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गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

उसकी महिमा

          उसकी महिमा
हम सब को वो ऊपरवाला
ही देता है अन्न,निवाला
करता सबका भला रहा है
वो ही दुनिया चला रहा है
कब कर देगा जेबें  खाली
कब भर दे  झोली तुम्हारी
उसकी महिमा ,कब और कैसे
तुम्हे दिलादे ,धन और पैसे
तीनो लोकों का वो शासक
सारी जगती का वो पालक
वो ही है जीवन का दाता
हंसी खुशी ,सुख दुःख दिखलाता
वो अनंत है,अविनाशी है
वो तो घट घट का वासी है
सच्चे मन से उसका वंदन
आनंदित कर देगा  जीवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चाकलेट

           

 


          चाकलेट
'चा' से चाव ,महोब्बत ,चाहत ,
                      एक दूजे संग ,अपनेपन की
'क'से कशिश,कामना मन में ,
                       जगती है जब मधुर मिलन की
'ले' से लेना देना चुम्बन,
                       ललक ,लालसा फिर लिपटन  की
'ट'से टशन और टकराहट ,
                        नयन,अधर की और फिर तन की
छू होठों से ,मुंह में जाकर ,
                         घुलती  स्वाद सदा है  देती    
चाकलेट ,प्रेमी जोड़ों का ,
                        मिलन मधुरता से भर देती 
                           
घोटू


अधर से उदर तक

         अधर से उदर तक

मिलना है जिसको ,वो ही तुमको मिलता ,
                           भले लाख झांको,इधर से उधर तक
बसा कोई दिल में , चुराता है नींदें ,
                            जाने जिगर वो  तुम्हारे  जिगर तक
मचलती है चाहें,जब मिलती निगांहे ,
                             चलता है जादू ,नज़र का नज़र तक  
वो बाहों का बंधन ,वो झप्पी वो चुम्बन,
                              मज़ा प्यार का है,अधर से अधर तक
ये है बात निराली  ,हो गर पेट खाली ,
                               तो भूखे  से होता नहीं है भजन तक
न तन में है हिम्मत,भले कितनी चाहत,
                                नहीं होता तन से फिर तन का मिलन तक
तब होता है चुम्बन और बाहों का बंधन ,
                                  भरा हो उदर और   मिलते  अधर तब
मचल जाता मन है,मिलन ही मिलन है  ,
                                     अधर से उदर तक ,तुम चाहो जिधर तक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

जवानी का मोड़

         जवानी का मोड़

जब होठों के ऊपर और नाक के नीचे,
                          रूंआली उभरने लगे
जब किसी हसीना को कनखियों से देखने
                             को दिल  करने लगे
जब मन अस्थिर और अधीर  हो ,
                             इधर उधर भटकने लगे 
जब किसी कन्या का स्पर्श,मात्र से ,
                              तन में सिहरन भरने लगे
जब न जाने क्या क्या सोच कर ,
                                तुम्हारा मन मुस्कराता  है
समझलो,आप उम्र के उस मोड़ पर है ,
                                जो जवानी की ओर  जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                                

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

सबके अपने अपने किस्से

    सबके अपने अपने किस्से

अपने गम ,अपनी पीडायें
कोई छुपाये,कोई बताये
किसका दिल है कितना टूटा
किस को है किस किस ने लूटा
खुशियां आयी ,किसके हिस्से
सबके अपने अपने किस्से
एक बुजुर्ग से लाला जी थे
रोज घूमने में थे मिलते 
कुछ दिन से वो नज़र न आये
एक दिन अकस्मात् टकराए
हमने हाल चाल जब पूछा
उनके मन का धीरज टूटा
बोले दिल की बात कहूँ मैं
घर से दिया निकाल बहू ने
बहुत चढ़ गयी थी वो सर पे
बोली निकलो मेरे  घर से
वरना फोन करू थाने  में
करी रेप की कोशिश तुमने
मुझ  संग करने को  मुंह काला
सीधे जेल जाओगे लाला
अगर छोड़ घर ना जाओगे
बहुत दुखी हो, पछताओगे
बेटा मौन,नहीं कुछ बोला
मैंने बाँधा  बिस्तर,झोला
मैं इस घर से चला गया हूँ
बुरी तरह पर छला गया हूँ
अपनों का संग छूट गया है
अब मेरा दिल टूट गया है
और छा गयी बदली गम की
मैंने देखा आँखे नम थी
पर अब करें शिकायत किस से
सब के अपने अपने किस्से
एक हमारी और परिचित
हंसती,गाती और प्रसन्नचित
लगता तो था,बहुत सुखी थी
नज़र एक दिन आयी दुखी थी
हम पूछ लिया कुछ , ऐसे
आज चाँद पर बादल कैसे
पहले तो वो कुछ सकुचाई
फिर मन की पीड़ा बतलाई
 तुमको बात बताऊँ सच्ची     
बेटे की कमाई है अच्छी
रखे हमारा सदा ख्याल वो
हर महीने पंद्रह  हज़ार वो
भेज दिया करता था हमको
पता लगी जब बात बहू को
बोली अब न चलेगा ऐसा
पकड़ाउंगी अब  मैं  पैसा
अपने हाथों ,सासूजी को
बोलो क्या मिल गया बहू को
मुझको था नीचा दिखलाना
था मुझ पर अहसान जताना
रूतबा बढे ,सास पर जिस से
सबके अपने अपने  किस्से

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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