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शुक्रवार, 27 जून 2014

सुख-दुःख

         सुख-दुःख

जवानी में होता है,सजने सँवरने का सुख
शादी करके ,अपने प्रियतम से मिलने का सुख
थोड़े दिनों बाद फिर,माँ बाप बनने का सुख
और फिर धीरे धीरे ,बच्चों के बढ़ने का सुख
बड़ी ख़ुशी चाव से ,फिर बहू लाने का सुख
और कुछ दिनों,दादा दादी,कहलाने का सुख    
इतने सुख पाते पाते,बुढ़ापा है आ जाता
जो बड़ा सताता है और कहर है ढाता
थोड़े दिनों बाद जब ,अपने देतें है भुला
शुरू हो जाता है,दुखों का फिर सिलसिला
कभी बिमारी का दुःख,कभी तिरस्कार का दुःख
बहुत अधिक चुभता है,अपनों की मार का दुःख
जीवन में सुख दुःख की,मिलावट है होती
कभी चांदनी होती,कभी अमावस है  होती

घोटू

क्या हाल है?

         क्या हाल है?

दांत, डेंटिस्ट के भरोसे
सांस,दवाइयों के भरोसे
नज़र,चश्मे के भरोसे
वक़्त,टी. वी. के भरोसे
किससे क्या करें आस,
किसी को क्यों कोसे?
अब तो हम दोनों है,
एक दूसरे के भरोसे 
बाकी ये जीवन है ,
सिर्फ भगवान के भरोसे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बाकी सब ठीक है

           बाकी सब ठीक है

पंजों में सूजन है,और  दुखती  है  पिंडली
'आर्थराइटिस 'से, घुटनो की हालत है पतली
'प्रोस्टेट' बढ़ा हुआ,पाचन तंत्र  बिगड़ा है
'गॉलब्लेडर' में पथरी ,'किडनी' में लफड़ा है
श्वसन में दिक्कत है ,'लंग्स में  इन्फेक्शन '
और नहीं करता है,'हार्ट' ठीक से 'फंक्शन '
बदन में 'ओबेसिटी',बढ़ा हुआ  'ब्लडप्रेशर'
कम है 'विटामिन- डी 'और अधिक है 'शुगर '
बढ़ा 'थायराइड'है,'लिवर'भी 'वीक'  है
आँखों से कम दिखता , बाकी सब ठीक है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 26 जून 2014

खुशनुमा मौसम

               खुशनुमा मौसम

बहुत दिनों के बाद आज फिर ,ठंडी ठंडी हवा चली ,
बहुत दिनों के बाद आज फिर ,मौसम हुआ खुशनुमा है
कभी कड़कती है बिजली और कभी गरजते है बादल,
आसमान में उनकी हरकत ,बढ़ने लगी सौगुना है 
फिर से कुछ मृदुता आयी है ,आग उगलते सूरज में,
फिर से  उमड़ उमड़ कर छाये ,बादल के दल है नभ में 
फिर से इठला रही हवाएँ,पाकर बूंदों का चुम्बन ,
लहराती है शीतल होकर ,प्यार जगाती है सब में
तपिश कभी थी जो तड़फ़ाती चुभती तन पर लू बन कर ,
पा बारिश स्पर्श हो गयी ,फिर से शीतल मतवाली
फिर से नवजीवन आया है ,सूखे पौधों,पादप में,
फिर से फ़ैल गयी है भू पर ,सुन्दर ,मनहर हरियाली
फिर से बादल,प्यार नीर भर ,है बैचेन बरसने को,
फिर से मधुर मिलन की आशा ,जागी धरती के मन में
यादें  मधुर मिलन की,कड़क रही है बिजली बन,
फिर से होगा ,पिया मिलन और फूल खिलेंगे आँगन में
 फिर से सौंधी सौंधी खुशबू से माटी महकाई  है ,
रिमझिम रिमझिम की स्वरलहरी ,बादल रहे गुनगुना है
बहुत दिनों के बाद आज फिर ठंडी ठंडी हवा चली,
बहुत दिनों के बाद आज फिर ,मौसम हुआ खुशनुमा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


उमर के साथ साथ

     उमर के साथ साथ

कभी जब उनके कन्धों की,दुपट्टा शान होता था ,
      वो चलते थे तो लहराता ,हमें वो लगती  थी तितली
खुले बादल से जब गेसू,हवा में,उनके,उड़ते थे ,
       अदा से जब वो मुस्काते  ,चमकते दांत बन बिजली
जवानी में ये आलम था ,ठुमक कर जब वो चलते थे,
        थिरकता जिस्म मतवाला  , बना  देता  था  दीवाना
उमर ने करदी ये हालत, रही ना जुल्फ काली अब ,
         पाँव में आर्थराइटिस है,बड़ा मुश्किल है  चल  पाना
मगर एक बात है अब भी,कशिश जो पहले उन में थी,
          अभी तक वो ही कायम है,लुभाती हमको उतना ही
हमारी उनकी चाहत में,न आया कोई  भी अंतर ,
            गयी बढ़ती उमर जैसे ,बढ़ा है प्यार उतना ही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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