,तू अंगूरी पेठा
खुर्जा की खुर्चन जैसा मैं तेरे दिल में बैठा
१२
सुबह नाश्ते में पोहे सी ,तू है सीधी  सादी
बारिश में तू गरम पकोड़ी ,बन जाती उन्मादी
१३
मैं हूँ चम्मच च्यवनप्राश का तू टॉनिक की गोली
तू मेरी ,मैं तेरी ताकत ,तू मेरी हमजोली
१४
मैं उबले चावल जैसा तू चटकीली बिरयानी
मैं हूँ भोजनभट्ट दिवाना ,तू रसोई की रानी

मदन मोहन बाहेती'घोटू ' 

गुरुवार, 7 जनवरी 2021

लगवाओ वेक्सीन रे

ये बिमारी कोरोना की ,जो लाया था चीन रे
आओ बचाएं ,खुद को इससे लगवायें वेक्सीन रे
 
घातक है ये बहुत बिमारी ,दुनिया को बर्बाद किया
भारतीय विज्ञानिक ने मिल ,ये टीका ईजाद किया
कोरोना की बिमारी से ,खुद को अगर बचाना  है
एक माह के अंतर से बस दो टीके लगवाना है
टीके लगवा ,रहे सुरक्षित ,बजे चैन की बीन रे
हमें रोकना है कोरोना ,जो लाया था  चीन रे

जनहित में मदन मोहन बहती 'घोटू' द्वारा जारी 

बुधवार, 6 जनवरी 2021

मैंने अपने अंदर झाँका

अब तक तो मैं औरों का ही ,मैला दामन करता ताका
पर एक दिन जब,मैंने अपने,उर अन्तर के अंदर झाँका
सहम गया मैं ,भौंचक्का सा ,भरी हुई थी ,कई बुराई ,
अहम और बेईमानी ने ,मचा रखा था ,वहां धमाका
मैंने मन के अंदर झाँका
अब तक मुझे ,नज़र आती थी ,औरों की बुराइयां केवल
समझा करता ,दूध धुला मैं ,मेरा हृदय ,स्वच्छ है निर्मल
मेरी सबसे बड़ी कमी थी ,मैं औरों की कमियां गिनता ,
कमियां भरा ,स्वयं को पाया ,जब मैंने अपने को आँका
मैंने मन के अंदर झाँका
मेरा अहम् कुंडली मारे छुपा हुआ था ,मेरे अंदर
एक दो नहीं ,कई बुराई ,का लहराता भरा समंदर
प्रकट नहीं ,अंदर ही अंदर ,स्पर्धा भी ,घर कर बैठी ,
लालच और लालसाओं ने ,डाल रखा था ,मन पर डाका
मैंने मन के अंदर झाँका
मोह और माया ,मुझे बरगला ,बैठी मुझ पर ,कैसे शिकंजा
रह रह कर ,अभिमान झूंठ भी ,मार रहे थे ,मुझ पर पंजा
अपने स्वार्थ पूर्ति की चाहत ,देती थी ईमान डगमगा ,
राह भले थी  सीधी सादी ,मैं चलता था ,आँका बांका
मैंने मन के अंदर झाँका
मन बोला  ,मत ढूंढ बुराई औरों में ,खुद को सुधार तू
अपने अंदर ,छुपे हुये सब ,राग द्वेष का ,कर संहार तू
तू सुधरेगा ,तेरी नज़रें ,देखेगी सबकी  अच्छाई ,
और फिर तेरे मन के अंदर ,लहरायेगी ,प्रेमपताका
मैंने मन के अंदर झाँका

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चले थी जहाँ से ,वहीँ आ गये  है

अनजान थे हम ,जान आ गयी थी ,
हुआ था मिलन जब,हमारा,तुम्हारा
जीवन सफर की ,शुरुवात की थी ,
एक दूसरे का ,लिया था सहारा
बड़ी मुश्किलें थी ,कठिन रास्ता था ,
कहीं पर थे कांटे,कहीं ठोकरें थी
कभी सर्दी गर्मी ,कभी बारिशें थी ,
मौसम की गर्दिश ,हमे तंग करे थी
चमन में हमारे ,खिले फूल प्यारे ,
एक नन्ही  जूही ,एक गुलाब प्यारा
मधुर प्यार की जिनने खुशबू बिखेरी ,
महकाया जीवन ,सजाया ,संवारा
मगर वक़्त ने चक्र ,ऐसा चलाया ,
दामाद आया ,गया ले कर   बेटी
करी शादी बेटे की ,लाये बहू हम ,
बसा घर अलग ,दूर हमसे वो बैठी
बढ़ती उमर ने ,सितम ऐसा ढाया ,
बुढ़ापे में फिरसे ,हो तनहा गये  है
फिर से वही,दो के दो रह गए हम ,
चले थे जहाँ से ,वहीँ आ गये  है

घोटू  

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-