पते की बात
भगवत उचाव
तू वही करता है जो तू चाहता
मगर होता वही जो मै चाहता
तू वही कर ,जो की मै हूँ चाहता
फिर वही होगा जो है तू चाहता
घोटू
1417-दो कविताएँ
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*1- ताप सघन है*
*निर्देश निधि*
*ताप सघन है*
*गौरैया बना रही है रेत में समंदर*
*नहा रही है डूब- डूब*
*रख दूँ परात में पानी*
*कि सूरज का ताप ...
21 घंटे पहले